आज की पीढ़ी भले ही इस आवाज़ से वाकिफ़ न हो, लेकिन यही वो आवाज़ है जिसे शास्त्रीय संगीत में आलाप का जनक माना जाता है। जी हां दोस्तों, द वेब रेडियो के इस खास शो सात रंग में इस बार बात करते हैं पंडित डी वी पलुस्कर की। मैं हूं अतुल सिन्हा।
जो लोग शास्त्रीय संगीत में दिलचस्पी रखते हैं उनके लिए पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर का नाम अनजाना नहीं है। बचपन में पटाखों की वजह से दृष्टिहीन हो चुके ये महान गायक अपनी 11 संतानों की अकाल मौत से टूट चुके थे, उनकी 12वीं संतान थे डीवी पलुस्कर। अपने पिता की गायन परम्परा को उन्होंने न सिर्फ आगे बढ़ाया, बल्कि शास्त्रीय संगीत को नया आयाम दिया। 28 मई 1921 को नासिक में जन्में दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर 14 साल की उम्र तक आते आते अपनी गायन प्रतिभा का लोहा मनवा चुके थे। उनकी आवाज़ में एक गज़ब की कशिश थी, एक दर्द था और संगीत का वो एहसास था जो श्रोताओं को एक दूसरी दुनिया में ले जाता था।
स्वरों की शुद्धता डी वी पलुस्कर की खासियत थी। फिल्म बैजू बावरा में तानसेन और बैजू के बीच हुई गायन प्रतियोगिता को जीवंत करने के लिए जब पलुस्कर को उस्ताद अमीर खां साहब के साथ गाने को कहा गया तो उन्हें लगा कि कहीं सिनेमा के लिए गाते हुए उनकी स्वाभाविकता न चली जाए, लेकिन बाद में वे गाने के लिए तैयार हो गए. वह गाना हिन्दी सिनेमा के महानतम शास्त्रीय गीतों में से एक है. “आज गावत मन मेरो झूम के”
डीवी पलुस्कर महज 34 साल की उम्र में 24 अक्टूबर 1955 ने दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन इतने कम वक्त में ही उन्होंने संगीत को जो दिया, वह कभी भी भुलाया नहीं जा सकता… उनके गाये भजन शास्त्रीयता का बेहतरीन निर्वाह करते हुए बेहद सरलता से आपके भीतर तक उतर जाते हैं। कहीं कोई तड़क भड़क नहीं.. एकदम निर्झर, अविरल… चलते चलते छोड़ जाते हैं आपको ऐसे ही एक बेहतरीन भजन के साथ।
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https://thewebradio.in/Article/Details/156/The-story-of-the-father-of-the-Alap-in-classical-music
Posted Date:June 3, 2020
1:00 pm Tags: डी वी पलुस्कर, पंडित डीवी पलुस्कर