जानी मानी कथाकार और उपन्यासकार कृष्णा सोबती की जन्मशती बेशक फरवरी 2025 से शुरु हो रही हो, लेकिन साहित्य अकादमी ने 19 और 20 दिसंबर को दो दिनों तक उनकी पूरी साहित्यिक यात्रा पर गंभीर आयोजन किया। इस संगोष्ठी में कृष्णा सोबती के व्यक्तित्व के तमाम पहलुओं के साथ उनके लेखन के तमाम आयामों पर चर्चा हुई।
सोबती की भाषा मर्मभेदी और स्त्रीत्व की भाषा – मृदुला गर्ग
कृष्णा सोबती की हर रचना पाठकों और आलोचकों का आकर्षित करती थी – गोपेश्वर सिंह
सोबती के लेखन में रोमांस और विद्रोह दोनों ही साथ साथ चलते थे – माधव कौशिक
उनका साहित्य बंदिशें तोड़ता है और अभिव्यक्ति के खतरे उठाता है – के. श्रीनिवास राव
साहित्य अकादेमी की ओर से आयोजित दो दिवसीय कृष्णा सोबती जन्मशती संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने की तथा लब्धप्रतिष्ठित कवि एवं आलोचक गिरधर राठी ने बीज वक्तव्य दिया। हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक गोविंद मिश्र ने शुरुआती वक्तव्य दिया जबकि समापन किया अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने।
अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि कृष्णा सोबती जी की सबसे बड़ी पहचान जीवंत भाषा थी। उन्होंने आम लोगों के अनुभवों को अपने लेखन का हिस्सा बनाया। अपने बीज भाषण में गिरधर राठी ने कहा कि वे एक ऐसी लेखिका थी जो अपनी आलोचना को भी गंभीरता से लेती थी और उसका जवाब सतर्कता से देती थीं। उनका पूरा साहित्य बंदिशें तोड़ता है और अभिव्यक्ति के खतरे उठाता है। उनके लेखन की तीन खासियतें कहीं और नहीं मिलती। उनके लेखन में अनेक मौसमों का जिक्र, अनेक स्थानीय भाषाओं के पुट और बचपन के सौंदर्य का बखान मिलता है। इतना ही नहीं उनके लेखन में चरित्रों की इतनी विभिन्नता है जो और कहीं नजर नहीं आती।
गोविंद मिश्र ने उनके साथ बिताए अपने समय को याद करते हुए बताया कि कैसे लेखकों के अंतरसंबंधों का साहित्य पर क्या असर पड़ता है। इसका उदाहरण देते हुए कहा कि उनसे कृष्णा जी ने बहुत पहले ही कह दिया था कि मुझे आलोचना लिखकर सृजनात्मक लेखन ही करना चाहिए, जिसे मैंने माना और उसका फल भी पाया। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक ने कहा कि उनके लेखन में रोमांस और विद्रोह दोनों ही साथ साथ चलते थे। उन्होंने अपना जीवन बहुत जीवट तरीके से जिया और आने वाली पीढ़ी को प्रभावित किया। उनके पात्रों में स्थानीय संस्कृति का जो प्रभाव था, उससे उनके पात्र जीवंत हो उठते थे। अपने समापन वक्तव्य में कुमुद शर्मा ने कहा कि वे अपने लेखन के प्रति बेहद सतर्क, सावधान और सजग थीं। उन्होंने समकालीन यथार्थ को अपने पात्रों के जरिए बेहद मजबूती से पेश किया। एक तरह से उन्होंने महादेवी वर्मा द्वारा तैयार पृष्ठभूमि को आगे बढ़ाया। उन्होंने हमेशा अपने पाठकों की परवाह की और उन्हें सबसे ज्यादा महत्त्व दिया।
पहला सत्र ‘जिंदगीनामा के पुनर्पाठ’ पर आधारित था जो मृदुला गर्ग की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ और इसमें पॉल कौर (पंजाबी), शाफे किदवई (उर्दू) एवं सुकृता पॉल कुमार (अंग्रेजी) ने अपने विचार रखे। पॉल कौर ने ‘जिंदगीनामा में लोकसंस्कृति की राजनीति’ विषय पर आलेख पेश किया। तो शाफे किदवई ने जिंदगीनामा को ‘पीपुल्स हिस्ट्री’ का उदाहरण बताते हुए कहा कि ये विभाजन के आस-पास का एकमात्र ऐसा उदाहरण है जिसमें हिंदू, मुस्लिम और सिख तीनों का सामाजिक तानाबाना प्रस्तुत किया गया है। सृकृता पॉल कुमार ने कहा कि जिंदगीनामा एक तरह से किसी एक विचारधारा को नहीं बल्कि अनेक विचारधाराओं को सामने लाता है और उसे ‘काउंटर आर्काइव’ कहा जा सकता है। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में मृदुला गर्ग ने कहा कि उनके लेखन की भाषा स्त्रीत्व की भाषा है जो कि बहुत ही मर्मभेदी है। पूरा जिंदगीनामा औरत की जिंदगी में चल रहे सतत उत्सवों की कथा है। ये उत्सव भले और बुरे दोनों ही हैं।
दूसरा सत्र कृष्णा सोबती के कथेतर गद्य पर केंद्रित था जिसकी अध्यक्षता कृष्ण कुमार सिंह ने की और इसमें अर्पण कुमार, रोहिणी अग्रवाल एवं सूर्यनाथ सिंह ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। अर्पण कुमार ने सोबती के संस्मरणात्मक पुस्तक ‘हम हशमत’ के चारों खंडों पर विस्तार से बात की। रोहिणी अग्रवाल ने कहा कि वे अपने लेखन में निस्संग भी हैं और तल्लीन भी जो उनके लेखन को संतुलित भी करता है और बड़ा भी। सूर्यनााि सिंह ने कहा कि कृष्णा सोबती का सबसे बड़ा गुण उनका लेखकीय साहस था जो उनके कथेतर गद्य में नजर आता है। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि हम हशमत ही नहीं उनका पूरा लेखन शब्दों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल और लोकभाषा की ताकत का प्रमाण है।
दूसरे दिन के दो सत्र कृष्णा सोबती के कथा साहित्य और उनके स्त्री विमर्श पर केंद्रित थे। ‘कृष्णा सोबती का कथा साहित्य’ विषयक सत्र गोपेश्वर सिंह की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें निधि अग्रवाल, सुधांशु गुप्त एवं सुनीता ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए। ‘कृष्णा सोबती का साहित्य और स्त्री विमर्श’ विषय पर हुए सत्र की अध्यक्षता क्षमा शर्मा ने की। इसमें अल्पना मिश्र, सविता सिंह एवं उपासना ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए।
कृष्णा सोबती के कथा साहित्य पर निधि अग्रवाल ने कहा कि कृष्णा जी ने आज से 60-70 साल पहले स्त्री चेतना के बहुआयामी पक्षों को प्रस्तुत किया था, जिसके बारे मे तब कोई सोचता भी नहीं था। उन्होंने अपनी कहानियों में स्त्री के संघर्षों को तो उकेरा ही बल्कि यह सिद्ध भी किया कि सारे युद्ध स्त्री देह पर ही लड़े जाते हैं। सुधांशु गुप्त ने उनके समकालीन लेखिकाओं मन्नु भंडारी एवं उषा प्रियंवदा से तुलना करते हुए कहा कि मन्नू भंडारी जहाँ मध्यम वर्ग की विसंगतियाँ चित्रित करती हैं, वहीं उषा प्रियंवदा विवाहेतर संबंध, घर परिवार और रिश्ते-नातों को चित्रित करती हैं, जबकि कृष्णा सोबती अलग राह चुनते हुए स्त्री की दैहिक स्वतंत्रता को अपने कथानकों का केंद्र बनाती है। संभवतः इसलिए उन्हें उग्र नारीवाद का प्रतीक कहा गया। उनके नायक उनकी नायिकाएँ ही हैं। बलात्कार और यौन शोषण जैसी विसंगतियों पर वह बहुत पहले सतर्क करती हैं। उन्होंने अपने लेखन को आदर्श और नैतिकता जैसी प्रवृत्तियों से नहीं बाँधा और जो चाहा वह लिखा। सुनीता ने उनकी कहानियों के बारे में कहा कि उनकी कहानियाँ पंजाब के मध्यम वर्गीय परिवारों पर केंद्रित थीं और उनमें यथार्थ की सिम्फनी को महसूस किया जा सकता है। गोपेश्वर सिंह ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि उनकी हर रचना ने पाठकों और आलोचकों को आकर्षित किया। कृष्णा जी की उपस्थिति उनकी भाषा को एक भव्य मंच प्रदान करती हैं। उनकी कहानियाँ स्त्री-देह की माँग को प्रतिष्ठित करती हैं।
कृष्णा सोबती के साहित्य और स्त्री विमर्श पर उपासना ने कहा कि उनके स्त्री विमर्श में विद्रोह और जीवन के प्रति उल्लास शामिल है। अल्पना मिश्र ने ‘सिक्का बदल गया’, ‘बहनें’ और ‘ऐ लड़की’ को विशेष रूप से संदर्भित करते हुए सोबती जी के लेखन में स्त्री विमर्श के स्वरूप को रेखांकित किया। सविता सिंह ने कहा कि उनका टेक्स्ट उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है और उनकी स्त्री देह के अतिरिक्त भी जीवन की अन्य खुशियाँ महसूस करना चाहती है। उनके लेखन में प्रकृति और भाषा में गहरा संबंध नजर आता हैं। क्षमा शर्मा ने उनके साथ बिताए अंतरंग संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वह हमारे समय की सबसे बड़ी लेखिका थीं और रहेंगी भी। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।
Posted Date:
December 20, 2024
10:08 pm
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