हिंदी की लेखिकाओं को शिवरानी देवी की तरह दृष्टि अपनानी चाहिए –अशोक वाजपेयी
नई दिल्ली। हिंदी के जाने माने लेखक, कवि और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने लेखकों खासकर महिला रचनाकारों से अपने लेखन में अपने समय को दर्ज करते हुए राजनीतिक दृष्टि अपनाने की अपील की है। वाजपेयी ने 21 जनवरी को दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में प्रेमचन्द की पत्नी शिवरानी देवी के तीन कहांनी संग्रहों का लोकार्पण करते हुए यह बात कही। शिवरानी देवी के दो अनुपलब्ध कहांनी संग्रह “नारी हृदय “और” “कौमुदी ” का सात दशक बाद पुनर्प्रकाशन किया गया और उनकी असंकलित कहानियों का नया संग्रह “पगली ” उनके निधन के करीब 50 साल बाद अब आया है।
अशोक वाजपेयी ने वर्तमान सत्त्ता की राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज लेखकों को अपने समय का सच कहने की जरूरत है।शिवरानी देवी अपने समय से आगे की लेखिका थीं और उनकी कहानियों में निजता के साथ साथ राजनीतिक दृष्टि भी है। आज की लेखिकाओं में वह दृष्टि नहीं दिखाई पड़ती जो शिवरानी जी के पास थी। उंन्होने कहा कि शिवरानी जी की कहांनी ‘समझौता’ दो पात्रों के संवाद की अनूठी कहानी है। वैसी कहांनी हिंदी में मुझे दिखाई नहीं देती। उंन्होने शिवरानी जी की चर्चित कहानी ‘साहस’ की भी चर्चा की।
स्त्री दर्पण की ओर से शिवपूजन सहाय की 63 वीं पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह में “स्त्री लेखा “पत्रिका के स्त्री रंगमंच अंक का भी लोकार्पण किया गया जो रेखा जैन की जन्मशती पर केंद्रित है।
प्रेमचन्द की जीवनी “कलम का सिपाही ” का अंग्रेजी अनुवाद करने वाले हरीश त्रिवेदी ने कहा कि उन्हें शिवरानी जी से मिंलने के अनेक अवसर मिले लेकिन जब भी वे मिलीं, बहुत ही शांत स्वभाव की महिला थीं और घर में कम ही बात करती थीं। अपने बेटों श्रीपत राय और अमृत राय से भी उनका संवाद बहुत कम होता था। मुझे यह देखकर आश्चर्य भी हुआ कि इसी शिवरानी जी ने अपने जमाने मे ” साहस” जैसी साहसिक कहांनी लिखी जिसमें बेमेल विवाह का तीखा विरोध करते हुए लड़की ने वर को ही जूते से मंडप में पीट दिया। हरीश जी ने कहा कि प्रेमचन्द और शिवरानी देवी में तुलना करने और शिवरानी जी को बढ़चढ़ कर बताने की भी जरूरत नहीं है।
अनामिका ने कहा कि शिवरानी देवी ने स्त्रियों की आंखें साफ करने का काम किया। उनके लेखन में मनोविज्ञान को भी बखूबी समझा गया है जैसे वो लिखती हैं कि अगर किसी को ध्यान से देख लो तो उससे नफ़रत करते नहीं बनता है। प्रेमचंद और शिवरानी देवी ने बूढ़ी काकी शीर्षक से अलग अलग कहानी लिखी। प्रेमचंद की इस कहानी में समय वातावरण का चित्रण बहुत सुंदर हुआ है वहीं शिवरानी देवी की बूढ़ी काकी में लेखिका ने बेहद अंदर तक जाकर उसके संवेदनात्मक पक्ष को बारीकी औऱ खूबसूरती से उभारा है।
रोहिणी अग्रवाल ने कहा कि आज हमें शिवरानी देवी को केवल याद करने की नहीं बल्कि उनकी तरह योद्धा स्त्री बनकर समाज में स्त्रियों के अधिकार के लिए लड़ने की जरूरत है।
नीला प्रसाद ने “ साहस” कहानी का विश्लेषण करते हुए लेखिका के साहस की चर्चा की और कहा कि 1924 में एक स्त्री द्वारा बेमेल विवाह का विरोध करते हुए वर को जूते से मंडप में मारना कितनी बड़ी घटना थी क्योंकि आज भी कोई लड़की यह साहस नहीं कर पाती है।
विजय नारायण ने अपने नाना शिवपूजन सहाय का प्रेमचन्द तथा शिवरानी जी के साथ आत्मीय संबंधों का जिक्र करते हुए उस दौर को याद किया जब बनारस में प्रेमचन्द के साथ लेखकों का जुटान होता था।
समारोह में विजय नारायण के पिता और स्वतंत्रता सेनानी रंगकर्मी बीरेंद्र नारायण की अंग्रेजी में थिएटर पर लिखी पुस्तक के आवरण का भी लोकार्पण किया गया।
दिव्या जोशी ने कल्पना मनोरमा की किताब की महेश दर्पण द्वारा की गई समीक्षा का पाठ किया। मीनाक्षी प्रसाद ने शिवरानी जी को अपनी काव्यांजलि पेश की और एक उनकी स्मृति में एक गीत भी गाया।
समारोह को मशहूर लेखक, अनुवादक और शिक्षाविद हरीश त्रिवेदी, चर्चित आलोचक रोहिणी अग्रवाल, साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि अनामिका, कहानीकार नीला प्रसाद और शिवपूजन सहाय के नाती विजय नारायण ने भी संबोधित किया। समारोह में रश्मि वाजपेयी , नासिरा शर्मा, रेखा अवस्थी, गिरधर राठी, विभा सिंह चौहान, अनिल अनलहातु, प्रताप सिंह, जयश्री पुरवार, मीना झा वाज़दा खान, अतुल सिन्हा, जितेंद्र श्रीवस्तव, ज्योतिष जोशी, अशोक कुमार, विभा बिष्ट, श्याम सुशील, मनोज मोहन, रश्मि भारद्वाज, अशोक गुप्ता, प्रसून लतान्त, शुभा दिवेदी आदि मौजूद थे। संचालन कल्पना मनोरमा और विशाल पांडेय ने किया।
विवाद – क्या “साहस” शिवरानी देवी की पहली कहांनी नहीं थी और वह 1924 में” चाँद” में नहीं छपी थी?
प्रेमचन्द की पत्नी शिवरानी देवी की पहली कहांनी को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। शिवरानी देवी ने 1944 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में लिखा था कि उनकी पहली कहांनी “साहस” थी जो 1924 में चाँद पत्रिका में छपी थी लेकिन चाँद पत्रिका पर शोध करनेवाले इलाहाबाद विश्विद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर आशुतोष पार्थेश्वर ने दावा किया है कि 1924 में चाँद में शिवरानी देवी की कहानी साहस नहीं छपी थी।अब तक हिंदी साहित्य में साहस को ही शिवरानी देवी की पहली कहांनी माना जाता था।
स्त्री दर्पण मंच ने शिवरानी देवी: लेखन के सौ साल नाम से जो कार्यक्रम आयोजित किया था उसमें वक्ताओं ने इस कहानी की तारीफ की।यह कहांनी शिवरानी देवी के 1933 में प्रकाशित पहले कहांनी संग्रह “नारी हृदय” में शामिल है। प्रेमचन्द ने खुद सरस्वती प्रेस से इसे छापा था।
फेसबुक पर जब इस कार्यक्रम की रिपोर्ट छपी तो श्री पारथेश्वर ने लिखा कि यह कहांनी 1924 में चाँद में नहीं छपी थी। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में 1924 में चाँद में प्रकाशित रचनाओं की पूरी सूची लगाई।
इसके जवाब में हिंदी नवजागरण के अधेयता सुजीत कुमार सिंह ने शिवरानी देवी की किताब प्रेमचन्द घर में के पेज नम्बर 82 की तस्वीर लगाई जिसमें शिवरानी जी ने खुद लिखा कि उनकी पहली कहांनी साहस 1924 में चाँद में छपी थी और उसके संपादक रामरख सहगल ने प्रेमचन्द को पत्र लिखकर भी बधाई दी थी और प्रेमचन्द ने भी शिवरानी को कहा था -अच्छा आप भी लेखिका बन गईं।
पारथेश्वर का कहना है कि इस बात की खोज की जानी चाहिए कि शिवरानी की पहली कहांनी कौन थी और साहस कहांनी कब और किस पत्रिका में छपी।
क्या पुस्तक में यह छापे की अशुद्धि की वजह से हुआ या शिवरानी देवी ने लिखते समय साल गलत लिखा पर इस ओर ध्यान किसी ने नहीं दिया।न प्रेमचन्द के पुत्रों ने और प्रेमचन्द के अधिकारी विद्वान कमल किशोर गोयनका ने ध्यान दिया।
नई किताब प्रकाशन ने नारी हृदय को छापा है जिसकी भूमिका प्रेमचन्द की पौत्री सारा राय ने लिखी है पर उंन्होने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया।
अगर श्री पार्थेश्वेर का दावा सही है तो शिवरानी देवी की पहली कहानी के रहस्य से पर्दे उठेंगे।अब एक सवाल यह भी है कि नारी हृदय पुस्तक में शिवपूजन सहाय की भूमिका भी नहीं है जिसे प्रेमचन्द ने शिवपूजन जी से लिखवाई थी।प्रेमचन्द के पत्रों में इसका जिक्र मिलता है और प्रेमचन्द पर लिखे गए संस्मरण में भी शिवपूजन जी ने इसका जिक्र किया है।
स्त्री दर्पण मंच के संयोजक और स्त्री लेखा पत्रिका के संपादक विमल कुमार की रिपोर्ट
Posted Date:
January 22, 2025
11:41 am
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