कहते हैं चुप रहना अच्छा है : त्रिलोचन
अगर कवि त्रिलोचन आज होते तो 107 साल के होते… लेकिन वह 17 साल पहले चले गए यानी 90 की उम्र में… एक जीवंत और उम्मीदों से भरे त्रिलोचन की रचनाओं पर उनके रहते तो बहुत कुछ लिखा गया लेकिन उनके जाने के बाद वह साहित्य जगत की स्मृतियों में भी ओझल से हो गए… उस दौर के चंद लोग अपनी चर्चाओं में या किन्हीं संदर्भों में उन्हें याद कर लेते हैं, लेकिन उनके अभूतपूर्व योगदान को हिन्दी साहित्य हमेशा याद रखता है… साहित्य को जानने समझने वाले त्रिलोचन की खड़ी बोली या अवधी में लिखी कविताएं, सोनेट, मुक्त छंद को आज भी याद करते हैं और जब भी उनके लेखन पर चर्चा होती है, उनके विशाल साहित्य सृजन को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जाता है… एक बेटे के लिए त्रिलोचन क्या थे और कैसे उनके पत्रकार बेटे अमित प्रकाश सिंह उन्हें देखते और महसूस करते हैं, आप भी देखिए…. 
कवि त्रिलोचन प्रकृति,प्रेम,और मानव संबंधों के एक अद्भुत कवि थे। उनकी कविताएं सामाजिक – आर्थिक संघर्षों को शहरी , ग्रामीण समाज के फलक पर देखते हुए एक तस्वीर बनाती हैं। उनकी कविता सिर्फ तस्वीर नहीं दिखातीं बल्कि साथ चलते हुए राह बनाने की बात भी करती हैं। उनकी कविताएं चाहे वे मुक्त छंद की हों या छंद में हों या फिर यूरोपीय सानेट हो या फिर लोकभाषा अवधी में हों ,नई ताजगी देती हैं। उनकी कविता उत्साह,उल्लास और उमंग की कविता है। एक संवाददाता की तरह उनकी कविताओं में खोजी प्रस्तुति दिखती है। यह उनकी खासियत है। उनकी कविताओं में बादलों के रूपरंग, आंधियों के नाम और उनकी विनाश लीला उनके दौर के दूसरे कवियों में कम ही दिखती है।
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में जन्मे कवि त्रिलोचन ( 20 अगस्त 1917–09दिसंबर 2007 ) को उनकी कविताओं और गद्य में आई रचनाओं के जरिए ही जानना चाहिए। आवरण देखकर आकलन करने वाले बुद्धिजीवी उनके दौर में थे आज तो खैर, बडी तादाद है। हालांकि ज्यादातर उन्हें जानने – समझने का दम भरते हैं। इसका अहसास उनकी ही कई कविताओं से मिलता है। कविता ‘कह नहीं सकता ‘–संकलन ‘चैती ‘ में वे लिखते हैं–‘ कहते हैं चुप रहना अच्छा है/ अपनी चुप छोड़ कर हर कोई कहता है। ‘इसी संकलन की एक दूसरी कविता है ‘मैं कृतज्ञ हूं’ —
‘मेरी कविताओं के सपने सब मेरे हैं/ मुझे तो प्रसन्नता है यदि मेरे सपनों को कोई भी / नहीं कहता मेरे हैं।’
कवि त्रिलोचन की ‘राजनीति ‘ क्या थी इस पर हिंदी के अध्यापक और शोध से जुड़े लोग भी तय नही कर पाते । चूंकि उन्हें पढ़ने का समय नहीं होता इसलिए जिन शहरों में वे रहे वहीं के विशेषज्ञ कहलाने वालों की कल्पित राय पर अपना काम निपटा लेते हैं। इससे निर्रथक भ्रम उस कवि के परिवार तक के बारे में फैलता रहा जो सारी जिंदगी बेहद साधारण जीवन जिया। आज भी इसके कारण पूरे परिवार को बेबस हो जाना पड़ता है । जबकि उनके परिवार में एक पुत्र और उसका परिवार है लेकिन उनसे कोई संपर्क नहीं करता। त्रिलोचन की तकरीबन अठारह पुस्तकें हैं और काफी कुछ लिखा प्रकाश में नहीं है।
जो हो मुझे अब भी उम्मीद है कभी हिंदी में कुछ बुद्धिजीवी होंगे जो कवि त्रिलोचन को सिर्फ गपियाने और मौज लेने से ऊपर आकर उनका सही और बेहतर आकलन करेंगे।
ऐसे कवि लेखक त्रिलोचन को मेरा नमन ।
 
त्रिलोचन जी की यह कविता 7 रंग के पाठकों के लिए..
कह नहीं सकता मुझ को उदासी क्यों पकड़ लिया करती है अपनी राह आता हूँ जाता हूँ कोई भी लगाव अलगाव नहीं और सिलसिला जो चल निकला है चलता ही जाता है फिर भी मन मेरा मौन साध साध लेता है कल देखी बरसाती नदी वह पेटी में सिकुड़ सिकुड़ गई थी वह प्रवाह कहाँ था जिस से भय लगता था अब जल को घेर कर पौधे उग आए थे कहीं कहीं घास और कहीं कहीं काई थी जो कुछ भी पानी था ठहरा था मैं ने जाते सूरज को देख अलविदा कहा कहते हैं चुप रहना अच्छा है अपनी चुप छोड़ कर हर कोई कहता है
Posted Date:

August 20, 2024

1:59 pm

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