नोएडा में बनारसी बुढ़वा मंगल

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• राजीव सिंह

पिछले दिनों बनारस के पुराने मित्र हेमंत शर्मा का एक निमंत्रण मिला. यह न्योता नोएडा में आयोजित बुढ़वा मंगल का था. बुढ़वा मंगल का नाम सुनते ही बनारस की भूली- बिसरी स्मृतियाँ मन में तैरने लगी. बुढ़वा मंगल के आयोजन में शामिल होने की लिए मंगलवार २९ मार्च को मैं नोएडा के सेक्टर ४४ में रात ८ बजते- बजते हाज़िर था. प्रवेश द्वार पर हेमंत-वीणा के बेटी- बेटे आगंतुकों के स्वागतार्थ उपस्थित थे.

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आवास के सामने बने नन्हे से पंडाल में घुसते ही सिल्क के कुर्ते में दुपलिया टोपी लगाए हेमंत और बनारसी मित्र अजय त्रिवेदी ने… आवा राजा बनारस… कहकर बनारसी अंदाज़ में ठहाके के साथ खैरमकदम किया. यहाँ छोटे से सजे-संवरे पंडाल में करीब सौ लोगों के बैठने का इंतजाम था. गायन के लिए एक छोटा सा जगमगाता मंच भी था. बनारसी मस्ती, कला- संस्कृति के प्रेमी हेमंत शर्मा बुड़वा मंगल उत्सव को बनारस से नोएडा उठा लाए.

बनारसी रंग में सराबोर शाम को बनारसी खानपान और पुरबिया लोक गीत के इंतज़ार में बुढ़वा मंगल का आयोजन भीड़- भाड़ बढ़ने के साथ धीरे- धीरे गति पकड़ रहा था. नोएडा में आयोजित बुढ़वा मंगल उत्सव पर बनारस से मंगाई गई रसवंती (चौक) की मिठाइयां, बनारसी ठंडई- मलाई, बनारसी भांग, मशहूर दीना का बनारसी चाट, शुद्ध देशी घी में बना बनारस का पारम्परिक नाश्ता कचौरी- जलेबी का व्यवस्थित स्टॉल लगा था. बनारसियों और दिल्ली के मेहमानों ने बनारसी व्यंजनों का जमकर लुत्फ़ उठाया. शायद ही कोई ऐसा मेहमान बचा हो जिसने बनारसी ठंडई का आनंद न लिया हो. कुछ लोग कोने में सोमरस का पान करते भी नजर आये.

खाने पीने के बाद बनारसी पान की तलब लगी. पान न मिलने का मलाल जरूर रहा. सिल्क का कुरता- पायजामा और सर पर दुपलिया टोपी लगाए कुछ बनारसी युवा और बुजुर्ग अंत तक मेहमानों के बीच आकर्षण का केंद्र बने रहे. बुड़वा मंगल के अवसर पर बनारस की मस्ती समेटे शाम गाती- गुनगुनाती रही. प्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी के गायन से शुरू हुआ आनन्दोत्सव रात दो बजे तक भांग- बूटी के बीच पूरी मस्ती में चलता रहा.

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मालिनी अवस्थी ने फागुन में चैती ..चढ़ल चइत चित लगे न रामा बाबा के अंगनवा…… और पूरब की स्त्रियों की मनोदशा को कुछ इस अंदाज़ में बयां किया ..रतिया बैरनि पिया को लिए जाए… करीब घंटा भर अपनी दिलकश आवाज़ में लोक गीत सुना कर जनता का भरपूर मनोरंजन किया. स्पीकर की आवाज कम होने के कारण यकायक मालिनी अवस्थी का गुस्सा साउंड को नियंत्रित कर रहे युवा श्रमिक पर जा गिरा. इंजीनियर मत बनो. साउंड को ऊपर- नीचे न करो. तुम्हारी ऊँगली सिस्टम पर अब नहीं जानी चाहिए. मालिनी की इस टिप्पणी ने लोक गीत की मस्ती में कुछ पल के लिए कड़वाहट घोल दी. उत्सव में मौजूद रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने मालिनी अवस्थी से लोक गीतों की सबसे ज्यादा फरमाइशें की. आज के मंत्रियो में लोक गीतों की समझ और सांस्कृतिक अभिरुचि ज़िंदा है, यह सुखद अहसास है.

राजा चेत सिंग के ज़माने से बनारस में घाट के किनारे गंगा पर सजे बजरो (बड़ी नाव) पर गंगा महोत्सव का आयोजन होता रहा है. तब तवायफ़ें और नर्तकियां नृत्य- संगीत, गायन पेश करती थी. आयोजन में राजे रजवाड़े, महाजन, रईस,अफसर और शहर के गणमान्य नागरिक शामिल हुआ करते थे.विगत कुछ वर्षो से हो रहे बुढ़वा मंगल कार्यक्रम में जनता की भागीदारी बढ़ी है जो लोक संगीत और नृत्य में आम जनता के बढ़ते रुझान को दर्शाता है. प्राचीन शहरों के पुराने महोत्सवों को आधुनिक शहर में जीवंत बनाए रखने में भागीदार साथियो के लिए नज़ीर बनारसी का यह शेर आज बहुत मौजूं लगता है –

मौज-ए-गंगा की तरह झूम उठी बज़्म

जिंदगी आई जहां बनारस का नाम आया.

18-04-2016

 

Posted Date:

April 18, 2016

5:13 pm
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