• शालिनी प्रिया सिन्हा (वास्तु और ज्योतिष विशेषज्ञ)
ज़िंदगी को खुशहाल बनाने, तनाव से मुक्त रहने और सुख-समृद्धि की भला किसे चाहत नहीं होती। इसके लिए जितनी ज़रूरत अपनी जीवन शैली और सोच को संतुलित और संयमित करने की है वहीं यह भी बेहद ज़रूरी है कि आप जहां रहते हैं, जहां काम करते हैं और जहां आपका ज्यादा से ज्यादा वक्त गुज़रता है, उसकी दशा और दिशा ठीक हो। दिशाएं हर किसी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और पूरा का पूरा वास्तु शास्त्र ही दिशाओं पर आधारित है। हम आपको बताएंगे कि आखिर दिशाओं का ज़िंदगी में क्या महत्व है और कौन सी दिशा किसी के लिए क्या मायने रखती है और यह भी कि रौशनी, हवा और घर की चीजों के रख रखाव का रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर क्या असर होता है। दरअसल वास्तुशास्त्र भी इन्हीं पहलुओं पर आधारित है और इसका ठोस वैज्ञानिक आधार है।
यही वजह है कि सदियों से मकान बनाते वक्त बहुत सारी बातों का ध्यान रखा जाता है। उदाहरण के तौर पर घर का मुख्य दरवाज़ा किस दिशा में हो, रसोईघर कैसा और किस दिशा में बनाया जाए, सोने के कमरे या बच्चों के कमरे की दिशा क्या हो, खिड़कियां कहां और कैसी हों, आलमारी कहां बनवाई जाए या रखी जाए, शौचालय या स्नानघर किस दिशा में हो आदि। पहले जगह की उतनी कमी नहीं थी, बड़े मकान बनाने की सुविधा थी और बेहद सोच समझकर वास्तु के मूल तत्वों को ध्यान में रखकर मकान बनाए जाते थे लेकिन आज के दौर में एक सामान्य आदमी के लिए मकान एक सपना है और खासकर महानगरों में उसकी ज़िंदगी फ्लैटों में सिमट कर रह गई है। बड़े अपार्टमेंट्स बनने लग गए हैं और बिल्डर्स कम जगह में सैकड़ों फ्लैट्स बनाकर करोड़ों का मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
इसके बावजूद वास्तुशास्त्र के मूल सिद्धांतों को ध्यान में रखकर आप अपने घर में खुशहाली ला सकते हैं, कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ सकते हैं और अपने भविष्य को संवार सकते हैं। इस बार हम आपको वास्तुशास्त्र के मुताबिक उन आठ दिशाओं के बारे में बताएंगे जिसकी खासियत जान लेने के बाद आप शुरूआती दौर में कुछ आवश्यक सावधानियां बरत सकते हैं। ये आठ दिशाएं हैं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम।
पूर्व दिशा :- पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा है। इस दिशा से सकारात्मक व ऊर्जावान किरणें हमारे घर में प्रवेश करती हैं। गृहस्वामी की लंबी उम्र व संतान सुख के लिए घर के प्रवेश द्वार व खिड़की का इस दिशा में होना शुभ माना जाता है। बच्चों को भी इसी दिशा की ओर मुख करके पढ़ना चाहिए। इस दिशा में दरवाजे पर मंगलकारी तोरण लगाना शुभ होता है।
पश्चिम दिशा :- इस दिशा की भूमि का तुलनात्मक रूप से ऊँचा होना आपकी सफलता व कीर्ति के लिए शुभ संकेत है। आपका रसोईघर व टॉयलेट इस दिशा में होना चाहिए। यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा हैं अतः इसे अधिक से अधिक बंद रखना चाहिए।
उत्तर दिशा :- इस दिशा में घर का प्रवेश द्वार होना बेहद शुभ और लाभकारी होता है। उत्तर दिशा में सबसे ज्यादा खिड़की और दरवाजे होने चाहिए। घर की बालकनी व वॉश बेसिन भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर धन की हानि व करियर में बाधाएँ आती हैं।
दक्षिण दिशा :- इस दिशा की ज़मीन पर भारी सामान रखने से गृहस्वामी सुखी, समृद्ध व निरोगी होता है। धन को भी इसी दिशा में रखने पर उसमें बढ़ोतरी होती है। दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का खुलापन, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए।
उत्तर-पूर्व दिशा :- ‘ईशान दिशा’ के नाम से जानी जाने वाली यह दिशा ‘जल’ की दिशा होती है। इस दिशा में बोरिंग, स्वीमिंग पूल, पूजास्थल आदि होना चाहिए। घर के मुख्य द्वार का इस दिशा में होना वास्तु की दृष्टि से बेहद शुभ माना जाता है।
उत्तर-पश्चिम दिशा :- इसे ‘वायव्य दिशा’ भी कहते हैं। यदि आपके घर में नौकर है तो उसका कमरा भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में आपका बेडरूम, गैरेज, गौशाला आदि होना चाहिए।
दक्षिण-पूर्व दिशा :- यह ‘अग्नि’ की दिशा है इसलिए इसे आग्नेय दिशा भी कहते हैं। इस दिशा में गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर आदि होना चाहिए। दक्षिण-पश्चिम दिशा :- इस दिशा को ‘नैऋत्य दिशा’ भी कहते हैं। इस दिशा में खुलापन अर्थात खिड़की, दरवाजे बिल्कुल ही नहीं होना चाहिए। गृहस्वामी का कमरा इस दिशा में होना चाहिए।
Posted Date:November 29, 2016
3:02 am