जब कोई संवेदनशील पत्रकार किसी शहर में जाता है तो वहां की संस्कृति, परंपराओं, धरोहरों और इतिहास को समझने की कोशिश ज़रूर करता है। सुधीर राघव ऐसे ही पत्रकार हैं। अमर उजाला में समाचार संपादक रहते हुए वह कई शहरों में रहे। सबसे कम वक्त बिताया बनारस यानी शिव की नगरी काशी में। लेकिन इन चंद महीनों में भी उन्होंने वहां के तमाम पहलुओं को तलाशा । बनारस के बारे में वैसे तो बहुत कुछ लिखा जाता रहा है, वहां की संस्कृति, अल्हड़पन, बिंदास जीवन, भाषा, संगीत परंपरा, घराना और जीवनशैली से लेकर मंदिरों और घाटों तक पर सबने खूब लिखा है। लेकिन सुधीर राघव ने तलाशा वहां के विनायक को… यानी शिव की नगरी में उनके पुत्र गणेश को। एक झलक आपके लिए 7 रंग पर….
काशी महादेव की नगरी है। पिता की नगरी में पुत्र की महिमा खूब होती है। हर कोई चाहता है कि पुत्र की कृपा मिल जाए और सब कार्य निर्विघ्न संपन्न हों।
यही वजह है कि काशी में कोई एक-दो नहीं पूरे 56 विनायक हैं। सरकारों में विभागों का आबंटन इतना सुव्यवस्थित नहीं होता, जितना काशी में धर्म को सदियों से व्यवस्थित तरीके से निभाया जा रहा है। कौन देव क्या फल देंगे या किसी फल के लिए किस देश की शरण में आओ, सब तय है।
काशी के इन सभी विनायकों के दर्शन दुर्लभ हैं। सबके दर्शन आपको मिल जाएं यह उतना आसान नहीं।
‘काशी में 56 विनायक हैं,’ यह बात तो आपको हर कोई बता देगा, मगर कौन से कहां-कहां हैं? यह बताने वाला कोई विरला ही मिलेगा। यह भी संभव है कि आप उचित स्थान पर पहुंच जाओ तो भी इच्छित विनायक के दर्शन न कर पाओ। यही तो प्रभु की लीला है।
दस विनायक तो घाटों पर ही बताए जाते हैं। इनमें से कुछ के दर्शन सुलभ हैं।
दशाश्वमेध घाट के पास अभय विनायक हैं। मान्यता है कि अगर किसी को कोई भय हो तो वह इनकी शरण में आए। अभय विनायक सभी तरह के भय से मुक्ति देते हैं।
तुलसीघाट पर लोलार्क कुंड के पास आर्क विनायक हैं। रविवार को इनके दर्शन का विशेष फल बताया जाता है। मीर घाट के हनुमान मंदिर के पास ही आशा विनायक हैं। आप श्रद्धालुओं की सभी आशाओं को पूरा करते हैं। इनका भक्त कभी निराश नहीं होता, बशर्ते कि आप इन्हें खोजकर इनके दर्शन कर पायें तो।
मणिकर्णिका घाट पर दो विनायक हैं। एक द्वार विनायक और दूसरे सिद्ध विनायक। इनमें से हमें सिद्ध विनायक के ही दर्शन का सौभाग्य मिला। हम द्वार विनायक के बारे में पूछते-पूछते पहुंचे थे। मगर उन्हीं के दर्शन न हुए। दर्शन हुए श्री सिद्धिविनायक के।
इसी तरह राजघाट पर खरव विनायक और केदारघाट पर लंबोदर विनायक का मंदिर बताया जाता है। त्रिलोचन घाट पर प्रणव विनायक तथा रामघाट पर काल विनायक हैं। गौदोलिया से मैदागिन के क्षेत्र में जेष्ठ विनायक, गणनाथ विनायक, ज्ञान विनायक, दुर्मुख विनायक, अविमुक्त विनायक बताये जाते हैं।
इन 56 विनायकों में सबसे सुलभ दर्शन हैं दुर्गाकुंड के पीछे स्थित दुर्ग विनायक जी के। यहां श्रद्धालुओं की अच्छी भीड़ रहती है। जिससे भी पूछोगे वह इसका पता बता देगा। मंदिर पर आपको दुर्गविनायक लिखा बोर्ड भी मिलेगा।
शुरुआत हमने की थी लोहटिया के बडा़ गणेश मंदिर से। यह भी काफी प्रसिद्ध है। मगर यहां आकर ही हमें पता चला कि बडा़ गणेश तो 56 विनायक में नहीं आते। बल्कि लोहटिया में दो अन्य विनायक हैं – दंत हस्त विनायक और वक्रतुंड विनायक। इनके दर्शन से वंचित ही रहे। पिशाचमोचन स्थित पंचास्य विनायक के दर्शन भी हमें मिले।
सभी 56 विधायक काशी की धरोहर हैं। आस्था का प्रतीक हैं। सभी के दर्शन कर पाना श्रमसाध्य साधना है। ज्ञानी कहते आए हैं कि ईश्वर को खोजिए। काशी आपको यही बात बड़े सरल तरीके से समझाती है।
Posted Date:April 16, 2020
12:09 am Tags: सुधीर राघव, वाराणसी के विनायक, 56 विनायक मंदिर, काशी विश्वनाथ, बनारस के घाट, गणेश के 56 रूप, शिव की नगरी में 56 विनायक