प्रमोद कौंसवाल की कलम से —

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प्रमोद कौंसवाल 

(कवि, कहानीकार और पत्रकार)

प्रमोद तकरीबन 28 साल से पत्रकारिता के पेशे में हैं। अमर उजाला, जनसत्ता से लेकर सहारा तक। अख़बारी पत्रकारिता भी की और टीवी में भी बहुत वक्त गुज़ारा। लेकिन मन बसता है लिखने पढ़ने में। सो पत्रकारिता महज नौकरी बन गई और लेखन इनकी पहचान। जो लोग प्रमोद को नहीं जानते, उन्हें बता दूं कि वो बेहद संवेदनशील और संजीदा किस्म के इंसान है लेकिन बकौल उनके अराजक भी कम नहीं। प्रमोद ने काफी संघर्ष किए, मजबूरन हर नौकरीपेशा की तरह कई समझौते भी किए लेकिन उनके भीतर की बेचैनी हमेशा साफ साफ दिखती रही। इसलिए तमाम आलोचनाओं के केंद्र में भी रहे। सबसे अच्छी बात ये कि प्रमोद ने कम ही सही लेकिन लिखना पढ़ना जारी रखा। ‘7 रंग’ के लिए प्रमोद लगातार लिखेंगे और इस पहल के साथ सक्रियता से जुड़े भी रहेंगे। उनकी कलम की चंद मिसालें पेश हैं —

बेगम की उम्र

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बड़ी ही सस्ती, लेकिन जिसे वह सरल कहती हैं, गायिकी करने वाली फ़रीदा ख़ानम की समकालीन पाकिस्तानी फ़नकार मुन्नी बेगम से उनके कार्यक्रम के एक रोज़ पहले यानी पूर्व संध्या पर मैंने उनका एक इंटरव्यू लिया- सिटी ब्यूटीफ़ुल के सेक्टर बाइस में। वह मेंहदी हसन की तरह कभी संजीदा गायिकी नहीं कर सकी हैं और इसमें भी तुर्रा ये कि इसके लिए वो कहती हैं मैं समझती हूं कि पाकिस्तानी पंजाब को समझ आने वाली शायरी को ही गायन के लिए उठाना चाहिए..।

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मैंने ज़्यादा सवाल नहीं किए, वही किए जो अख़बार में छपने लायक़ होते हैं या जितने काफी होते हैं। लेकिन अगले रोज़ जब पंजाब विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग (लगभग फ़ैशन परेड स्थल) के पास ऑडिटोरियम में वह मेकअप से बाहर निकली और ऑडिटोरियम के पिछले दरवाज़े से हॉल में जा ही रही थी कि मैंने पूछ लिया – आपकी उम्र कितनी होगी…। मुन्नी बेगम ने आंखें तरेरी और कहा- बड़े बद्तमीज हो… कल इंटरव्यू में ही पूछ लिया होता, बजाय इतने आसपास खड़े लोगों के सामने पूछ रहे हो। वह अंदर चली गईं… कार्यक्रम के दौरान उन्होंने दर्शकों की ओर हाथ से इशारा करके कहा- ये हुज़ूर अभी पूछ रहे थे कि आपकी उम्र कितनी है.. वैसे मैं बता दूं कि मेरी छोटी संतान चार साल की है..ख़ैर, इनकी ख़िदमत में पेश है ये नज़्म…। ये कहकर उन्होंने काफी शास्त्रीय अंदाज में गाया- …अब बुढ़ापा आ गया है सुधर जाना चाहिए…। सुनकर मुझे लगा कि पता नहीं वह अपने को बूढ़ा कह रही हैं कि मुझे…। लेकिन बता दूं कि वो ज्यादा बूढ़ी नहीं हैं, थोड़ा मोटापा कम कर दें तो आप भी मेरे पूछने के मक़सद के पीछे, मेरे चरित्र पर सवाल खड़े करने के लिए आज़ाद हैं- झूठ क्यों बोलूं !

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नज़रबंद बलराज साहनी

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बलराज साहनी को हलचल फ़िल्म में एक जेलर की भूमिका निभानी थी। के. आसिफ़ हर काम को बड़े पैमाने पर करके ही ख़ुश होते थे। एक दिन वह बलराज को ऑर्थर रो़ड स्थित जेल को दिखाने ले गए ताकि वह जेल और जेलर दोनों का गंभीरता से अध्ययन कर लें, ठीक से समझ लें। बलराज वहां काफी देर रहे और जेलर से काफी देर बतियाते रहे और क्रिएटिव गपशप लगाते रहे। कुछ महीनों के बाद ही बलराज साहनी और संतोष की शादी हो गई। शादी हुए अभी दस-पंद्रह दिन ही हुए थे। वह बलवंत गार्गी लिखे नाटक सिग्नलमैन टूली का रिहर्सल कर रहे थे। बलराज निर्देशक थे और संतोष उसमें सिग्नलमैन टूली की पत्नी का रोल कर रही थी। तब ख़बर मिली कि परेल में कम्युनिस्ट पार्टी का जुलूस निकलने वाला है और उन्हें उसमें शामिल होना हैं। दोनों पति-पत्नी साइकिल पर सवार होकर परेल चल दिए। सभा हो रही थी। पुलिस की ज़रूरत से ज़्यादा तैनाती लोगों को हैरान करने वाली थी।

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सभा के बाद जब जुलूस शुरू हुआ तो संतोष महिलाओं में और बलराज मर्दों के साथ चले। अभी कुछ दूर ही चले थे कि धमाके सुनाई पड़े। फिर लाठी, गोली भगदड़… बलराज नारे लगाते हुए पकड़े गए और हवालात की सलाख़ों में डाल दिए गए। दो महीने वह वर्ली जेल में नज़रबंद रहे। फिर ए-क्लास मिलने पर ऑर्थर जेल चले गए। वहां जेलर जब भी उनको मिलते तो उनको देखते अक़्सर कहते- मैंने आपको कहीं देखा है..। जितनी बार भी बलराज उन्हें कहते कि उनसे ग़लतफहमी हो रही है, उसका यकीन और पक्का हो जाता कि बलराज पहली बार जेल नहीं आए हैं और उन पर ख़ास नज़र रखने की ज़रूरत है। बलराज का समय कभी आसिफ़ की फ़िल्म तो कभी नाटक के बारे में सोचते हुए बीतता। ये बात अलग है उनको यह तो मालूम ही था कि वह जेलर के साथ तो नाटक कर ही रहे हैं।

 

पाब्लो की ख़ूखार दीवानी

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उन दिनों पाब्लो नेरूदा रंगून में रह रहे थे और अपने तमाम ब्रितानी दोस्तों की हिदायत के बाद भी उन सभी कामों को करते थे, जिन्हें करने का उनका मन होता था। मसलन वह तांगों पर सवारी करते, साधारण ईरानी कैफ़े में जाकर ज़ायकेवाली चाय पीते और आम लोगों से ख़ूब मेलजोल के साथ रहते। इसी मेलमिलाप में पाब्लो को एक लड़की मिली और वह उससे इश्क लड़ाने लगे। यह लड़की बर्मी थी और बला से बड़ी ही ख़ूबसूरत…। लेकिन यह चाहत जैसे-जैसे बढ़ने लगी, उस लड़की का व्यवहार वैसे-वैसे बदलने लगा। पाब्लो का जब भी कोई ख़त या तार आता, वह उनको इधर-उधर छुपा देती… कई बार रात को पाब्लो की नींद खुली तो पाब्लो देखते हैं कि मच्छरदानी के बाहर कोई भूत-प्रेत सा घूम रहा है। यह वही लड़की होती थी, सिर से पैरों तक सफ़ेद कपड़ों में और नंगा जंग लगा चाकू लिए पाब्लो के इर्दगिर्द घूमती रहती थी। लेकिन उसे मार डालने का फ़ैसला नहीं कर पाती थी।

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यह लड़की अक़्सर कहती- तू मर जाए तो मेरी चिंताएं ख़त्म हो जाएंगी…मैं चिंता मुक्त हो सकूंगी…। और अगली सुबह वह अज़ीब-अज़ीब क़िस्म के मंत्र पढ़ने लगती। और वह इसलिए कि पाब्लो सदा उसके ही साथ रहे, उसका वफ़ादार रहे, किसी और का न हो जाए…। वह पाब्लो से अलग होने की कल्पना भी करती तो कांप उठती थी। उसने एक दिन पाब्लो की हत्या कर देनी थी, यह तो पाब्लो की क़िस्मत अच्छी थी कि अचानक पाब्लो के तबादले का आदेश आ गया। उसने अपनी रवानगी की गुपचुप तैयारी की और काफी संक्षिप्त में की…। फिर एक रोज़ पाब्लो सुबह अपने सभी कपड़े और अपनी सभी किताबें वहां से छो़ड़कर बड़े सहज होकर निकले जैसे यूं ही कहीं आसपास जा रहे हों लेकिन उन्होंने तत्काल सिलोन का जहाज़ पकड़ा और चलते बने। जहाज़ के चलते ही पाब्लो नेरूदा ने उस लड़की पर जहाज़ में ही एक नज़्म लिखी।

 

 

 

Posted Date:

November 30, 2016

3:57 pm
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