अमृतसर: इतिहास के झरोखे से…

 

हरमंदिर साहिब यानी चमचमाता स्वर्ण मंदिर … गुरु की इस नगरी अमृतसर में दुनिया भर से लोग खूबसूरत स्वर्ण मंदिर देखने आते हैं…इस ऐतिहासिक शहर के भीतर आज़ादी के आंदोलन की कई यादें दर्ज़ हैं.. जनरल डायर की भयानक क्रूरता का गवाह जालियांवाला बाग है, दो देशों की सरहदों के बीच देशभक्ति के जज्बे से भरा अटारी का शानदार समारोह है… सैकड़ों साल पुरानी संस्कृति और ऐतिहासिक इमारतें हैं… और वो 12 ऐतिहासिक गेट हैं जिन्हें अंग्रेजों और मुगलों के हमले से बचाने के लिए बनवाया गया था…

पंजाब के इस शहर में सिखों के चौथे गुरु रामदास जी ने सन् 1588 में हरमंदिर साहब की नींव रखी..  मुगलों और अफगानियों ने इसे कई बार तोड़ा.. हिन्दुओं और सिखों ने मिलकर इसे बार बार बनवाया… करीब चार सौ साल पहले बने इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था। यह गुरुद्वारा शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है। अफगानियों ने इस गुरुद्वारे को 19वीं शताब्दी में एक बार फिर पूरी तरह नष्ट कर दिया…बाद में इसे महाराजा रणजीत सिंह ने दोबारा बनवाया और करीब 400 किलो सोना जड़वा कर इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा दिए.. तभी से इसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा।

गुरुद्वारे के चारों दिशाओं में चार दरवाजे हैं जो हमारे चारों मुख्य धर्मों के प्रतीक हैं.. हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई…. हर धर्म को मानने वाले यहां पूरी आस्था से आते हैं। महाराजा रणजीत सिंह ने इस गुरुद्वारे के चारों ओर बेहद खूबसूरत और पवित्र अमृत सरोवर बनवाया जो इसके सौंदर्य को और बढ़ाता है। इसी अमृत सरोवर की वजह से यह शहर अमृतसर कहलाता है। हर रोज़ हज़ारों की संख्या में लोग स्वर्ण मंदिर आते हैं, पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं, यहां चौबीसों घंटे चलने वाले लंगर में खाना खाते हैं… रात के वक्त स्वर्ण मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है।

अमृतसर जिन बारह विशाल गेटों के भीतर बसा था, उसे भी महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था। इन गेटों के बाहर भी कुछ गांव थे… शहर के इन्हीं 12 गेटों के अंदर घनी आबादी होती थी। ये गेट थे – महां सिंह गेट, लहौरी गेट, गेट हकीमां, बेरी गेट, लौहगढ़ गेट, हाथी गेट, हाल गेट, चाटीविंड गेट, सुल्तानविंड गेट, शेरां वाला गेट, खजाना गेट, सिकंदरी गेट।

सूरज की पहली किरण के साथ इन गेटों को खोल दिया जाता था। जैसे ही शाम होती तो मुगलों के हमले से लोगों को बचाने के लिए सभी गेट बंद कर दिए जाते थे। इन गेटों के चारों ओर 17 फीट गहरी और चार फीट चौड़ी एक नहर होती थी। जिसमें हर समय पानी भरा रहता था। शहर की सुरक्षा के लिए इस नहर को भी महाराजा रणजीत सिंह ने ही बनवाया था। रात को तोपों के साथ सैनिकों का यहां सख्त पहरा रहता था। जबतक महाराजा रणजीत सिंह थे, उन्होंने अंग्रेजों से अमृतसर को बचा कर रखा.. लेकिन 1839 में महाराजा रणजीत सिंह के निधन के बाद जब पूरी तरह अंग्रेजों का राज आ गया तो उन्होंने सभी गेट और इनसे लगी दीवार को तुड़वाना शुरू कर दिया। 1892 तक सभी गेट तुड़वा दिए गए और अंग्रेजों ने इन्हें अपने मुताबिक बनवाया। अंग्रेजों के बनाए हुए गेट आज भी देखे जा सकते हैं जबकि महाराजा रणजीत सिंह का बनवाया हुआ रामबाग गेट का कुछ हिस्सा ही आज मौजूद है। हालांकि इन गेटों पर जो बड़े-बड़े लकड़ी के दरवाजे लगे होते थे, वह फिलहाल लाहौर के म्यूजियम में मौजूद हैं।

— शालिनी सिन्हा

Posted Date:

June 20, 2024

10:54 pm Tags: ,

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