‘भय’ के ज़रिए रेणु ने टटोली वक़्त की नब्ज़
गाजियाबाद। अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान के काव्योत्सव में अतिथियों और स्थानीय कवियों ने मौजूदा दौर के साथ साथ आने वाले समय की नब्ज़ अपने-अपने तरीके से टटोली। कवि राकेश रेणु ने अपनी कविता ‘भय’ के माध्यम से फरमाया ‘एक दिन सब संगीत थम जाएगा..।’ कार्यक्रम अध्यक्ष वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने ‘चुप्पा आदमी’ के माध्यम से मानसिक जड़ता पर जमकर प्रहार किया। मुख्य अतिथि सुरेश गुप्ता ने कहा कि मौजूदा दौर में प्रदूषण कई स्तरों पर फैल रहा है। बुद्धिजीवियों को इससे निपटने के बेहतर उपाय तलाशने होंगे
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल की नेहरू नगर शाखा में आयोजित काव्योत्सव में श्री कश्यप ने ‘उद्धारक’ कविता के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों को रेखांकित करते हुए कहा ‘हम तुम्हारा उद्धार करेंगे, जिंदा रखा तो जूठन खिला कर, पांव धुलवा कर तुम्हारा उद्धार करेंगे, मार दिया तो बैकुंठ भिजवा कर तुम्हारे वंशजों को अपना भक्त बना कर तुम्हारा उद्धार करेंगे, और किसी आफत- बिपत बेला-कुबेला ठौर-कुठौर में तुम्हारे जूठे बेर खाकर भी तुम्हारा उद्धार करेंगे।’ चुप्पा आदमी’ कविता में उन्होंने कहा ‘अक्सर ताला उसकी/ जुबान पर लगा होता है/ जो बहुत ज्यादा सोचता है, जो बहुत बोलता है/ उसके दिमाग पर/ ताला लगा होता है, संकट तब बढ़ जाता है/ जब चुप्पा आदमी/ इतना चुप हो जाए कि/ सोचना छोड़ दे/ और बोलने वाला/ ऐसा शोर मचाए कि/ उसकी भाषा से/ विचार ही नहीं/ शब्द भी गुम हो जाएं।’
विशिष्ट अतिथि राकेश रेनू ने अपनी ‘स्त्री’ श्रृंखला की कविताओं से कुछ पंक्तियां उद्धृत करते हुए कहा “एक दाना दो, वह अनेक दाने देंगी अन्न के। एक बीज दो, वह एक विशाल वृक्ष सिरजेगी, घनी छाया और फल के। एक कुआं खोदो, वह जल देगी शीतल, अनेक समय तक अनेक लोगों को तृप्त करती। पृथ्वी को कुछ भी दो, वह और बड़ा दोहरा-तिरहा करके लौटाएगी। पृथ्वी ने बनाया जीवन सरस, रहने सहने और प्रेम करने लायक, स्त्रियां क्या पृथ्वी जैसी होती हैं?’ ‘भय’ शीर्षक से पढ़ी कविता ‘ एक दिन सब संगीत थम जाएगा सभागारों के द्वार होंगे बंद, वीथियां सब सूनी होंगी, सारे संगीतज्ञ हतप्रभ और चुप कवियों की धरी रह जाएंगी कविताएं, धरे रह जाएंगे सब धर्म शास्त्र
धर्म गुरुओं की धरी रह जाएंगी सब साजिशें, शवों के अंबार में कठिन होगा पहचानना प्रियतम का चेहरा, उसी दिन पूरी सभ्यता बदल दी जाएगी दुनिया की, एक नया संसार शुरू होगा उस दिन बर्बर और धर्मांधों का संसार कापालिक हुक्मरानों का संसार’ में श्री रेणु ने भयावह दौर का बेहतरीन चित्रण किया।
ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव तथा केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट फेडरेशन उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय महासचिव सुरेश गुप्ता ने कहा कि विकास के नाम पर हमने प्रकृति और भाषा दोनों को प्रदूषित कर दिया है। इस दोहरे संकट से बचाने में कवियों को महती भूमिका निभानी होगी। “मीडिया 360 लिट्रेरी फाउंडेशन” के अध्यक्ष शिवराज सिंह ने कहा कि चांद को लेकर की गई कल्पनाओं का नतीजा है कि विज्ञान के विकास ने मानव को चांद और मंगल तक पहुंचा दिया। लेकिन विकास की यह कोशिश पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो रही है। उन्होंने रचनाकारों से धरा के संरक्षण पर भी कलम चलाने का आह्वान किया।
काव्योत्सव में संस्था के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. धनंजय सिंह की पंक्तियां “अब तो सड़कों पर उठा कर फन चला करते हैं सांप, सारी गलियां साफ हैं कितना भला करते हैं सांप। मार कर फुफकार कहते हैं समर्थन दो हमें, तय दिलों की दूरियों का फासला यूं करते हैं सांप” पर भरपूर वाह-वाही लूटी। संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने फरमाया “वह तो क्या-क्या सितम नहीं करते, हम ही आंखों को नम नहीं करते। ऐ मेरे हाथ काटने वालों, सर मेरा कलम क्यों नहीं करते।” नवागंतुक कवियत्री सुप्रिया सिंह मीणा की पंक्तियां “थक के बैठ ना गुमशुदा होकर, कोई रास्ता निकाल रखा करो। बर्फ जैसा मिज़ाज ठीक नहीं, रक्त में कुछ उबाल रखा करो” भी भरपूर सराही गईं। इस अवसर पर बी.एल. बत्रा अमित्र के गीत के वीडियो का भी विमोचन किया गया। काव्योत्सव में मित्र गाजियाबादी, आशीष मित्तल, ईश्वर सिंह, स्नेह लता भारती, सुरेंद्र शर्मा, तूलिका सेठ, प्रदीप पुष्पेंद्र, डॉ. राजीव पांडे, सुशील कुमार जैन, एम. के. चतुर्वेदी “मकरंद”, प्रवीण कुमार, आलोक यात्री, डॉ. वीना मित्तल, कृष्ण भारतीय, इंद्रजीत सुकुमार, पूनम कौशिक, वी. के. शेखर, तारा गुप्ता, व्यंजना पांडे एवं तरुणा मिश्रा की रचनाएं भी सराही गईं। कार्यक्रम का संचालन कीर्त रत्न ने किया। इस अवसर पर पुष्पमाला जैन, डॉ. स्वाति अग्रवाल, ओमकार गोयल, हिरेन्द्रकांत शर्मा, डॉ मोनिका मित्तल, उत्कर्ष शर्मा, सुदेश यादव व प्रवीण कुमार सहित बड़ी संख्या में साहित्य अनुरागी लोग मौजूद थे।
Posted Date:
October 9, 2018
3:23 pm