‘फेस्टिवल करने या फीते काटने से कला संस्कृति का विकास नही होता’

रंगमंच पर सरकारी पहरे की कोशिश पहले भी होती रही है। समसामयिक मुद्दों और राजनीतिक सवालों पर नाटक करने वाले कलाकारों को सरकारी दमन का शिकार होना पड़ा है लेकिन प्रतिरोध की ताकतें कभी कम नहीं हुईं। आवाज़ बुलंद होती रही और सत्ता प्रतिष्ठानों और प्रशासन को कई बार झुकना पड़ा। खुद को लोकतांत्रिक और आम आदमी की सरकार कहने वाली दिल्ली की आप सरकार भी इस बीमारी से अछूती नहीं रही। साहित्य कला परिषद के आगामी नाट्य समारोहों के लिए कलाकारों से जो प्रविष्ठियां मांगी गई हैं, उनकी शर्तें अगर पढ़िए तो साफ लगेगा कि अब सरकार कंटेंट अपने मतलब का चाहती है, स्क्रिप्ट वैसा ही चाहिए जो सरकार की नीतियों की तारीफ करे। इसके खिलाफ दिल्ली के युवा रंगकर्मियों में असंतोष है। मशहूर रंगकर्मी, निर्देशक और जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर नाटक करने वाली संस्था अस्मिता के संस्थापक अरविंद गौड़ ने एक बार फिर इसका प्रतिरोध कुछ इस तरह किया है। दिल्ली के संस्कृति और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को एक खुला पत्र लिख कर अरविंद ने इस फरमान का कैसे दोस्ताने तरीके से विरोध किया है आप भी पढ़िए —

मनीष भाई,
साहित्य कला परिषद, दिल्ली के ताज़ा विज्ञापन में आपकी फोटो के साथ दो थियेटर फेस्टिवल की सूचना छपी है। उसमें लिखे एक नियम में साहित्य कला परिषद के सचिव ने लिखा है कि सरकारी संस्था द्वारा ‘निर्धारित विषयों’ पर ही नाटक करने हैं।

मतलब अगर फेस्टिवल में आवेदन करना हो तो, नाट्यकर्मियों को आपकी सरकार द्वारा दिए गए विषयों या एजेंडे पर ही नाटक करना होगा।

सवाल है कि आप की सरकार ने नाट्यकर्मियों को इस लायक भी नहीं समझा कि वे खुद तय कर सकें कि उन्हें किन इश्यूज पर नाटक करना है? मतलब उन्हें नहीं पता कि नाटकों के माध्यम से वे कैसे अपने समय और समाज से जुड़ सकते हैं? यानि अब सरकार के दिशा निर्देश के तहत ही नाटक के विषय होंगे? अब सरकार तय करेगी कि हमें क्या और कैसे नाटक करने हैं?

दोस्त, यह कला की स्वयत्तता के लिए खतरनाक और गलत परंपरा की शुरुआत है। नाटक आपके हिसाब से नहीं चलेंगे, सरकार तो आती जाती रहेगी। पर रंगमंच हमेशा है और रहेगा। कृपया कला की स्वंतत्रता को नियंत्रित न करें।

आप अपने तय एजेंडे के अनुरूप विषयों पर नाटक न करायें। कला की स्वतंत्रता को खत्म न करें।

आपने वाट्सअप मैसेज में मुझे लिखा कि
“सरकार अगर कोई ज़रूरत महसूस करे और रचनाकार से उस विषय पर कुछ रचना तैयार करने के लिए कहे तो इसमें किसी को आपत्ति क्यों हो? सरकार में बैठ कर मुझे लगता है कि रचनाकार इन मुद्दों पर भी लिखेंगे तो सरकार जनजागरूकता के लिए उन रचनाओं के माध्यम से भी आगे बढ़ेगी।” (मनीष सिसोदिया)

मनीष भाई,
सरकार की जरूरत के कथित आग्रह पर आप अलग से काम कर सकते हैं। आपके संदेश से सवाल यह भी उठता है कि क्या अभी तक रंगकर्मी मुद्दे विहीन नाटक कर रहे थे? क्या सही है क्या गलत, हमें अभी तक पता ही नही था ?? अब आप हमें दिशा देकर कृतार्थ करेंगे?

सत्ता में बैठ ऐसी ग़लतफ़हमी कम से कम आपको तो नही होनी चाहिए।

साहित्य कला परिषद के भरत मुनि रंग महोत्सव और युवा नाट्य महोत्सव में विषय की यह शर्त लगा आप रंगकर्मी की स्वायत्तता के हक को बाध्य कर रहे हैं।महोत्सव में आर्थिक पक्ष हटा दीजिए। फिर देखिए कितने रंगकर्मी आपके मुद्दों पर काम करते हैं!!

आपके इसी तर्क पर जब भाजपा अपनी जरूरत के अनुरूप पाठ्यक्रम में कुछ जोड़ती है या अपनी ‘जरूरत’ के मुताबिक इतिहास में संशोधन या बदलाव करती है तो हम/आप आपत्ति क्यों करते हैं?

भाजपा और आप की सरकार की ज़रूरत के मुददों में अंतर जानता हूँ पर तर्क दोनों का एक ही क्यों है?

दरअसल इसके लिए आपको लेखकों की कार्यशाला करनी चाहिए कि वे आपके दिए विषयों पर लिखें फिर रंगकर्मियों को तय करने दीजिए कि उन्हें क्या करना है। करना भी है या नही? इतनी आजादी उन्हें दीजिये।

हाँ, मुझे साहित्य कला परिषद के बारे में कुछ कहना या लेना देना नहीं है। कला के नाम पर वह तो एक नाकारा और भ्रष्ट तंत्र है, जिसे न कपिल मिश्रा ने सुधारा न आपने समझा।

मनीष भाई मुझे आपकी नीयत पर कोई शक नहीं है, पर आपके इसी तर्क का सहारा लेकर जब कोई और अपनी ज़रूरत हम पर लादेगा तब हम उसका विरोध किस नैतिक आधार पर करेंगे ?

सबसे महत्वपूर्ण बात- दुनिया के इतिहास में जब भी रचनात्मकता को सत्ता या सरकार ने दिशा निर्देश जारी किए ,तब-तब दोयम दर्जे का काम सामने आया है। आपातकाल से लेकर छद्म राष्ट्रभक्ति तक इसके उदाहरण सामने हैं।

*सुझाव*

कुछ बेहतरीन नाटक जो इन्हीं विषयों के करीब हों, (सरकार की जरूरत के हिसाब से हों) चुन कर उन्हें दे सकते थे। पर आपकी skp समिति में इतने समझदार कहाँ हैं?

आप साहित्य कला परिषद के इस गैर लोकतांत्रिक फैसले की समीक्षा करें। निवेदन है कि विषय की बाध्यता वाले नियम को तुरंत हटाएं।

याद रखें कि वैकल्पिक राजनीति के लिए सार्थक सांस्कृतिक नीति की भी जरूरत होती है।आपने आन्दोलन में नाटक की ताकत देखी है।

रंगमंच की समस्याएं ढेर सारी हैं। फेस्टिवल करने या फीते काटने से कला संस्कृति का विकास नही होता। उसके लिए बिना आग्रह पूर्वाग्रह के संवाद करना होगा।

सिर्फ पसंदीदा लोगों की मीटिंग्स बुला कर कुछ हासिल नहीं होगा। इस पहलू पर भी ध्यान दीजिए। समस्याओं को हल करें न कि नए फैसले लादें।

मनीष भाई एकतरफा फैसले कर उसे लागू करवाना तो स्वराज की किताब में भी कहीं नहीं लिखा है।

अगर आप चाहें तो कभी भी स्वायत्तता के विषय पर खुले मंच से मुझसे संवाद कर सकते हैं।

आपके सकारात्मक जबाब के इंतजार में आन्दोलनों का आपका पुराना साथी

अरविन्द गौड़
अस्मिता थियेटर

Posted Date:

September 24, 2017

4:25 pm Tags: , , , , , , , ,
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