साहित्योत्सव में मोहन राकेश पर हुई व्यापक बातचीत…
नई दिल्ली, 11 मार्च। साहित्योत्सव के पांचवे दिन हिंदी के प्रख्यात लेखक एवम नाटककार मोहन राकेश को उनकी जन्मशताब्दी पर याद किया गया और सवाल उठा कि क्या उनकी रचनाओं का मूल्यांकन उनके जीवन की घटनाओं के आधार पर होना चाहिए या उनके लिखे पर ? सवाल यह भी उठा कि क्या वे अपनी रचनाओं में स्त्री विरोधी थे? मोहन राकेश जन्मशती संगोष्ठी के दूसरे सत्र में यह सवाल उठा।
वरिष्ठ सांस्कृतिक पत्रकार अजित राय ने मोहन राकेश के तीनों नाटकों के हवाले से कहा कि उनके नाटकों में स्त्री पात्रों के साथ न्याय नहीं किया गया है और रचनाओं में रखैल शब्द का इसतेमाल किया गया है ।यह राकेश की स्त्री विरोधी दृष्टि का नतीजा है।
उन्होंने यह भी कहा कि राकेश ने आधे अधूरे में भी सारा दोष सावित्री पर मढ़ा है सिंघनिया पर नहीं।
प्रसिद्ध नाट्य आलोचक एवम रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर ने श्री राय की इस स्थापना को खारिज किया और कहा कि राकेश के बारे में इस तरह फैसला नहीं दिया जा सकता और मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।राकेश को संपूर्णता में देखा जाना चाहिए।यह सच है कि राकेश की चर्चा नाटककार के रूप में अधिक होती है बनिस्बत कहानीकार के लेकिन वे महत्वपूर्ण कहानीकार थे। उन्होंने कहा कि राकेश की डायरियों पत्रों आदि से उनके जीवन की जो कथा पढ़ने को मिलती है वही उनकी कहानियों में भी है और उनके नाटकों में भी।
इस पर श्री अजित राय का कहना था कि लेखक का मूल्यांकन उसके जीवन में घटित घटनाओं के आधार पर नहीं होना चाहिए।
आलोचक वैभव सिंह का कहना था कि नामवर सिंह जैसे आलोचकों ने राकेश का सही मूल्यांकन नहीं किया जबकि राकेश प्रेमचन्द अज्ञेय मुक्तिबोध की तरह एक संपूर्ण लेखक हैं। प्रसिद्ध आलोचक शम्भू गुप्त ने कहा कि राकेश ने 66 कहानियां लिखीं और वे शहरी चेतना के कहानीकारमाने जाते हैं जबकि उन्होंने ग्रामीण चेतना की भी कहानियां लिखीं।उनकी कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं।
इससे पहले उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने की और बीज वक्तव्य प्रख्यात हिंदी नाट्य समालोचक जयदेव तनेजा ने दिया।
आरंभिक वक्तव्य हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक गोविंद मिश्र ने दिया। अपने स्वागत वक्तव्य में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने मोहन राकेश के व्यक्तित्व को बहुआयामी बताते हुए कहा कि उनके लेखन के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।
श्री मिश्र ने कहा कि वह पहले ऐसे नाटककार हैं जिनके नाटक, नाटक के स्तर पर सौ फीसदी खरे उतरते हैं। उनके लेखन का द्वंद उनके निजी जीवन का भी द्वंद्व है और वह समाज को आँकने के लिए कई सूत्र देता है।
मोहन राकेश पर वृहद काम कर चुके जयदेव तनेजा ने कहा कि एक लेखक के रूप में मोहन राकेश हिंदी साहित्य के सबसे ज़्यादा एक्सपोस्ड लेखक हैं। उन्होंने अपने बारे में पूरी ईमानदारी और दबंगई से लिखा और स्वीकार किया। उन्होंने उनके बारे में गढ़ लिए गए बहुत से मिथकों के बारे में बात करते हुए कहा कि उन्होंने पहली बार हिंदी नाटककार को गरिमापूर्ण छवि प्रदान की। उन्होंने उनपर अपने पुराने घर, दादी और यायावरी जीवन जीने के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने उनकी डायरी आदि में लिखे उन अधूरे उपन्यासों/कहानियों आदि की विस्तार से चर्चा की, जो बाद में किसी और नाम से प्रकाशित हुए।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक ने कहा कि उनके व्यक्तित्व के बजाय हमें उनके लिखे हुए को पढ़ना चाहिए और उसपर बात करनी चाहिए। अपनी सृजनात्मकता को बचाए रखने के लिए उन्होंने अपने जीवन में कभी भी किसी बेताल को अपने कंधे पर बैठने नहीं दिया। मोहन राकेश के नाट्य साहित्य सत्र की अध्यक्षता करते हुए एम.के. रैना ने कहा कि मोहन राकेश ने थियेटर की आत्मा को पकड़ा और उसकी भाषा ही बदल दी। उन्होंने नए नाट्य निर्देशकों से अपील की कि वे उनके नाटकों को सीमित ढाँचे में न रखकर उनके साथ नए-नए प्रयोग करें। आशीष त्रिपाठी ने कहा कि वे अपने नाटकों को एक डिजाइनर की तरह सोचते हैं। उनके नाटकों की भाषा अभिनेताओं के लिए बहुत बेहतर करने के नए आयाम खोलती है।
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गोपालदास नीरज की जन्मशती पर ‘कवि नीरज: अप्रतिम रोमांटिक दार्शनिक’ शीर्षक से हुई परिचर्चा की अध्यक्षता प्रख्यात गीतकार बालस्वरूप राही ने की और इसमें उनके पुत्र मिलन प्रभात गुंजन के साथ ही अलका सरावगी, निरुपमा कोतरू और रत्नोत्तमा सेनगुप्ता ने हिस्सा लिया। ‘कथासंधि’ के अंतर्गत प्रख्यात हिंदी कथाकार जितेंद्र भाटिया का कथा-पाठ भी आज संपन्न हुआ।
अन्य आयोजित कार्यक्रमों में स्वातंत्र्योत्तर भारतीय साहित्य में राष्ट्रीयता, भारत का लोक साहित्य, साहित्य और अन्य कला-रूपों के बीच साझा बिंदु, उत्तर-पूर्वी और पूर्वी भारत के मिथक और दिव्य चरित्र आदि विषयों पर बातचीत हुई, वहीं राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन, भारत के महाकाव्य, धर्म साहित्य, मध्यकालीन भक्ति साहित्य एवं स्त्री लेखन के प्रस्फुटन पर बातचीत हुई।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत आज नलिनी जोशी द्वारा हिंदुस्तानी गायन प्रस्तुत किया गया।
अरविंद कुमार की रिपोर्ट
Posted Date:March 11, 2025
10:57 pm Tags: एम के रैना, जयदेव तनेजा, मोहन राकेश, देवेन्द्र राज अंकुर, साहित्योत्सव