♦ सुधीर राघव
अकबर के दरबार में रहीम मीर अर्ज थे। वही अब्दुर रहीम खानखाना जो हिंदी साहित्य में अपने नीति दोहों की वजह से बड़ा ही सम्मानजनक स्थान रखते हैं। इन रहीम के सेवक थे फ़हीम खान। फ़हीम खान बहुत चर्चित नहीं हैं मगर एक वजह से उनका नाम इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। उनके बारे बहुत कम लोग जानते हैं। उनसे ज्यादा तो लोग धनबाद के गैंगेस्टर फहीम खान को जानते हैं। खासकर तब से, जब अनुराग कश्यप ने गैंग्स ऑफ़ वासेपुर बनाई। कहते हैं फिल्म में फैजल खान का जो किरदार नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाया, असल में वह वासेपुर के गैंगेस्टर फहीम खान का ही फिल्मी रूपांतरण है।
अब हम बात करते हैं पुराने दिल्ली वाले फ़हीम खान की जो रहीम के नौकर थे मगर अपने एक काम की वजह से पुरातत्व प्रेमियों और अन्वेषियों में अपनी पहचान रखते हैं। दिल्ली के निजामुद्दीन वेस्ट में सब्जबुर्ज नाम से एक चार सदी पुरानी इमारत है। यह मथुरा रोड के ठीक बीचोबीच है। इसलिए सबको इसका आधा चक्कर काटकर निकलना होता है। इसलिए इधर से आने-जाने वाले इसकी बिल्कुल अनदेखी नहीं कर सकते।
इस गोल चक्कर से एक चौराहा निकलता है, जिसके पूर्व की ओर की सड़क मथुरा, पश्चिम की नई दिल्ली, उत्तर की गुरद्वारा दमदमा साहिब तथा दक्षिण की सड़क सफदरजंग अस्पताल की ओर जाती है। कहते हैं कि अगर यह जानना है कि कोई व्यक्ति कितना महान है, तो उसे नहीं उसके सेवकों को देखिए। इस तरह यह नीले गुम्बद वाली भव्य इमारत फहीम खान के साथ-साथ रहीम की महानता का भी एक और परिचय है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अर्काइव 2009 में इस इमारत को नीला गुम्बद के नाम से दर्ज किया गया है। इसके मुताबिक इसका निर्माण 1626 में फहीम खान ने कराया था। तब जहांगीर सम्राट थे और रहीम अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे थे। एक साल बाद ही उनका निधन हो गया था।
सब्जबुर्ज एक अष्टभुजी इमारत है। मकबरे जैसी है मगर इसमें कोई कब्र नहीं है। इसके प्रवेशद्वार का हिस्सा थोड़ा चौड़ा और सामने का कुछ कम है। यह खास मुगल वास्तुशैली से थोड़ा भिन्न मध्य एशियाई शैली में बनी है। इसलिए कुछ इतिहासकार इसका निर्माण काल 1530 से 40 के बीच का मानते हैं।
‘हिस्ट्री ऑफ सिविलाइजेशन सेंट्रल एशिया : डेवलपमेंट एंड कंट्रास्ट’ के पृष्ठ 509 पर अहमद हसन दानी ने सब्जबुर्ज का जिक्र किया है। वह लिखते हैं कि मध्य एशिया से आए लोगों का वास्तुशिल्प पर खासा प्रभाव दिखा। हम उस दौर की अष्टभुजी इमारतें जैसे सईद मुबारक साहिब का मकबरा (1444), सिकन्दर लोदी का मकबरा (1517), ईसा खान (1547), आदम खान का मकबरा (1561) और दिल्ली के सब्जबुर्ज (1530-40) में यह शैली देख सकते हैं। इसे मुगलों से ज्यादा तुर्कों के प्रभाव के रूप में देखा जाता है। मगर सिर्फ शैली के आधार पर काल निर्धारण उचित नहीं हो सकता। एक सेवक का खास पुरानी शैली के प्रति मोह भी ऐसे निर्माण का कारण हो सकता है।
सब्ज फारसी का शब्द है, जिसका अर्थ होता है हल्का हरा। इस इमारत के ऊपरी गुम्बद पर नीला पत्थर लगा है, जो शायद हरी अभी देता होगा, इसलिए इसका नाम सब्जबुर्ज पड़ा। वैसे इसे नीली छतरी भी कहा जाता है। स्थानीय लोग यही कहते हैं। वक्त के साथ इस इमारत को भी नुकसान पहुंचा। 2018 से पुरातत्व विभाग और आगा खान ट्रस्ट फार कल्चर इसकी मरम्मत कर पुराना निखार देने की कोशिश कर रहे हैं। यह काम इस साल पूरा हो जाना था मगर लॉकडाउन की वजह से अटक गया है।
जिस मथुरा रोड पर सब्जबुर्ज बना है, वह असल में पुराना शेरशाह सूरी मार्ग है। औलिया की मजार, हुमायूं और रहीम के मकबरे सब इस सड़क के किनारे से थोड़ा-थोड़ा हटकर हैं, मगर यह बीचोबीच है। शहंशाह और सेवक की सोच में इतना सा फर्क तो होता है।
Posted Date:
July 7, 2020
10:17 am
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