इस बार भी पद्म सम्मानों की घोषणा कर दी गई है… हर बार की तरह यह सूची फिर कई सवाल खड़े कर रही है.. इन सवालों पर नज़र डाल रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अरविंद कुमार
मोदी सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल में हिंदी के किसी प्रसिद्ध लेखक को पद्मभूषण नहीं मिला। यूं तो पद्म पुरस्कार को लेकर अक्सर विवाद होते रहते हैं लेकिन हर बार यह उम्मीद की जाती है कि सरकार उनके साथ न्याय करेगी लेकिन जब इन पुरस्कारों की घोषणा होती है तो इस तरह की कई गड़बड़ियां दिखाई देती हैं और उस पर लोग टीका टिप्पणी भी करते हैं। मीडिया में भले ये सवाल न उठते हों पर सोशल मीडिया में अब जरूर उठने लगे हैं। इसी साल 101 वर्ष के लेखक रामदरश मिश्र को पद्मश्री पुरस्कार मिला तो कुछ लोगों ने उन्हें बधाइयां दीं लेकिन कुछ लोगों ने यह भी कहा की रामदरश मिश्र के साथ यह न्याय नहीं है बल्कि एक तरह से उनका अपमान है। उनके साहित्यिक अवदान को देखते हुए यह पुरस्कार बहुत ही छोटा है जबकि उनसे कम उम्र के अन्य कलाकारों को पद्म भूषण और पद्म विभूषण तक दिए गए लेकिन सरकार में बैठे लोगों को क्या पता कि साहित्य में रामदरश मिश्र का कितना योगदान है।
कुछ साल पहले जब नेमीचंद जैन को 90 वर्ष की अवस्था में पद्मश्री पुरस्कार मिला तभी यह सवाल उठा था कि आखिर उन्हें इस उम्र में पद्मश्री पुरस्कार क्यों मिला? अगर उन्हें पुरस्कार देना ही था तो पद्मभूषण दिया जाता जबकि 30-35 साल में या उससे भी कम उम्र में किसी खिलाड़ी को पद्मश्री पुरस्कार और पद्म भूषण भी मिल जाते हैं। 25 जनवरी को इस साल दिए गए पद्म सम्मानों की जो सूची जारी की गई है, उसमें 139 हस्तियां शामिल हैं। इनमें 7 को पद्म विभूषण, 19 को पद्म भूषण और 113 को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। पद्म भूषण से सम्मानित किए जाने वालों में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष और वरिष्ठ लेखक पत्रकार रामबहादुर राय भी हैं और साध्वी ऋतंभरा भी, प्रसार भारती के प्रमुख रहे वरिष्ठ पत्रकार ए सूर्यप्रकाश भी हैं और नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट के अध्यक्ष रहे अद्वैत गणनायक भी। पूरी लिस्ट आप इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं…
क्या हिंदी साहित्य में किसी लेखक का अवदान कलाकारों और खिलाड़ियों से कम है ?
आजादी के बाद 1954 में पद्म पुरस्कार शुरू हुए तो शुरू के दस वर्षों में सबसे पहले पद्म पुरस्कार हिंदी में राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त को मिला। उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उसके बाद 1956 में यह पुरस्कार महादेवी वर्मा को 1957 में हजार प्रसाद द्विवेदी और 1959 में दिनकर को पद्म भूषण मिला। दिनकर के बाद 1960 में शिवपूजन सहाय और बाल कृष्ण शर्मा नवीन को तथा 1963 में राहुल सांकृत्यायन को यह सम्मान मिला लेकिन निराला को नहीं मिला। रामकुमार वर्मा, माखन लाल चतुर्वेदी, वृंदावन लाल वर्मा, सुमित्रानंदन पंत , राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह ,अमृतलाल नागर, नीरज जैसे अनेक लेखकों को मिलता रहा। बाद के दशकों में भी यशपाल, भगवती चरण वर्मा, जैनेंद्र कुमार को पद्मभूषण मिला ।उन्हें पद्म श्री देकर अपमानित नहीं किया गया। रेणु को जरूर पद्म श्री मिला जो उनके कद लायक नहीं था। बाद में भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा ,कमलेश्वर और विद्या निवास मिश्र तथा श्रीलाल शुक्ल को पद्मभूषण पुरस्कार मिले लेकिन पिछले कई वर्षों से हिंदी के लेखकों को कोई पद्म भूषण पुरस्कार नहीं मिला। पद्म विभूषण की तो बात ही छोड़ दीजिए क्योंकि 75 साल में अब तक हिंदी के मात्र दो लेखकों को ही पद्मभूषण मिला है जिनमें महादेवी वर्मा और रायकृष्ण दास शामिल हैं। कपिला वात्सायन को हिंदी की लेखिका के रूप में नहीं बल्कि संस्कृतिकर्मी के रूप में पद्मविभूषण दिया गया। पर अब तो यह आलम है कि ना पद्म विभूषण और नहीं पद्म भूषण बल्कि पद्म श्री का झुनझुना थमा दिया जाता रहा। जब मोदी सरकार आई तो लोगों को लगा कि हिंदी को उचित सम्मान मिलेगा क्योंकि मोदी हिंदी प्रेमी व्यक्ति हैं, हिंदी में भाषण देते रहते हैं। शायद इसलिए वह हिंदी के विकास और प्रचार प्रसार के लिए कुछ काम करेंगे लेकिन देखा यह गया कि प्रधानमंत्री मोदी हिंदी में भाषण तो देते हैं लेकिन हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए कुछ विशेष करते नहीं है। विश्व हिंदी सम्मेलन का भी जिस तरह पतन हुआ और वह भीड़ तथा मेले में तब्दील होता गया, उसे देखते हुए उनसे उम्मीद जाती रही और अब पिछले 10 सालों में पद्म पुरस्कारों की सूची में हिंदी के लेखकों को पद्मभूषण न देकर एक पद्मश्री झुंझुने की तरह थमा दिया जाता है। रामदरश मिश्र से पहले उन्हीं के शिष्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। क्या विश्वनाथ त्रिपाठी, निर्मला जैन, विनोद कुमार शुक्ल, ऋतुराज, प्रयाग शुक्ल जैसे लेखक किसी पद्म पुरस्कार के काबिल नहीं हैं ? क्या मृदुल गर्ग , ममता कालिया जैसी लेखिकाओं को यह पुरस्कार नहीं मिलना चाहिए ? लेकिन सरकार की निगाह में यह सब आता नहीं है। माना कि अशोक वाजपेयी पुरस्कार वापसी मुहिम के नेता रहे। वर्तमान सरकार के वे कोपभाजन हैं। वैसे पहले भी कई बड़े लेखकों को यह पुरस्कार नहीं मिला। रामविलास शर्मा, शमशेर बहादुर सिंह, नागार्जुन, त्रिलोचन, नामवर सिंह जैसे अनेक लेखक इससे वंचित रहे। मनमोहन सिंह की सरकार ने भीष्म साहनी को, वाजपेयी सरकार में भी निर्मल वर्मा, विद्यानिवास मिश्र और कमलेश्वर जैसे लोगों को यह पुरस्कार मिले लेकिन कालांतर में सरकार ने भी कोई ध्यान नहीं दिया। विष्णु प्रभाकर को भी पद्मभूषण पुरस्कार मिला था और जब वह यह पुरस्कार लेने राष्ट्रपति भवन गए थे तो उनके साथ गए उनके पोते को राष्ट्रपति भवन में प्रवेश नहीं करने दिया गया। इसपर खासा विवाद हुआ था और यह उम्मीद की जा रही थी कि विष्णु प्रभाकर ये पुरस्कार लौटा देंगे लेकिन बाद में वह पुरस्कार लेने गए थे। कृष्णा सोबती एक अपवाद जरूर हैं जिन्होंने पद्म भूषण पुरस्कार लेने से मना कर दिया था। भाषा के सवाल पर सुमित्रानंदन पंत ने जरूर पद भूषण लौटा दिया था लेकिन हिंदी के अन्य किसी लेखक ने कभी कोई पद्म पुरस्कार नहीं लौटाया है। क्या हिंदी में पद्म विभूषण से सम्मानित होने वाला आज कोई लेखक नहीं है। क्या संघ परिवार में भी कोई लेखक नहीं है। मोदी सरकार ने पद्म भूषण दिया तो भद्राचार्य वशिष्ठ त्रिपाठी और बलदेव उपाध्याय को दिया न कि कमलेश दत्त त्रिपाठी औऱ राधा वल्लभ त्रिपाठी जैसे विद्वानों को जो संस्कृत के स्कॉलर होते हुए आधुनिक और प्रगतिशील थे।