तकनीकी विकास के साथ बदलती ‘रामलीला’

अगर आप रामायण को महज एक आध्यात्मिक ग्रंथ और हिन्दू धार्मिक मान्यताओं से जोड़कर न देखें तो ये एक ऐसा महाग्रंथ है जिसमें जीवन और समाज के हर पहलू का बेहद तार्किक और सटीक चित्रण है। इसके हर दृश्य, हर अध्याय और हर कांड का अपना महत्व है। हज़ारों साल बीत गए लेकिन रामायण आखिर आज भी क्यों प्रासंगिक है, क्यों राम से जुड़ी लीलाएं हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की एक नायाब मिसाल हैं, इसे समझना ज़रूरी भी है और दिलचस्प भी। शायद यही वजह है कि रामलीलाएं अपनी संस्कृति और परंपरा का एक बेहद अहम हिस्सा है। गांव गांव में, कस्बे कस्बे में और हर शहर के तमाम मोहल्लों में रामलीलाएं ज़रूर होती हैं। हज़ारों रामलीला कमेटियां बनी हैं, तमाम कलाकार रामायण के पात्रों को सजीव बनाते बनाते बड़े कलाकार बन गए और कई ऐसे कलाकार भी हैं जिनका पूरा जीवन इन्हीं पात्रों को जीते हुए बीता है। कलाकारों का हाल चाहे जो हो, लेकिन बड़े शहरों में अब रामलीलाओं का भी आधुनिकीकरण हो गया है, तकनीक के साथ साथ इसका फिल्मीकरण हो गया है और बड़े बड़े कलाकार आज भी रामलीला से जुड़ना, इसके पात्रों को जीना अपना सौभाग्य समझते हैं। रामलीला के रूप और आयोजन के तरीकों में बदलाव के साथ इसे समसामिक संदर्भों से जोड़ने की कोशिशें भी लगातार हुई हैं और अब तो बड़े शहरों में इसका बजट करोड़ों में पहुंच गया है। वक्त के साथ इसका बाज़ारीकरण हो गया है लेकिन रामायण के मूल संदेश को समझाने की कोशिश आज भी इसके ज़रिए बदस्तूर जारी है और वो भी बेहद शानदार तरीके से। इस शानदार परंपरा की कुछ झलक आप भी देखिए ….

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Posted Date:

November 12, 2016

5:05 am
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