शब्द का अपकर्ष भाषा की हत्या है। विकलांग शब्द का दिव्यांग किया जाना मैं एक शब्द की हत्या मानता हूं। संवेदनशील समाज तो विकलांग शब्द का प्रयोग पहले भी बेहद सम्मान के साथ किया करता था। बस, ट्रेन या किसी भी अन्य स्थान पर विकलांग बंधुओं के लिए संवेदनशील लोग सदैव सहानुभूति रखते हैं। जिन लोगों की सोच बदलने के लिए दिव्यांग शब्द लाया गया है, उनके लिए तो यह शब्द भी व्यंग्य और उपेक्षा का शब्द बन जाएगा। समय-समय पर विकलांग शब्द के अतिरिक्त कई और शब्दों के साथ ऐसा ही परिवर्तन किया गया। इस प्रकार के निर्णय सिद्ध करते हैं कि आप विकलांग को उसी स्वरूप में सम्मानित सिद्ध करने में असमर्थ हुए हैं। यदि आप विकलांग को न्याय नहीं दिला सके तो दिव्यांग को क्या दिला पाएंगे। अपनी अक्षमता और कुंठा का ठींकरा आपने भाषा के सिर फोड़ दिया।
विकलांग शब्द के लिए दिव्यांग शब्द ले आए लेकिन आज तक प्रचलित दिव्यांग शब्द का क्या होगा। वेद, उपनिषद, शास्त्र में सैंकडों बार दिव्यांग शब्द आया है, भावी पीढ़ी जब इनका अध्ययन करेगी तब क्या होगा ? वाल्मीकि, वेदव्यास, केशवदास के दिव्यांग को कैसे समझा जाएगा ? पुरानी हजारों टीकाओं में दिव्यांग शब्द आया है, उनका क्या होगा ? मैं भाषा में शब्दों के अर्थ बदलने का कट्टर विरोधी हूं। मुझे डर है कि न्याय दिला पाने में असक्षम सत्ता धारकों की नपुंसकता कहीं भाषा को ही विकलांग न कर दे…….
(राजीव उपाध्याय यायावर के फेसबुक वॉल से)
Posted Date:November 29, 2016
2:50 am