स्त्री लेखन:2024
हिंदी साहित्य में साल भर की घटनाओं और किताबों का लेखा जोखा कम ही होता है पर जो भी होता है ,उसमें पुरुष लेखकों को अधिक जगह मिलती है और स्त्री रचनाकारों पर ध्यान कम दिया जाता है, इसलिए ‘स्त्री दर्पण’ ने स्त्री लेखन की वार्षिकी निकालना शुरू किया है ताकि स्त्री रचनाधर्मिता पर लोगों की निगाह जाये। अनामिका चक्रवर्ती का यह आलेख 2024 में महिला रचनाकारों के लेखन को काफी हद तक समेटने की एक कोशिश है… 7 रंग के पाठकों के लिए स्त्री दर्पण की वेबसाइट से साभार यह आलेख पेश है…
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वर्ष 2024 हिंदी साहित्य के लिए इस मायने में यादगार रहेगा कि इस साल स्त्री रचनाकारों ने अपनी कृतियों से साहित्य को समृद्ध किया,स्त्री विमर्श को एक नई गति दी , कई ने प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल किए तो मालती जोशी, उषा किरण खान और शांति सुमन जैसी लेखिकाएँ हमसे बिछड़ भी गयीं।
प्रेमचन्द की पत्नी और अपने ज़माने की प्रखर कथाकार शिवरानी देवी के लेखन का यह सौंवा साल रहा तो प्रख्यात बाल नाटककार और रंगकर्मी रेखा जैन का यह शताब्दी वर्ष रहा। इस साल प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती की जन्मशती मनाने का सिलसिला भी शुरू हुआ। वैसे अगले वर्ष उनके सौ साल हो रहे हैं। साहित्य अकादमी ने कृष्णा जी पर दो दिवसीय सेमिनार भी आयोजित किया। कृष्णा जी के दो उपन्यास भी इस वर्ष आये जो अब तक अप्रकाशित थे। इनमें एक उनके बहुचर्चित उपन्यास “जिंदगीनामा” का खण्ड दो है जो ” वह समय” के नाम से एक स्वतंत्र रचना के रूप में छापा गया है। कृष्णा जी की किताब “जिंदगीनामा “को लेकर अमृता प्रीतम के साथ उनका बीस साल तक मुकदमा चला था जिसके कारण वह “जिन्दगीनामा” खण्ड दो नहीं निकाल सकीं। अब उनके निधन के बाद यह प्रकाशित हुआ है। उनका एक और अप्रकाशित उपन्यास “गर्दन पर तिलक ” भी आया है। राजकमल प्रकाशन ने “दो उपन्यास “नाम से इसे एक साथ छापा है। शिवरानी देवी को इस वर्ष जिस तरह याद किया जाना चाहिए था, किसी ने किया नहीं। स्त्री दर्पण ने उन पर पहली बार एक ऑनलाइन चर्चा आयोजित की पर हिंदी समाज ने उनकी सुध नहीं ली।
रेखा जैन पर दिल्ली में रज़ा फाउंडेशन और उमंग ने समारोह किए अन्यथा एनएसडी संगीत नाटक अकादमी ने कुछ भी नहीं किया, यह गहरी चिंता की बात है। स्त्री दर्पण ने एक अंक निकाला अन्यथा अन्य पत्र पत्रिकाओं ने भी उन्हें याद नहीं किया।
इस साल उषा किरण खान के जाने से हिंदी साहित्य थोड़ा सूना हो गया। वे पटना में आयाम के माध्यम से स्त्री रचनाकारों को एक नई दिशा दे रहीं थीं। इस साल विश्व पुस्तक मेले में ही उनके नहीं रहने की हृदयविदारक सूचना मिली थी। वह हिंदी की ही नहीं मैथिली की भी जान थीं और 82 साल की उम्र में भी सक्रिय थीं।
इस साल हिंदी की प्रथम महिला नवगीतकार शांति सुमन हमसे बिछड़ गयीं। उनका निधन हिंदी के लिए अपूरणीय क्षति है। सत्तर के दशक में उन्होंने अपने नवगीतों से अपनी पहचान बनाई थी। उन्होंने अपने गीतों में सामाजिक यथार्थ को पेश किया था और जनवादी चेतना को स्थापित किया था। प्रसिद्ध नवगीतकार बुद्धिनाथ मिश्र ने उनके निधन पर एक कविता लिखकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी जो काफी सराही गयी।ऊषा जी का जाना केवल बिहार ही नहीं बल्कि समस्त हिंदी समाज के लिए दुखद रहा।
जहां तक पुरस्कारों की बात है, इस साल प्रतिष्ठित लेखिका सूर्यबाला को व्यास संम्मान मिला तो चर्चित कवि गगन गिल को साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई जिसका हिंदी साहित्य समाज ने बहुत स्वागत किया। गत 70 साल में अब तक दो कवयित्रियों को यह सम्मान मिल पाया है। प्रसिद्ध कवयित्री अनामिका के बाद गगन गिल दूसरी कवयित्री हैं जिन्हें यह सम्मान मिला। गत वर्ष विश्व पुस्तक मेले में “माटी “पत्रिका का उन पर एक महाविशेषांक आने के बाद से वह लगातार चर्चा में थीं। वरिष्ठ लेखिका सूर्यबाला पिछले 50 साल से हिंदी साहित्य में सृजनरत हैं । वह” धर्मयुग” के जमाने से लिख रही हैं। उन्हें व्यास सम्मान मिलना स्त्री लेखन का सम्मान है।
इस साल प्रसिद्ध कथाकार प्रत्यक्षा को वनमाली कथा सम्मान मिला तो चर्चित कवयित्री अनुराधा सिंह को केदारनाथ अग्रवाल सम्मान से नवाजा गया तो युवा कवयित्री प्रिया वर्मा को प्रतिष्ठित भारत भूषम अग्रवाल पुरस्कार मिला। ये दोनों कवयित्रियाँ लगातार अपने लेखन से हिंदी साहित्य को आश्वस्त कर रहीं हैं और हिंदी कविता को समृद्ध कर रही हैं।
युवा कवयित्री नेहा नरुका को” स्पंदन” पुरस्कार मिला तो निर्देश निधि ,अंजू शर्मा, गीता श्री और आशा पांडेय को रमाकांत स्मृति पुरस्कार मिला तो युवा लेखिका उपासना को मीरा पुरस्कार मिला। प्रसिद्ध आलोचक रोहिणी अग्रवाल को मीरा संम्मान भी इसी वर्ष दिया गया। युवा लेखिका रेणु यादव को इस वर्ष इफ्फ्को युवा लेखन सम्मान मिला तो दिव्या विजय को पहला शशि भूषण सम्मान दिया गया। डॉक्टर सुनीता को भी इस साल वैदेही पुरस्कार मिला। रंजीता सिंह को गोपाल राम गहमरी पत्रकारिता सम्मान मिला।
नेहा नरुका और प्रिया वर्मा की कविता को इस वर्ष वरिष्ठ आलोचक विजय कुमार ने विशेष रूप से रेखांकित किया। वंदना बाजपेई जी को इसी वर्ष उनकी कहानी “ज्योति “के लिए कथा रंग सम्मान मिला यह कहानी भी बहुत चर्चा में रही ।
इस साल कविता ,कहांनी ,उपन्यास अनुवाद, नाटक आलोचना डायरी ,और जीवनी लेखन में भी हिंदी की लेखिकाओं ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया ।
इस साल प्रख्यात नर्तक शंभू महाराज की जीवनी चर्चित कवयित्री जोशना बनर्जी ने लिखी जो रज़ा फाउंडेशन की जीवनी सीरीज में आई। हिंदी साहित्य के लिए एक घटना है क्योंकि हिंदी में नृत्यांगनाओं और नर्तक गुरुओं की कमी है। बाला सरस्वती, रुक्मणि देव, अरुंडेल और सितारा देवी पर कोई जीवनी कायदे से हिंदी में नहीं आई।
वरिष्ठ लेखिकाओं में नासिरा शर्मा का “फलीस्तीन: एक नया कर्बला” नामक एक जरुरी किताब आई। उन्होंने ईरान और इराक की महिलाओं की हालत पर काफी लिखा है। वे कहांनी उपन्यास लिखने के अलावा मुस्लिम औरतों की ज्वलंत समस्याओं पर लगातार लिखती रही हैं।
कविता के क्षेत्र में वरिष्ठ कवयित्री सुमन केसरी का काव्य नाटक “हिडिम्बा “भी इस साल आया जिसने लोगों का ध्यान खींचा। वह लगातार महाभारत के स्त्री पात्रों के जरिये नया स्त्री विमर्श खड़ा कर रही हैं और मिथकों की नई व्याख्या कर रही हैं।
युवा कवयित्री संध्या निवेदिता का संग्रह “सुनो जोगी “काफी चर्चा में रहा। सपना भट्ट इस साल अपना कविता संग्रह “भाषा में नहीं” लेकर आईं। वह लगातार अच्छी प्रेम कविताएं लिख रही हैं। पर उनका अब स्वर थोड़ा बदला है।
युवा कवयित्री ममता जयंत, पल्लवी गर्ग अपना पहला कविता संग्रह लेकर आईं तो चर्चित कवयित्री बाबुषा कोहली अपना पहला उपन्यास ” लौ” लेकर आईं जिसकी सोशल मीडिया पर चर्चा रही। बाबुषा साहित्य में नवाचार और नए प्रयोग तथा कल्पनाशीलता के लिए जानी जाती हैं। उनसे हिंदी साहित्य को काफी उम्मीदें हैं। युवा कवयित्री ममता जयंत और पल्लवी गर्ग के कविता संग्रहों ने भी एक उम्मीद जगाई है। चर्चित कथाकार प्रियदर्शन ने ममता जयंत और बाबुषा की किताबों पर फ्लैप लिखा है।
युवा कवयित्री ममता जयंत का “मनुष्य न कहना”और पल्लवी गर्ग का “मेरे शब्दों में छुपकर” भी चर्चा में रहा। देखना है ये दोनों अपनी काव्ययात्रा किस तरह विकसित करती हैं।
युवा कवयित्री तिथि दानी का भी संग्रह इस साल आया। वे लंदन में रहते हुए लगातार कविताएँ लिख रही हैं । सरिता कुमारी का कविता संग्रह “नदी और विद्रोह”आया तो किरण सिंह का कविता संग्रह ” लय की लहरों पर ” भी आया । इसी वर्ष चर्चित अनुवादक मीता दास का महत्वपूर्ण कविता संग्रह ‘देश द्रोह की हांडी’ भी प्रकाशित हुआ।
युवा कवयित्री सीमा सिंह का भी पहला कविता संग्रह इस साल आया जिसने ध्यान खींचा। चर्चित कथाकार निधि अग्रवाल कविता संग्रह “कोई फ्लेमिंगो कभी नीला नहीं होता” लेकर आईं।
इस साल वरिष्ठ कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ और प्रत्यक्षा अपने नए कथा संग्रह लेकर आईं। दोनों ने अपने कहांनी लेखन में एक नया मयार बनाया है और भाषा शिल्प और कथ्य से हिंदी के कथा साहित्य को नई ऊंचाई दी है। वे लगातार सक्रिय हैं और हिंदी को समृद्ध कर रही हैं। मनीषा जी के नए कहांनी संग्रह “वन्या “को लोगों ने हाथों हाथ लिया। प्रत्यक्षा का “अतर” एक नए आस्वाद लिए हुए है। वह लीक से हटकर कहानियां लिखती हैं।
वरिष्ठ लेखिका विभा रानी “भरतपुर लूट गयो “नामक एक कहानी संग्रह लेकर आईं। उन्होंने कुछ अच्छी कहानियां लिखी हैं पर आलोचकों का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। सुमन गुर्जर “भीलन लूटी कर्बला” “नामक किताब एक नई भाव भूमि पर लेकर आईं।
शर्मिष्ठा की चर्चित लेखिका अणु शक्ति सिंह भी अपना उपन्यास “कित कित ” लेकर आईं। उनकी कहानियों ने हाल के वर्षों में लोगों का ध्यान खींचा है। अगर वह अपने कथा लेखन को लेकर गम्भीर हों तो उनसे उम्मीद है हिन्दी साहित्य को।
माँ पर 84 लेखिकाओं के संस्मरण की पुस्तक “हमारी अम्मा’ भी इस साल लोकार्पित हुई। वरिष्ठ लेखिका रीता दास राम ने इसका सम्पादन किया है। स्त्री दर्पण की टीम ने इस वर्ष 3 माह तक ” हमारी अम्मा” शृंखला चलाई। हिंदी में अपने ढंग की यह अनोखी किताब है। रीता जी द्वारा पुरुष कवियोँ की स्त्री विषयक कविताओं की संपादित पुस्तक भी इस वर्ष लोकार्पित हुई जिसमें हिंदी के 21 प्रमुख कवि हैं। यह हिंदी में नया काम है जिसे लोगों ने काफी सराहा। वरिष्ठ कवयित्री शुभा ने इसकी उत्साहवर्धक भूमिका लिखी है। वरिष्ठ लेखिका सची मिश्र का उपन्यास माधवी की” देह गाथा ” भी इसी साल आया।
प्रज्ञा रोहिणी भी इस वर्ष एक उपन्यास लेकर आईं। वह भी लगातार लिख रहीं हैं और चर्चा में हैं। “कांधो पर घर” ने लोगों का ध्यान खींचा है। इस साल चर्चित कथाकार प्रियंका ओम “साज बाज़ “उपन्यास लेकर आई हैं। वह तंजानिया में रहते हुए लगातार लिख रही हैं। युवा लेखिका पत्रकार तस्नीम खान का उपन्यास “हमनवाई न थी ” आई जिसकी काफी चर्चा रही। इस साल भावना शेखर का उपन्यास ‘अथ हवेली कथा’ भी आया।
इसके अलावा अर्चना चतुर्वेदी का उपन्यास “घूरे का हंस “भी इस साल छपा। उर्मिला शुक्ल का चर्चित उपन्यास ‘बिन ड्योढ़ी का घर’ का चौथा भाग इसी वर्ष प्रकाशित हुआ।
आलोचना के क्षेत्र में सुधा सिंह और गरिमा श्रीवास्तव की किताबों “ स्त्री विमर्श की वैचारिकी” और ” नवजागरणकालीन विमर्श “ किताबों के अलावा युवा अध्येता अलका तिवारी की संपादित पुस्तक” गीतांजलि श्री: आलोचना के दायरे “में इस साल आई जिसमें अशोक वाजपेयी, मृणाल पांडेय, प्रियदर्शन, सपना सिंह प्रत्यक्षा, रवींद्र त्रिपाठी आदि के लेख हैं। इसका ब्लर्ब प्रसिद्ध लेखिका सुधा अरोड़ा ने लिखा है।
प्रसिद्ध नवजागरणकालीन विमर्शकार कर्मेंदु शिशिर ने सुधा सिंह की पुस्तक पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए स्त्री विमर्श में उनके अवदान पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की जिस पर लोगों का ध्यान गया।
कथाकार कवयित्री मृदुला सिंह ने छत्तीसग़ढ की महिला कथाकारों का एक संग्रह संपादित किया जो महत्वपूर्ण काम है। इनमें 18 कहानियां हैं जिनमें कुंतल गोयल, मेहरुनिस्सा परवेज, पुष्पा तिवारी से लेकर मृदुला सिंह भी शामिल हैं।
इससे छत्तीसगढ़ के जीवन और यथार्थ को समझने में मदद में मिलेगी। इससे हिंदी साहित्य समावेशी भी होगा।
अनुवाद के क्षेत्र में रश्मि भारद्वाज की किताब इस वर्ष आई जिसने उनके अनुवाद कार्य पर ध्यान खींचा। वे “बहुमत” पत्रिका में अनुवाद का स्तम्भ भी चला रही हैं। अमृता बेरा ,सुलोचना, मीता दास जयश्री पुरवार ने भी इस वर्ष बंगला से महत्वपूर्ण अनुवाद किये।
दिव्या विजय ने डायरी विधा में कलम चलाई है। उनकी” दराजों में बन्द ज़िंदगी” एक नया आस्वाद लिए हुए है।
प्रसिद्ध रंगकर्मी अपने एक्टिविस्ट पिता सुरेश भट्ट पर एक किताब लेकर आईं। एक पुत्री द्वारा एक संघर्षशील पिता को इससे बढ़िया एक सच्ची श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है।
इस तरह हिंदी की लेखिकाएँ लगातार लिख रहीं हैं और उंन्होने हिंदी साहित्य के परिदृश्य को बदल दिया है। उनके लेखन से हिंदी में विविधता आई है। साहित्य अकादमी ने इस साल पंजाबी की प्रसिद्ध लेखिका अजीत कौर को फेलो बनाया और पद्मा सचदेव पर गोष्ठी आयोजित की। हंस और रज़ा फाउंडेशन ने भी स्त्री लेखन को बढ़ावा देते हुए आयोजन किए। वीरेनियत में पूनम वासम कविता कादम्बरी और विजया सिंह की कविताओं ने काफी उम्मीद जगाई है। साल के अंत में कविता कृष्णपल्लवी ने “अन्वेषा” का सुंदर अंक निकाला जिसकी बहुत चर्चा है।
आलेख – अनामिका चक्रवर्ती
Posted Date:
December 31, 2024
6:22 pm
Tags:
स्त्री दर्पण,
स्त्री लेखन 2024