— जय नारायण प्रसाद
जय नारायण प्रसाद जाने माने पत्रकार रहे हैं, रंगमंच और कला-संस्कृति में उनकी खासी दिलचस्पी रही है। जनसत्ता से रिटायर होने के बाद वो लगातार कला-संस्कृति पर संवतंत्र लेखन कर रहे हैं। उषा गांगुली के साथ जय नारायण प्रसाद की कई मुलाकातें हैं। फिलहाल उषा जी की याद में उनका लिखा ये आलेख
बहुत कम लोगों को मालूम होगा ऋतुपर्ण घोष की हिंदी फिल्म ‘रेनकोट’ (2004) की पटकथा उषा गांगुली ने लिखी थीं। सर्वश्रेष्ठ सिनेमा के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त इस फिल्म में ऐश्वर्या राय और अजय देवगन ने बेहद डूबकर अभिनय किया था। देश और देश के कई फिल्म महोत्सव में यह शामिल भी थीं। निर्देशक ऋतुपर्ण घोष से इसकी पटकथा को लेकर उषा जी अनेक बार मिली थी। तब जाकर फाइनल पटकथा तैयार हुई थी। ओ’ हेनरी की उम्दा रचना ‘गिफ्ट आफ द मगाई’ पर बनी यह फिल्म ‘रेनकोट’ विदेशों में खूब सराही गई थी।
गौतम घोष की हिंदी फिल्म ‘पार’ (1984) में उषा गांगुली ने अभिनय भी किया था। इसमें नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी के अलावा कोलकाता के अनेक कलाकार थे। बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में यह फिल्म काफी सराही गई थी।
कोलकाता दूरदर्शन के लिए बनीं मृणाल सेन की हिंदी टेली फिल्म ‘तस्वीर अपनी-अपनी’ (1984) के साथ भी उषा गांगुली जुड़ी थीं। इस टेली फिल्म में श्यामानंद जालान, एमके रैना और केके रैना मुख्य अभिनेता थे।
जहां तक मालूम है नाटक करने के साथ-साथ उषा जी बेहतरीन फिल्मों के लिए देश के अनेक निर्देशकों को सलाह भी देती रहती थीं। इनमें कुछ पर अमल भी होता था।
जिंदा रहती तो उषा जी और भी अनेक काम करतीं। उनसे अनेक विषयों पर बातचीत होती रहती थी। नाटकों और भरतनाट्यम जैसे नृत्य की बारीकियों के बारे में खुलकर बताती थी। भरतनाट्यम की एक निपुण नृत्यांगना भी थीं उषा गांगुली। उत्साही छात्रों को निपुणता से तैयार करने में उषा गांगुली का सानी नहीं था। राजस्थान के जोधपुर में पला उनका बचपन इलाहाबाद और कानपुर में विकसित हुआ। फिर, कोलकाता आईं और यहां हिंदी साहित्य में एमए किया। इसी कोलकाता में उन्होंने अपने को दीक्षित किया और एक कुशल किसान की तरह खुद को सींचा भी। इस तरह बनी थीं उषा गांगुली !
दिवंगत नाटककार श्यामानंद जालान के बाद कोलकाता में हिंदी नाटकों को उषा गांगुली ने सिर्फ राह ही नहीं दिखाई, रचनात्मक दिशा भी दी। नए बच्चों को ऊंगली पकड़कर सिखाया। यह थीं हमारी उषा गांगुली ! उनके ‘लंबे रंगकर्म’ के साथी ओम पारीक पर इस समय क्या गुजर रहा होगा, कहना अजीब और मुश्किल भी है। ओम पारीक कोयंबटूर में हैं। नाटक से प्यार बीच-बीच में उन्हें कोलकाता खींच लाता है। उषा गांगुली की नाट्य संस्था ‘रंगकर्मी’ के एक मजबूत स्तंभ ओम पारीक भी थे ! शायद अब भी हों, तभी तो कोलकाता को वे भूल नहीं पाते !
नाटककार बीवी कारंत और गिरीश कर्नाड उषा गांगुली को अक्सर याद करते थे। अब दोनों नहीं हैं। कहते थे श्यामानंद जालान की धरोहर को उषा गांगुली कायदे से आगे बढ़ा रही हैं। पता नहीं, अब क्या होगा ! एक शंका सुबह से मेरे भीतर भी हिचकोले खा रही है। काश, उषा जी सामने होती तो पूछने का साहस भी करता !
Posted Date:April 24, 2020
9:42 pm Tags: उषा गांगुली, जय नारायण प्रसाद, फिल्म रेन कोट, उषा गांगुली की रंग यात्रा