गाजियाबाद के साहित्यप्रेमियों और साहित्यकारों के लिए कृष्ण मित्र का जाना एक सदमे की तरह है। कवि, लेखक और पत्रकार आलोक यात्री करीब साढ़े तीन दशकों से कृष्ण मित्र के करीब रहे और उनसे बहुत कुछ सीखा। 91 साल के कृष्ण मित्र के जाने पर आलोक यात्री ने उनसे जुड़े कुछ संस्मरण लिखे हैं। पढ़ते हैं।
समाज को अफीम की नहीं आदर्श की जरूरत है — कहते थे कृष्ण मित्र
ओज के कवि कृष्ण मित्र आज हमारे बीच नहीं हैं। ओज के इस महाकवि ने लगभग पांच दशक से भी अधिक समय तक देश-विदेश में गाजियाबाद का परचम लहराया। पिताश्री से. रा. यात्री के साहित्य होने के नाते मेरा उनसे पारिवारिक नाता तो बरसों से था। लेकिन मुझे उनका स्थाई संरक्षण करीब 38 साल पहले तब मिला जब एम. ए. करने के दौरान 1984 में मैं विनय संकोची के सानिध्य में दैनिक प्रलयंकर में उनका सहयोगी हो गया। दैनिक प्रलयंकर के मालिक संपादक तेलूराम कांबोज उनके अभिन्न मित्र थे। उन दिनों मित्र जी की गीतों की पुस्तक “जवानी जागा करती है” लोकप्रियता के चरम पर थी। और उनके देशभक्ति परक गीत अपने उत्कर्ष पर थे।
मित्र जी प्रलयंकर के लिए नियमित रूप से “छंगी” (छह पंक्तियों की कविता) लिखते थे। तहसील स्थित लायर्स चैंबर में उनके कार्यालय “मनमोहन वैद एंड कंपनी’ से उनकी कविता लाने का काम गंगा नाम का हॉकर करता था। कुछ दिन बाद मुझे कोर्ट का काम भी मिल गया। अब शाम को “छंगी” लाने की जिम्मेदारी मेरी हो गई। मैं शाम को उनके कार्यालय पहुंचता तो वहां चाय समोसे मेरा इंतजार कर रहे होते। कॉलेज में हमारे गुरू डॉ. कुंअर बेचैन हुआ करते थे। डॉ. बेचैन की छत्रछाया में मैं, रवि अरोड़ा, हेमंत, नेहा, चेतन आनंद कविता लिखने लगे थे। गुरुओं का आशीर्वाद पाने के मामले में मैं सौभाग्यशाली रहा। गाहेबगाहे मैं अपनी तुकबंदियां मित्र जी को दिखा लेता था। प्रलयंकर ने मुझे क्राइम रिपोर्टर बना दिया था तो मित्र जी ने कविता से मेरी अंगुली नहीं छूटने दी। वह अक्सर कहा करते थे क्राइम रिपोर्टर समाज में अफीम बांटने का काम करते हैं कम से कम तुम अपनी कविता से समाज को संजीवनी देने का काम करो। आज मित्र जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके कहे शब्द आज भी मेरा आदर्श बने हुए हैं।
– आलोक यात्री (कवि, लेखक, पत्रकार)
Posted Date:
November 24, 2022
11:06 pm
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