अंजुम के रंगों में जीवन की सहजता है
ला की कई परिभाषाएं हैं। इनमें एक है कि कला आत्म का आविष्कार है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि एक कलाकार अपने व्यक्तित्व को अपनी कला के माध्यम से अर्जित करता है। निजी स्तर पर भी और सार्वजनिक स्तर पर भी। युवा कलाकार अंजुम खान की कला इसी की अभिव्यक्ति है। यह तो सत्य है कि कोरोना काल में कई कलाएं संकटग्रस्त हुई हैं और इसी कारण कलाकार भी। फिर भी सोशल मीडिया नेटवर्क ने कलाकारों को नए अवसर भी दिए हैं। अंजुम खान के साथ भी ऐसा हुआ है। कोरोना के चरम काल में जब अंजुम ने अपनी कलाकृतियों के  फोटो इंस्टाग्राम पर डाले तो उसे खरीदार भी मिल गया। हालांकि तब कला गैलरियां बंद थी और ज्यादातर अभी भी उसी हालत में है। फिलहाल यह बात इसलिए कही जा रही है कि रूपंकर कलाएं कोरोना काल में भी संभावनाशील रही हैं। पर फिलहाल सिर्फ अंजुम खान की कलाकृतियों की बात करें तो यह कहना पड़ेगा कि उसमें कई तरह की संभावनाएं हैं।
उत्तर प्रदेश के एक पारंपरिक मुस्लिम समाज से आने वाली और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से कला की पढ़ाई करने वाली अंजुम जब लगभग दस साल पहले दिल्ली आई तो यहां की कला दुनिया उसके लिए अजनबी और अनजानी सी थी। बस एक ही संबल था और वह था गोगी सरोज पाल का ठिकाना। वरिष्ठ कलाकार गोगी सरोज पाल से अंजुम का संपर्क इस कारण हुआ था कि कला में एमए करते हुए अंजुम ने उनकी कला यात्रा पर एक लघु शोध पत्र लिखा था। यही वजह बनी गोगी सरोज पाल और अंजुम खान के बीच रचनात्मक संबंध की।
गोगी ने अंजुम को कहा कि अपने भीतर तलाश करो कि  क्या करना चाहती हो और अपने उस परिवेश को याद करो जिसमें तुम रही, पली और बड़ी हुई हो। तब अंजुम ने फिर से अपने अतीत ,अपने बचपन और अपने दौर को फिर से याद करना और उनको अपनी कलाकृतियों में और रूपायित करना शुरू किया। जिस पारंपरिक मुस्लिम परिवेश में वह पली-बढ़ी थी वह उसकी कलाकृतियों में आने लगा। यही कारण है कि अंजुम की कलाकृतियों में मुस्लिम परिवार की वे लड़कियां दिखती हैं जो अपने समाज के रीति रिवाजों के बीच रहकर अपना दैनिक जीवन गुजारती हैं। कभी परदे में तो कभी हिजाब में। लेकिन क्या ऐसी लड़कियों में कहीं कोई आकांक्षा भी नहीं होती है कि वो अपने भीतर के  उमंगों और आशाओं को पेश करें। यह तो किसी मनुष्य की पहचान है कि वह  किसी स्तर पर अपने ऊपर आरोपित दबाव से मुक्त होना चाहता है।
यही कारण है कि अंजुम के आरंभिक कलाकृतियों में ऐसी औरतें दिखती हैं जो अपने पैरों को रंगीन चप्पलों या दूसरे तरीकों से अलंकृत करती हैं। पर धीरे-धीरे वह दौर भी आया जब अंजुम ने  सामाजिक दायरे का विस्तार क्या किया और अपनी अभिव्यक्ति को व्यापक परिवेश से जोड़ना शुरू किया श। कह सकते हैं कि यह अंजुम के आत्म के आविष्कार का दूसरा चरण था जिसमें उसने आज या आधुनिक परिवेश को अपने ढंग से देखना और समझना शुरू किया। कई ऐसी ही कलाकृतियाँ है जिसमें वह  पुराने स्टीरियोटाइप से बाहर निकलती है और उन औरतों को चित्रित करती है जो किसी धर्म या  मजहब से नहीं जुड़ी हैं और जिनके बारे में यह कहा जा सकता है कि वे शहरी मध्यवर्ग की हो सकती हैं। वे जो ज्यादा खुली आधुनिक और आजाद हैं। और आजादी एक ख्याल का भी नाम है जिसमें कई तरह की चाहते होती हैं। अंजुम कई चाहतों को उकेरती हैं।
 
अंजुम  एक आकृतिमूलक कलाकार हैं। उनके यहाँ रंगों का भी भरपूर इस्तेमाल हुआ है। शोख़ और चटख रंगों के अलावा वह काले रंग की भी उनके यहाँ उपस्थिति है। उनकी कला कृतियों में बचपन की भी कई छवियां है। इसलिए कि जब कोई आत्म अन्वेषण करता है या अपने को अन्वेषित करता है तो अक्सर अपने बचपन में भी जाता है। यहाँ यह भी याद रखना चाहिए कि आत्म अन्वेषण एक सतत प्रक्रिया है और वो हमेशा जारी रहती है।
♦ रवींद्र त्रिपाठी
Posted Date:

March 8, 2022

9:12 am Tags: , , , , ,
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