मशहूर कथक नृत्यांगना पद्मश्री शोवना नारायण ने लॉकडाउन के दौरान कथक को कई नए आयाम देने और ज्यादा से ज्यादा बच्चों और युवाओं तक कथक को पहुंचाने का अभियान चलाया है। सूरज की पहली किरण के साथ उनके पैर थिरकने लगते हैं और देर रात तक डिजिटल क्लास के जरिये वो सैंकड़ों युवा कलाकारों से जुड़ी रहती हैं। देश ही नहीं बाहर के देशों में भी उनसे सीखने वाले पहले से कहीं ज्यादा वक्त अब अपनी प्रतिभा को निखारने में लगा रहे हैं। शोवना नारायण लगातार रामधारी सिंह दिनकर, गोपाल दास नीरज, अली सरदार ज़ाफरी सरीखे कवियों और शायरों की रचनाओं को कथक शैली में उतार रही हैं और कोरोना जैसी महामारी से मिलकर लड़ने का संदेश दे रही हैं।
दिल्ली के कॉमनवेल्थ विलेज में अपने घर को शोवना नारायण ने डिजिटल उपकरणों से लैस कर रखा है। अमर उजाला से बातचीत में वो बताती हैं कि इस लॉकडाउन ने मुझे और ज्यादा काम करने का वक्त भी दिया है और मौका भी। अब कहीं आने जाने में बेवजह खर्च होने वाला वक्त भी बच रहा है और समय की वो बंदिशें भी खत्म हो गई हैं। उनका कहना है कि वह कथक पर अपनी दो किताबों पर भी काम कर रही हैं और अबतक किए गए अपने रिसर्च को कलमबद्ध करने में लगी हैं। डिजिटल ज़माने का असली फायदा अब उन्हें और बेहतर तरीके से समझ में आ रहा है।
करीब 70 साल की होने जा रहीं शोवना नारायण ऊर्जा से भरी हुई हैं और कहती हैं कि डांस मेरी ज़िंदगी है, मेरी आत्मा है। वो कहती हैं कि आज भी नई पीढ़ी में कथक को लेकर ललक बरकरार है। जाहिर है कोई भी शास्त्रीय नृत्य पूरा वक्त, धैर्य और समर्पण मांगता है। मुझे खुशी होती है कि इस लॉकडाउन के दौरान जो बच्चे हमारे साथ ऑनलाइन क्लास में रहते हैं वो पहले से कहीं ज्यादा समर्पण और लगन के साथ कई कई घंटे तक सीखते रहते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि लगता है कि ये वक्त तमाम ऐसे कलाकार पैदा करेगा, जो कहीं छुपे हुए थे और जिनका हुनर सामने नहीं आ पा रहा था।
कोलकाता में जन्मी शोवना नारायण ने ढाई साल की उम्र से कथक शुरु कर दिया था, बाद में कोलकाता, मुंबई और दिल्ली में साधना बोस, कुंदनलाल सिसोदिया और पंडित बिरजू महाराज सरीखे गुरुओं से शिक्षा ली। पढाई में हमेशा अव्वल रहीं, फिजिक्स और गणित उनके प्रिय विषय रहे, बाद में सिविल सर्विसेस में आईं और कई अहम पदों पर रहीं। एक सख्त प्रशासनिक अधिकारी भी रहीं और एक संवेदनशील नृत्यांगना के तौर पर दुनिया में अपनी खास जगह बनाई। शोवना बताती हैं कि उन्होंने मैथ्स और फिजिक्स को कथक से जोड़ा और इसे और आसान बना दिया। शोवना के जीवनसाथी हैं ऑस्ट्रिया के डिप्लोमेट रहे डॉ हर्बर्ट।
शोवना नारायण बताती हैं कि कोई भी कला किसी देश की परंपरा के साथ ही पनपती है। कथक के हर घराने का भी अपना अपना महत्व है। लेकिन आज के दौर में घरानों का अस्तित्व नहीं के बराबर है। पचास-साठ के दशकों में तो घरानों में फर्क था, आज नहीं है। कथक सिर्फ कथक है, इसे घरानों में बांटना ठीक नहीं। आज संचार के माध्यम इतने तेज़ हो गए कि कथक बदल गया है। एक ही छत के नीचे हर शैली सिखाई जा रही है।
आज शोवना नारायण हर रोज़ अपना एक वीडियो जारी कर रही हैं। तमाम बड़े कवियों और शायरों की रचनाओं पर कथक शैली की भाव भंगिमाओं से आम आदमी और समाज की मुश्किलों के साथ उम्मीद की एक नई दुनिया बनाती हैं। इस कठिन वक्त को सकारात्मक और रचनात्मक तरीके से कैसे बिताएं, इस बारे में शोवना नारायण की छोटी छोटी प्रस्तुतियां देखना एक अनुभव जैसा है।
Posted Date:May 1, 2020
11:16 am Tags: शोवना नारायण, कोरोना और कथक, शोवना नारायण की मुहिम