देख तमाशा दुनिया का….
आलोक यात्री की कलम से
“अकल बड़ी या भैंस?” यह जुमला आपने भी अक्सर सुना होगा। दुनिया के तमाम सियाने आज तक इस सवाल का जवाब नहीं तलाश पाए। आए दिन हमारे सामने कई ऐसे मसले आते हैं जो अटकल लगाने पर मजबूर कर देते हैं कि अकल बड़ी या भैंस? अब ताजा मसला ही लीजिए। भोपाल में तैनात पैरामिलिट्री फोर्स के एक जवान को छुट्टी जाना था। अवकाश की वह अर्जी लोगों में परिहास का सबब बनी हुई है। जिसमें जवान ने लिखा था “मेरी भैंस बीमार है। मां बुजुर्ग है। घर पर उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। मैं अपनी भैंस से बहुत प्यार करता हूं। लिहाजा मुझे छह दिन का अवकाश दिया जाए।”
छुट्टी से लौट कर जवान ने ड्यूटी भी ज्वाइन कर ली, लेकिन अर्जी पर चर्चा जारी है। किसी की दिलचस्पी भैंस का हाल जानने में नहीं है। लोग इस बहस में व्यस्त हैं कि कोरोना काल में जहां छुट्टी के लाले पड़े हैं, वहां कुलदीप राठौड़ ने अवकाश की क्या नायाब तरकीब निकाली?
अब आप बताइए अकल बड़ी कि भैंस? नहीं बता पाए ना…? चलिए एक कोशिश और करके देखिए। नहीं तो एक और बानगी देखिए।
यह मसला एक भैंस और दरोगा मित्र त्यागी जी से जुड़ा है। जो मुरादनगर थाना प्रभारी के पद से ट्रांसफर होकर देहरादून पहुंचे थे। पुलिस कप्तान श्री श्री… भी गाजियाबाद से देहरादून ट्रांसफर हुए थे। के. के. गौतम, आर. सी. शर्मा, सुनील पचौरी आदि वहां पहले ही तैनात थे। श्री श्री… रिश्ते में मेरे मामा लगते हैं। देहरादून गया तो दुविधा में फंस गया। मामाश्री के पास जाऊं या रोटी और बोटी वाले मित्रों के पास। उस दौर में मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे। पुलिसिया मित्रों का पता थाना या चौकी ही हुआ करते थे। बस इतना पता था कि सुनील पचौरी खुड़बुड़ा चौकी इंचार्ज हैं। दून एक्सप्रेस से उतर कर धावा सीधे खुड़बुड़ा चौकी पर ही बोला।
अल सुबह चौकी पर मौजूद सिपाही हाजत रफ्त में लगे थे। उनमें से एक सिपाही तौलिया लपेटे-लपेटे हमें पचौरी जी के कमरे पर छोड़ गया। कमरे में एक ही चारपाई थी। जिस पर भाई त्यागी जी पड़ी लगा रहे थे। देखते ही बड़े खुश हुए। बरसों के बाद मिला मेरा बिछड़ा यार… की तर्ज पर उन्होंने अंगड़ाई लेते-लेते ही गले लगाया। त्यागी के चारपाई से उठते ही पाएताने की ओर से काला भुजंग एक और जवान अंगड़ाई लेता उठ खड़ा हुआ। जिसे देखते ही हमारी रुह फना हो गई। हट्टा-कट्टा शरीर, चौड़ा मुंह, नुकीले दांत, कंचे की तरह चमकती आंखें और गुर्र-गुर्र करती आवाज से हमारी घिग्घी बंध गई। ऐसा जबर कुत्ता हमने जिंदगी में पहली बार देखा था। हमारी हालत देखकर त्यागी ने शेरू-शेरू कह उसे पुचकारने की कोशिश की लेकिन शेरू ने अपना पूरा श्वान धर्म निभाया। नख से शिख तक की गंध अपने नथूनों में जम कर भरी। शेरू के बाहर जाने तक हम त्यागी के इर्द-गिर्द ही परिक्रमा करते रहे। शेरू के जाते ही हमने राहत की सांस लेते हुए पूछा “महाराज यह शेर कहां से पाल लिया?”
“पाला नहीं है, चाय वाले की दुकान पर पड़ा रहता है, दोस्ती हो गई है… जब मन करता है चला आता है…”
“है बड़ा भारी भरकम, कौन सी ब्रीड है…”
“भूटिया है…”
बात करते-करते हम चंद कदम दूर चाय की गुमटी तक पहुंचे। तमाम बैंचों पर तलबगार विराजमान थे। एक बैंच आधी खाली थी। आधी पर शेरू ने कब्जा जमा रखा था। त्यागी ने उसे हटाने की काफी कोशिश की। लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। मेरी हालत देख कर चाय वाला सांत्वना देने लगा “कुछ नहीं कहेगा साब…, आप बेवजह डर रहे हैं, बहुत सीधा है” कहते हुए चाय वाले ने बैंच के सामने एक-दो बिस्कुट डाले। लेकिन शेरू ने आंख उठाकर भी नहीं देखा। तिरछी निगाहों से शेरू की निगरानी करते हुए मैंने जैसे-तैसे चाय हलक में उड़ेली।
नहा-धोकर हम तैयार हुए ही थे कि आर.सी. शर्मा हमें लेने आ गए। प्रोग्राम पूछते हुए उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज में कहा “क्यों मामा से मिलने नहीं जाएगा…?” मेरी खिंचाई करने के लहजे में उन्होंने कहा “यार त्यागी… तेरी पोस्टिंग तो यही करा देगा… मामा से कह कर… क्यों भई मामा इतनी सिफारिश तो मान लेता होगा…?”
मैं कहता तो क्या कहता? इतना ही कह सका “हां…हां… क्यों नहीं… मामा जी की तरफ हो कर ही चलते हैं… त्यागी जी की पोस्टिंग तो करवाई ही जाएगी…”
“भाई आज भर और रुक जाओ… जरूरत पड़ी तो कल कह देना…” कमरे की संकल बंद करते हुए हमारे साथ बाहर निकलते हुए त्यागी ने फरमाया।
शर्मा जी के इंदिरा नगर घर लंच पर पहुंचने से पहले हमने कई थानों में तैनात तमाम परिचितों से मुलाकात की। दरोगा जोध सिंह ने जिद कर होटल व्हाइट हाऊस में हमारे लिए एक सूट बुक करा दिया। एक स्थानीय पत्रकार सतीश शर्मा व फोटो जर्नलिस्ट मुन्ना सहित सबका जमावड़ा शाम को होटल में ही लगा। पचौरी पीता नहीं था और त्यागी इसलिए मुक्त रहा कि रात को उसे एक मिशन पर जाना था। देर रात महफिल इस शर्त पर बर्खास्त हुई कि अगली सुबह त्यागी हमें धनौल्टी घुमाने ले जाएगा।
हम सुबह की चाय पी ही रहे थे कि एक बड़ा सा लिफाफा हाथ में थामे त्यागी होटल के कमरे में प्रकट हुआ। आते ही बोला “धनौल्टी जाना कैंसल। आपकी दावत आज कैंटोनमेंट थाने में होगी। फिलहाल जलेबियां खाओ…”
माजरा पूछने पर त्यागी ने जो किस्सा सुनाया, वह वही सवाल फिर खड़ा करता है कि अकल बड़ी कि भैंस?
बकौल त्यागी “ट्रांसफर होकर आने के बाद मैं इस उम्मीद में कप्तान को सलाम ठोकने पहुंचा कि पहले से पहचान की बदौलत थानेदारी तो मिलेगी ही। लेकिन कप्तान साहब भाव देने को ही तैयार नहीं थे। सलाम ठोकने जाने पर हर बार यही सुनने को मिलता -बहुत काबिल दरोगा हो ? काबिलियत साबित करके दिखाओ! एक माह में भी तीन-चार बार सलाम ठोकने के बाद भी नतीजा ठन-ठन गोपाल ही रहा तो एक दिन हिम्मत करके कह ही दिया -आदेश करें सर।कप्तान साहब ने चैलेंज के से अंदाज में कहा -काबिलियत दिखानी है तो कैंट थाने जाकर भैंस चोरी की रिपोर्ट पढ़ लो।”
“मरता क्या ना करता? पचौरी की मोटर साइकिल ले कर कैंट थाने पहुंचा। हैड मोहर्रिर ने दो महिने पुरानी कर्नल साहब की भैंस चोरी की रिपोर्ट पढ़वाई। यह भी बताया कि कर्नल साहब का राष्ट्रपति भवन से सीधा कनेक्शन है। पूछताछ के लिए कप्तान साहब के पास कर्नल साहब के हफ्ते में तीन फोन आते हैं तो दिल्ली से दस फोन आते हैं। ट्रंक काॅल की घंटी सुनते ही कप्तान साहब के होश फाख्ता हो जाते हैं। फोन पर मेमने की तरह मिमयाने लगते हैं।” हैड मोहर्रिर ने बड़े ही रहस्यमय अंदाज में फरमाया “साहब जी… इस थाने की पोस्टिंग लेने के बारे में तो सपने में भी मत सोचना। सिर मुंडवाते ही ओले पड़ना तो यहां आम बात है। कर्नल साहब की भैंस चोरी के बाद से इलाके में चोरी की कई और संगीन वारदात हो चुकी हैं। किसी के घर से टमाटर चोरी हुए तो किसी के घर से अमरूद, लीची या नींबू। दो महीने में तीन थानेदार लाइन हाजिर हो चुके हैं। आंधी हो, तूफान या बरसात, हरि मिर्च चोरी की रिपोर्ट लिखने थानेदार को जिल्द लेकर खुद ही जाना पड़ता है। डैमफूल, इडियट…और न जाने कैसी-कैसी अंग्रेजी गाली खानी पड़ती हैं…”
कैंट थाने से हैड मोहर्रिर की बात गांठ बांध कर पचौरी के कमरे पर लौटने के बाद से ही त्यागी ने शेरू की आवभगत के साथ ही उसे प्यार से दुलारना पुचकारना भी शुरू कर दिया। दूध, ब्रेड, बिस्कुट खिलाने का नतीजा यह रहा कि पुकारने पर थोड़ी हील-हुज्जत के बाद शेरू त्यागी के निकट आ जाता था। दिन में एक दो बार त्यागी चाय वाले की भैंस की बछिया की पुरानी चेन शेरू के गले में बांध कर उसे सड़क पर टहला लेता था। एक दिन रात को करीब बारह बजे शर्मा जी से मांगी जीप में शेरू को लेकर त्यागी ने कर्नल साहब के घर की काॅल बेल जा बजाई। करीब पंद्रह मिनट बाद आंख मलते हुए कर्नल साहब अंग्रेजी में गरियाते हुए दरवाजे पर प्रकट हुए। उनके हाव भाव से ही प्रतीत हो रहा था कि नींद के साथ सुरूर में पड़ा खलल उनके लिए नाकाबिल ए बर्दाश्त था।
कर्नल साहब द्वारा आधी रात को आने का सबब पूछने पर त्यागी ने बताया “आपकी भैंस चोरी हो जाने से दिल्ली काफी दुखी है। राष्ट्रपति भवन से भी कई बार चिंता जताई जा चुकी है। भैंस तलाशने की जिम्मेदारी स्पेशली मुझे सौंपी गई है। आप चिंता न करें हुजूर आपकी भैंस मैं तलाश कर ही रहूंगा। आपकी इजाजत हो तो भैंस बांधने की जगह का मुआयना डॉग स्क्वैड को भी करा दूं…”
पहले तो कर्नल साहब तैयार नहीं हुए। कहा “दफा होइए यहां से, सुबह अपने कप्तान को साथ लेकर आना…।” कर्नल साहब को राजी करने के लिए त्यागी को काफी मान-मनौव्वल करनी पड़ी। यह भी कहना पड़ा “हुजूर सीधा दिल्ली से आ रहा हूं। दिल्ली हैड ऑफिस से ले कर राष्ट्रपति भवन तक अभी रिपोर्ट करना है। नहीं तो नौकरी चली जाएगी।” यह कहने के साथ ही त्यागी ने नाइट सूट पहने सरदार जी के पैरों की तरफ हाथ बढ़ाया तो वह घोड़े की तरह बिदक गए। जैसे-तैसे तबेला दिखाने को राजी हुए। तबेले में घुसते ही त्यागी ने भी गज़ब की फुर्ती दिखाई। भैंस जहां बांधी जाती थी वहां की जमीन पर शेरू की मुंडी पकड़ कर थूथनी चार पांच बार जमीन पर रगड़ दी। इस बीच कर्नल साहब की पत्नी, बेटी और बेटा भी तबेले में आ जुटे। त्यागी ने नोट बुक निकाल कर भैंस की तफसील नोट करनी शुरू की। कर्नल साहब के बच्चों और पत्नी ने त्यागी को हिकारत से देखते हुए एक-एक बात बताई। त्यागी ने भी भैंस की आदत व स्वभाव की बाबत कुरेद-कुरेद कर सवाल पूछे। मसलन भैंस खाती क्या थी? पीती क्या थी? खाने में उसे क्या पसंद था? क्या नापसंद था? चारे की नांद भी शेरू को जबरन सुंघाई। दो-चार जगह शेरू ने अपनी मर्जी से सूंघा-सांघी कर ली। रात के करीब डेढ़ बजे कर्नल साहब को सेल्यूट मार कर त्यागी कमरे पर पहुंच कर निद्रा में लीन हो गया।
गरमागरम जलेबियों पर हाथ साफ करते हुए त्यागी ने किस्सा बताना जारी रखा। “चार दिन बाद चाय वाले से दो घंटे के लिए भैंस उधार ली गई। साथ ही मोहल्ले में लफंडर किस्म के दो लौंडे तलाश किए। दो घंटे के लिए एक टेंपो वाले की भी सेवाएं ली गईं। रात को करीब दो बजे इस फौज ने कर्नल साहब के बंगले पर धावा बोल दिया। टूटे सुरूर से भन्नाए कर्नल साहब करीब पंद्रह मिनट बाद अंग्रेजी में गाली देते हुए प्रकट हुए। धीरे-धीरे उनकी पत्नी, बेटी और बेटा भी मजमे में शामिल हो गए। सलाम ठोक कर कहा “आपकी भैंस बरामद करके ला रहे हैं हुजूर। टैंपू में से भैंस उतरवा लें…।”
भीतर से टार्च लेकर आए कर्नल साहब ने भैंस का नख-शिख तक मुआयन कर भैंस उनकी न होने की घोषणा करने के साथ ही गरियाना शुरू कर दिया। “नामाकूल…, जाहिल आदमी…, तुम्हें फौजी से बात करने का शऊर तक नहीं है। जिस बूचड़खाने से उठा कर लाए हो वहीं फेंको ले जाकर। दफा हो जाओ मेरी आंखों के सामने से… नहीं तो खड़े-खड़े यहीं शूट कर दूंगा…।”
“सलाम ठोक बुद्धू लौट कर घर को आए। तीसरी रात फिर वही मशक्कत की गई। टेंपो में उधार ली भैंस और दो लड़के लाद कर रात के दो बजे कर्नल साहब के घर की काॅल बेल जा दबाई। दस-पंद्रह मिनट बाद भन्नाए हुए कर्नल साहब ने आकर दरवाज़ा खोला। मुझे देखते ही उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वह कुछ बोलते इससे पहले ही मैं सेल्यूट मार कर उनके पैरों में गिर कर बोला “हुजूर… वर्दी की कसम इस बार आपकी ही भैंस बरामद करके लाया हूं। यकीन न हो तो इन भैंस चोरों से ही पूछ लीजिए। चोरी कुबूल करने के साथ चोरी करने का तरीका भी बता रहे हैं। हुजूर बिजनौर के खादर में जाकर पकड़ा है…।” पैर पकड़े बैठे दरोगा पर तरस खाते हुए कर्नल साहब ने भीतर से टार्च मंगवाई। भैंस के थन, सींग, खुर, पूंछ तसल्ली से जांच कर बोले “यू इडियट… हमको बेवकूफ समझता… हम अपनी भैंस नहीं पहचानता…, दफा हो यहां से…”
यह सुनना था कि त्यागी ने डंडे से दोनों लड़कों का पिछवाड़ा सेंकना शुरू कर दिया। डंडे खाते दोनों लड़के कर्नल साहब की भैंस चुराने की कसमें खाने के साथ आगे से चोरी न करने की दुहाई देते जा रहे थे। जमीन पर पड़े लड़कों की डंडे से खबर लेते हुए त्यागी पूछता “कहां से ले गए थे…?’
लड़के कहते “यहीं से हुजूर…”
कर्नल साहब कहते “झूठ बोल रहे हैं… मेरी भैंस ही नहीं है…”
“जब चोर बता रहे हैं कि भैंस आपकी है तो आपकी कैसे नहीं है…” कर्नल साहब की पत्नी के सामने हाथ जोड़ते हुए त्यागी ने कहा।
“बड़े आए भैंस ढूंढ कर लाने वाले… कर्नल साहब अंधेरे में दुश्मन को पहचान लें… यह तो अपनी भैंस ठहरी… इसे नहीं पहचानेंगे…?”
मेमसाहब का जवाब सुनते ही त्यागी ने डंडा फिर जमीन पर फटकारते हुए गाली देते हुए कहा “मा… चल कर जगह दिखाओ जहां से ले गए थे”
यह सुनते ही दोनों लड़के फुर्ती से उठे और कपड़े झाड़ते हुए कर्नल साहब के बंगले की तरफ चल दिए। लड़कों के पीछे दरोगा जी, दरोगा जी के पीछे मेमसाब और मेमसाब के पीछे कर्नल साहब मिनट भर में ही भैंस के तबेले में जा खड़े हुए। लड़कों ने बिल्कुल सटीक जगह बताई। यह भी बताया “हुजूर इस तरफ भैंस के लिए कूलर भी चल रहा था…”
त्यागी की दी गई टिप कारगर साबित होने के बावजूद मसला वहीं का वहीं था। कर्नल साहब मानने को तैयार नहीं थे कि भैंस उनकी है। बात बनती न देख त्यागी ने यह पेशकश भी रख दी “मेमसाब जब तक आपकी भैंस नहीं मिलती तब तक आप इसे ही रख लें…”
जुबानदारी में मैडम कर्नल साहब से भी एक रैंक ऊपर थीं। तुनक कर बोलीं “उठाइगिरे समझ रखा है क्या…? चोरी का माल घर में रखेंगे…? शर्म नहीं आती अपनी बला हमारे सिर बांधते…?”
यही वह वाक्य था जो त्यागी सुनना चाहता था। वाक्य खत्म होने से पहले ही उनके पैर पकड़ता हुआ बोला “मेमसाब आप ही बताइए किसके गले बांधूं… छह भैंस पहले ही पुलिस लाइन में बांध रखी हैं। पूरा दिन उनकी सानी पानी में गुजर जाता है। रात भर आपकी भैंस की तलाश में मारा-मारा घूमता हूं। पांच सौ रुपए रोज भैंसों के चारे पानी में जेब से जा रहे हैं… अब यह सातवीं किसके गले बांधू…? एक दर्जन भैंस चोर जेल भेज दिए। अदालत का चक्कर और मेरी जान को पड़ गया… मेमसाब आप ही बताइए क्या करूं…”
कर्नल साहब की बेगम कुछ कहतीं उससे पहले ही उनके बच्चे अपने मां-बाप से अंग्रेजी में गिटपिट करने लगे। बातचीत के बीच कर्नल साहब और उनकी पत्नी बंगले के भीतर चले गए। फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रही लड़की ने दोनों कथित चोरों और दरोगा जी को भी एक तरह से बंगले के बाहर खदेड़ दिया। त्यागी को उम्मीद नहीं थी कि बाजी अचानक यूं पलट जाएगी। लड़की को गेट बंद कर भीतर जाते देख त्यागी ने आखिरी दांव चला “बेटा जी अच्छा किया गेट बंद कर लिया… आपकी इस भैंस को आपके गेट पर ही बांध कर जाऊंगा” कहते हुए त्यागी ने हांक लगाई “अरे ओ टेंपो मास्टर… जरा भैंस उतार कर लाना… यहीं गेट पर बांधते हैं…”
त्यागी की धमकी काम कर गई। लड़की वापस लौटी। पूछा ‘चाहते क्या हो?”
“बता बे…” एक लड़के के पिछवाड़े लात जमाते हुए त्यागी ने कहा। लड़का टेप रिकार्ड की तरह शुरू हो गया। लड़के की बात बीच में काटते हुए लड़की ने अंग्रेजी में कहा “कल लंच के बाद आइएगा तब देखेंगे। और हां… यह चिल्लर अपने साथ ले जाना…।”
“तो भाई जी… भैंस पुराण खत्म कैंटोनमेंट का चार्ज शुरू… इस खुशी में जलेबियां खाइए” त्यागी ने मेरे मुंह में जबरन जलेबी ठूंसते हुए कहा।
“बिना भैंस मिले यह चमत्कार कैसे हो गया?” अब सवाल करने बारी हमारी थी।
“हुआ यूं कि सुबह सात बजे ही कप्तान साहब ने तलब कर लिया। आनन-फानन में हाजिर हुआ। कप्तान साहब बड़ी बेचैनी और बेसब्री के साथ टहल रहे थे। सलाम ठोकते ही बोले “अरे भाई कर्नल साहब को क्या कह आया… दिन निकलते ही मेरी जान को आ गए…”
“कप्तान साहब के तेवर और अंदाज बता रहे थे कि खड़े-खड़े ही लाइन हाजिर किया जाऊंगा लेकिन हुआ उल्टा। कप्तान साहब पूछने लगे कि कर्नल साहब को कौन सी घुट्टी पिलाई कि अपनी रिपोर्ट वापस लेने की जिद करने लगे। कप्तान साहब ने वजह पूछी तो बताया कि उन्हें अपनी भैंस की तलाश नहीं करवानी। कप्तान साहब ने पूछा क्यों नहीं करवानी? तो बोले हमारी मर्जी… नहीं करवानी। दिन निकलते ही कर्नल साहब के फोन और पेशकश से कप्तान साहब की पतलून सरकी जा रही थी। लेकिन बार-बार के इसरार से कप्तान साहब ने अंदाजा लगा लिया कि माजरा कुछ और ही है। काफी टटोलने के बाद भी कर्नल साहब ने वजह नहीं बताई तो कप्तान साहब ने कहा कि आपकी भैंस की तलाश हमारे लिए सबसे अहम टास्क है। महकमे का सबसे काबिल स्टाफ आपकी भैंस ढूंढ रहा है। आपकी भैंस हम ढूंढ कर देंगे कर्नल साहब। कर्नल साहब अपनी बात पर ही अड़े थे कि उन्हें भैंस नहीं ढुंढ़वानी। कप्तान साहब भी मानने वाले नहीं थे। कर्नल साहब की नर्मी देखते हुए उनकी सरकती पतलून अपनी जगह पर आ गई थी। पेंट संभालते हुए बोले अरे सर हमें तो जवाब राष्ट्रपति भवन को देना है। आप मेरी रिपोर्ट वापस कीजिए, राष्ट्रपति भवन मैं खुद देख लुंगा, कहते हुए कर्नल साहब अब तैश में आने लगे थे। उन्हें तैश में आता देख कप्तान साहब की सिट्टी-पिट्टी एक बार फिर गुम होने लगी। मिमियाते हुए बोले लेकिन सर…। कर्नल साहब ने यह कहते हुए फोन रख दिया कि दरोगा ने बहुत मेहनत की… आठ-दस भैंस बरामद भी की, हमारी किस्मत में हमारी भैंस मिलना नहीं है तो आपको क्यों परेशान करूं?”
“अपनी बात कहने के बाद कप्तान साहब ने माजरा पूछा तो मैंने सारा वाकया कह सुनाया। माजरा जानकर बोले कैंटोनमेंट थाने का सही वारिस मिल गया।”
क्या कहेंगे आप? अकल बड़ी कि भैंस…?
Posted Date:
August 30, 2020
3:32 pm Tags: आलोक यात्री, देख तमाशा दुनिया का, dekh tamasha duniya ka, Alok Yatri, Akl Badi Ya Bhains, अक्ल बड़ी या भैंस