हिंदी साहित्य में जन्मदिन की परंपरा: संदर्भ अशोक वाजपेयी
अशोक वाजपेयी ने प्रतिरोध की कविताएं पढ़कर मनाया जन्मदिन 
युवा पीढी से भी किया संवाद 
आधुनिक हिंदी साहित्य में लेखकों  द्वारा अपना जन्मदिन मनाने की परंपरा कब शुरू हुई ,इसके बारे में कोई  पुख्ता जानकारी नहीं मिलती है। क्या भारतेंदु हरिश्चंद्र या सितारे हिंद या महावीर प्रसाद द्विवेदी अपना जन्मदिन मनाते थे ?शायद नहीं ,यह जरूर जिक्र मिलता है कि महावीर प्रसाद द्विवेदी जब 70 वर्ष के हुए थे ,तो 1932 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा उनका जन्मदिन मनाया गया था और इस इस अवसर पर एक अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया गया था जिसका संपादन राय कृष्ण दास, श्यामसुंदर दास और बाबू शिवपूजन सहाय ने किया था। इससे पहले मैथिली शरण गुप्त ने अपना 50 वां जन्म दिन अपने गांव चिरगांव में मनाया था और इस बारे में उन्होंने पहले महात्मा गांधी को पत्र लिखा था तो गांधी जी ने उन्हें अपना जन्मदिन न मनाने की सलाह दी थी लेकिन बाद में गांधीजी उनके गांव गए थे और इस समारोह में उन्होंने उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि दी थी ।प्रेमचंद ने अपना जन्मदिन मनाया हो, इसका कहीं कोई जिक्र  उनपर लिखी किताबों में नहीं मिलता लेकिन जब निराला 50 वर्ष के हुए थे तो उनके सम्मान में एक स्वर्ण जयंती समारोह काशी में हुआ था और उसके आयोजक  नंदुलारे वाजपेयी  थे। इसके बाद हिंदी में किसी लेखक के  जन्मदिन मनाया जाने की चर्चा पंत की षष्टी पूर्ति   के रूप में जरूर होती है, जब  हरिवंश राय बच्चन ने दिल्ली में अपने बंगले में  उसे आयोजित किया था। बच्चन जी  भी अपना जन्मदिन अपने घर में अपने प्रशंसकों और लेखकों के साथ मनाते थे।  निराला बसंत पंचमी को अपना जन्मदिन मनाते थे लेकिन शायद कोई ताम झाम नहीं करते थे ।महादेवी वर्मा भी अपना जन्मदिन चुपचाप ही मानती  थी, उसका कोई सार्वजनिक आयोजन शायद नहीं करती थी लेकिन यह सच है कि उन पर भी उस जमाने में अभिनंदन ग्रंथ निकले थे। जन्मदिन मनाने की परंपरा आजादी के बाद लेखकों में निजी तौर पर ही रही ।अज्ञेय भी अपना जन्मदिन सार्वजनिक रूप से शायद नहीं मानते थे ।लोग उन्हें उनके जन्मदिन पर मुबारक बाद देते थे।
मुक्तिबोध का ऐसा कोई जलवा नहीं था कि वह जन्मदिन मनाएं और उन्होंने जैसा जीवन जिया उसमें इस तरह की कोई गुंजाइश नहीं थी।रघुवीर सहाय जब 60 वर्ष के हुए तो उन  पर लिखावट ने एक आयोजन किया था।
सच पूछिये तो सार्वजनिक रूप से अपना  जन्मदिन मनाने की परंपरा  बाद में राजेंद्र यादव ने विकसित की थी और हर साल उनके जन्मदिनपर पार्टियां होती थीं।उनमें रसरंजन भी होता था।
नामवर सिंह, निर्मल वर्मा  कुंवर नारायण केदारनाथ सिंह सार्वजनिक रूप से जन्मदिन नहीं मनाते थे।श्रीलाल शुक्ल की एक जन्मदिन पार्टी उनके 75 वें जन्मदिन पर आयोजित हुई थी। नामवर जी जब 75 वर्ष के हुए तो भव्य तरीके से जन्मदिन मनाया गया। प्रभाष जोशी ने देश के कई शहरों में आयोजन हुए।कई राजनेता आये।90 वें वर्ष पर और भव्य तरीके से।गृह मंत्री राजनाथ सिंह आये तब बड़ी आलोचना हुई नामवर जी की।  विश्वनाथ त्रिपाठी और नित्यानंद तिवारी के शिष्यों ने और मैनेजर पांडेय के शिष्यों ने अपने गुरु के जन्मदिन मनाए लेकिन  रामविलास शर्मा त्रिलोचन शमशेर  जैसे लोग  इससे विमुख रहे।
जन्मदिन मनाना  मनुष्य की जिंदादिली की निशानी है। उल्लास और उत्सवधर्मिता की निशानी है।लेकिन यह सच है कि जिसके पास संसाधन है और जिनके फॉलोवर बड़ी संख्या में हैं, वही जन्मदिन मनाता है।
 
अशोक वाजपेयी ने अपना 84 वाँ जन्मदिन मनाया। जब राजेन्द्र यादव 80 वर्ष के हुए थे तो उन्होंने उनक़ा जन्मदिन भी मनाया था यद्यपि उनसे उनकी नोक झोंक चलती रहती थी। क्या अशोक जी आत्म प्रदर्शन के लिए जन्म दिन मनाते हैं या हिंदी साहित्य में एक जीवंत माहौल बनाने के लिए मनाते हैं? क्या वह ऐसा कर लेखकों को एक सूत्र में बांधते हैं?
 
कायदे से हिंदी समाज को चाहिए कि वह उनका जन्मदिन मनाए लेकिन हिंदी समाज रसरंजन के लिए तो दौड़ जाता है पर वह अपने वरिष्ठ लेखकों के प्रति अपना कर्तव्य तय नहीं कर पाता। शायद यही कारण है कि लेखक के परिजनों को यह आयोजन करना पड़ता है। कुछ आलोचक यह भी सवाल उठाते हैं कि इस तरह जन्मदिन मनाना लेखक का शक्ति प्रदर्शन है। लेकिन अब हिंदी में कोई नेतृत्वकर्ता नहीं है।नामवर जी और यादव जी के बाद हिंदी की दुनिया एक तरह से अनाथ हो गयी है। ऐसे में अशोक जी अपनी सक्रियता से युवा पीढ़ी को प्रेरित कर रहे। रज़ा फाउंडेशन की गतिविधियों के जरिये वे हिंदी समाज को समृद्ध कर रहे हैं। अपने 84 वें जन्मदिन को भी उन्होंने युवा लोगों से संवाद करते हुए दो किताबें  निकाली।
युवा कवयित्री पूनम अरोड़ा की पुस्तक’ परख” का लोकार्पण किया गया। उन्होंने अशोक वाजपेयी से एक लंबा इंटरव्यू लिया है। करीब दो सौ पेज की इस किताब में वह पूरा इंटरव्यू है।
अशोक वाजपेयी ने इस किताब का लोकार्पण अपने 84 वें जन्म दिन पर किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में इतना बड़ा इंटरव्यू कभी नहीं दिया कि वह एक पूरी किताब बन जाए। करीब 250 सवाल इस पुस्तक में होंगे। इस इंटरव्यू को तैयार करने में 3 साल का समय लगा।
उन्होंने अपने जीवन और साहित्य के बारे में सवालों के जवाब दिए हैं। इसके अलावा अनामिका अनु द्वारा संपादित “अर्धसत्यों का पूर्ण कवि अशोक वाजपेयी” का भी लोकार्पण हुआ।
16 जनवरी को वाजपेयी के जन्मदिन पर अपूर्वानंद पूर्वा भारद्वाज, हैदर रज़ा, अलका रंजन आदि की टीम ने सुंदर काव्य पाठ किया।
अशोक जी ने भी कई सुंदर कविताएं पढ़ीं। इनमें कई प्रतिरोध की कविताएं भी शामिल हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में सांप्रदायिकता फासीवाद और कठमुल्लेपन का खास विरोध किया। पिछले दस वर्षों से वे लगातार सत्ता प्रतिष्ठान का विरोध कर रहे हैं।
उनके पुत्र कबीर वाजपेयी ने अपने पिता पर एक कविता पढ़ी जो काफी सराही गयी।
जन्मदिन की सार्थकता इसमें है कि युवा पीढ़ी आपसे प्रेरणा ले और आपके पदचिन्हों पर चले न कि रसरंजन कर घर चल जाये और आपके किये को भूल जाये। अशोक जी ने जिस पीढ़ी को सींचा है क्या वह उनके कदमों पर चलेगी और उनकी परंपरा को बढ़ाएगी ?
आलेख – विमल कुमार
फोटो क्रेडिट – विनोद भारद्वाज, नितिन गुप्ता
Posted Date:

January 17, 2025

8:36 pm Tags: ,

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