जन्मशती पर लगा सत्ता का ग्रहण

 

     

 

                                     राजेश कुमार

 

वैसे तो हर साल किसी न किसी लेखक, राजनेता, चित्रकार व नाटककार – अभिनेता – निर्देशक की जन्मशती आती और जाती रहती है । लोग उनकी जन्मशती अपने – अपने स्तर पर मनाते रहते हैं । कई संस्थाएँ – साहित्यिक – सामाजिक संगठन भी किसी न किसी रूप में उन्हें याद करते हैं । उनके किए गए कार्यों का मूल्यांकन होता है। इसमें वो संस्थान भी शामिल होते हैं जो सरकार द्वारा संचालित व उनके नियंत्रण में होते हैं। ऐसे संस्थान अगर केंद्र में होते हैं तो राज्य के तहत वहाँ की राजधानियों में भी स्थित हैं जो सभी सरकारी विभागों की तरह काम करते हैं। राज्य में अगर विभिन्न कलाओं के अनुभाग वहाँ की संस्कृति विभाग के अंतर्गत आते हैं तो साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी जैसे संस्थान संस्कृति मंत्रालय के तहत आते हैं । इनका काम होता है, इन अकादमियों से जुड़ी गतिविधियों का संवर्धन करें। कला – साहित्य – संस्कृति के आवश्यक कार्यक्रम करवायें और इनके विकास के लिए आवश्यक योजनाएँ समय – समय पर बना कर इसके प्रति लोगों में जागरूकता जगाएं ताकि कलाओं का विकास हो, कला  जन – जन तक जाए। इस तरह के काम इनकी दिनचर्या में भी है। काफी हद तक तयशुदा कार्यक्रम आयोजित होते भी हैं। जैसे पुरस्कार देना, सेमिनार आयोजित करना या समय – समय पर  प्रदर्शनी – पुस्तक मेला – जैसे कार्यक्रम ।

लेकिन अब देखा जा रहा है, वे काफ़ी सतर्क हो गए हैं। अब किसी को सम्मानित करना या किसी पर विशेष कार्यक्रम करना, संस्थान या अकादमी की स्वायत्ता के अन्तर्गत नहीं है। इस मामले में अब वे इतने स्वतंत्र नहीं हैं, जितना पहले थे। अब किसी संस्था या अकादमी के बस में ये पहले की तरह नहीं रहा। इन पर नकेल है, जिसकी डोर किसी और के हाथ में है। जिनके हाथ में नकेल है, वे सत्ता से सीधे जुड़े होते हैं। सत्ता से जैसा आदेश मिलता है, उसका वे आँख मूंदकर पालन करते हैं। अगर ऊपर से आदेश नहीं आता है तो वे समझ जाते हैं कि इस मौन का क्या मतलब है? इस चुप्पी का क्या रहस्य है ?

इस चुप्पी को जो लोग डिकोड करते हैं, वे ग़लत नहीं होते हैं। उनके अनुमान का ठोस आधार होता है। अगर किसी की जन्मशती चल रही है तो ऐसा नहीं है कि वे नहीं जानते हैं। सब जानते हैं। वे ये भी जानते हैं कि अगर इसे नज़रअंदाज़ किया जा रहा है तो उसका आधार क्या है ?

सन 25 का साल ऐसा सुखद है कि इस बार नाटक की दुनिया के कई श्रेष्ठ लोगों की जन्मशती है। अमूमन जिस वर्ष उनका जन्म हुआ होता है, उसके एक वर्ष पहले से ही जन्मशती मनाया जाना शुरु हो जाता है। जन्मशती मनाने का यह मतलब नहीं होता है कि प्रायः लोग जैसा जन्मदिन मनाते हैं उसी तर्ज़ पर जन्मशती भी मना ली जाए। ऐसा होता भी नहीं है। होता यह है कि जिस विभूति की जन्मशती मनाई जाती है, इस बहाने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर साल भर कुछ न कुछ बात की जाती है। उन्होंने किस तरह काम किया, समाज को क्या दिया, आज भी वे किस तरह लोगों से जुड़े हैं, इसकी केवल चर्चा ही नहीं करते हैं बल्कि उसका  विश्लेषण कर उनकी समसामयिकता को भी समझने की कोशिश होती है। नाटककार – निर्देशक हबीब तनवीर का जन्मदिन 1 सितंबर 1923 और प्रकाश परिकल्पक तापस सेन का जन्म 11 सितंबर 1924 है। और ‘तीसरे रंगमंच’ के सिद्धांतकार – नाटककार – निर्देशक बादल सरकार का जन्म 15 जुलाई 1925 और आधुनिक रंगमंच के सबसे बड़े  निर्देशक इब्राहिम अलकाज़ी का 18 अक्तूबर 1925 का है। तारीख़ के अनुसार तो हबीब तनवीर और तापस सेन  की जनशती तो पिछले साल 23 – 24  में पूरी हो गई। बादल सरकार और इब्राहिम अलकाज़ी का इस साल से शुरू हो गया है जो आगामी साल के जुलाई और अक्टूबर को पूरा हो जाएगा । हालाँकि जन्मशती मनाने के लिए ऐसी कोई समयसीमा निर्धारित नहीं है, न कठोरता से इस पर कोई पाबंदी है। जिनको याद करना है, जिन पर कुछ बात करने की ज़रूरत अगर समझे तो जन्मशती के बाद भी मनाया जा सकता है। लेकिन जन्मशती के दौरान उनके प्रति कोई उदासी देखते हैं तो इस उदासी का कोई कारण तो होगा । यूँहि कोई किसी के प्रति उदास तो नहीं होता है ?

अगर हबीब तनवीर की जन्मशती को मनाने की बात करें तो देखने की ज़रूरत ये है कि उनकी जन्मशती किस तरह मनायी गई या किन लोगों ने मनायी, इस पर गौर फ़रमाने की आवश्यकता है । इस बात की भी जानकारी लेने की ज़रूरत है कि मनाने वाले कौन है, उनका वर्ग क्या है, वे किस विचारधारा को मानने वाले हैं ? और जिन्होंने नहीं मनाया या जिन्हें  मनाना चाहिए, आख़िर उनके न मनाने  की क्या वजह थी ? क्या कोई दवाब था या कोई वैचारिक असहमति थी ?

हबीब तनवीर किसी  सत्ता के आदमी नहीं  थे । वे किसी राजनीतिक पार्टी से सीधे नहीं जुड़े थे, न उनके लिए प्रॉपगैंडा करते थे । अलबत्ता वे रंगमंच में राजनीति के पक्षधर ज़रूर थे । उन्होंने अपने नाटकों को कभी राजनीति से काट कर नहीं रखा । जब भी किसी राजनीतिक मुद्दों पर हस्तक्षेप करने की ज़रूरत महसूस की, बेतकल्लुफ़ होकर किया । बाबरी मस्जिद के टूटने के बाद जिस तरह देश में सांप्रदायिकता को राजनीतिक पार्टियों द्वारा हवा दी गयी, धर्म को राजनीति से जोड़कर सत्ता तक पहुँचने का निर्लज प्रयास किया गया, हबीब तनवीर ने अपने नाटकों के माध्यम से तीव्र आलोचना की । वे कट्टर धार्मिक संघटनों के सम्मुख कभी नहीं झुके । उन्होंने गाँव – गाँव,  शहर – शहर घूम – घूम कर सांप्रदायिकता और ब्राह्मणवाद विरोधी नाटक किए । विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इनके मंचनों पर हमले भी किए, लेकिन जब तक हबीब तनवीर जीवित रहे, ऐसे लोगों का विरोध करते रहे । शायद उनकी इसी प्रतिरोध की प्रवृति के कारण सत्ता वर्ग में जन्मशती मनाने के प्रति कोई रुचि उत्पन्न करने नहीं दिया । भले मौखिक रूप से इस तरह की कोई प्रतिक्रिया सुनने को न मिली हो, लेकिन सत्ता की अकादमियों और नाटक संस्थानों ने उनके प्रति जो तटस्थता बनायी, उससे उनकी मंशा तो स्पष्ट हो ही जाती  है । इसलिए पूरे वर्ष इस हलके में हबीब तनवीर को लेकर कोई सुगबुगाहट सुनाई नहीं दी । राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, बीएनए, एमपीएसडी से लेकर प्रांत और केंद्र के संगीत नाटक अकादमियों में कहीं कोई कार्यक्रम संपन्न न हुए । हुए  भी तो छोटे – छोटे शहरों में । वहाँ की रंग संस्थाओं द्वारा किसी न किसी रूप में उन्हें याद  किया गया । इस दिशा में रज़ा फाउंडेशन की भूमिका उल्लेखनीय है । उन्होंने  भोपाल, दिल्ली में जो महत्वपूर्ण विचार गोष्ठियाँ की, वह महत्वपूर्ण है । कोलकाता में भी एक बड़ा आयोजन किया गया जिसमें थिएटर के जाने – माने निर्देशकों और नाटककारों  ने भाग लिया था । अस्मिता थिएटर ग्रुप द्वारा त्रिवेणी कला संगम, दिल्ली के प्रेक्षागृह में ‘ कारवाँ – ए – हबीब‘ कार्यक्रम के बहाने उनको याद किया गया जिसमें देवेंद्र राज अंकुर, अशोक वाजपेयी, अरविंद गौड़ और प्रसन्ना ने सारगर्भित व्याख्यान दिया था । अशोक वाजपेयी ने तो सत्ता को सीधे टारगेट करते हुए कहा कि अब संस्कृति के क्षेत्र में भी सांप्रदायिक सोच प्रवेश कर गया है, वे इतने संकीर्ण हो गये हैं कि किसी के जन्मशती मनाने के पीछे वे धर्म और मज़हब ढूँढने लगे हैं। उसी के आधार पर निर्धारित करते हैं कि किसकी जन्मशती मनानी है या चुप्पी साध लेनी  है ।

संस्कृति की दिशा में सत्ता की वैचारिकी अब किसी से छिपी नहीं है । संयोग से जिन लोगों की जन्मशती इस वर्ष या अगले वर्ष तक मनायी जानी है, उसमें कोई भी इनकी विचारधारा के समदृश्य नहीं है । देश के सबसे बड़े प्रकाश परिकल्पक तापस सेन को तो बंगाल के बाहर किसी ने याद भी नहीं किया । बंगाल में अलबत्ता उनपर ज़रूर गोष्ठियाँ हुई और उनके कार्यों को लोगों ने याद किया । फिर सवाल है बाहर क्यों नहीं याद किया गया ? तापस सेन केवल बंगाल के नहीं थे । वे केवल बंगाली नहीं थे । उनका तो जन्म दिल्ली में हुआ, पूरी पढ़ाई यहीं  हुई । नाटक में प्रकाश परिकल्पना व संयोजन अभी भी बिजली मिस्त्री का काम  समझा जाता है । इस उपेक्षित कार्य को तापस सेन ने नाटक के केंद्र में लाकर रख दिया था । बताया  कि प्रकाश भी नाटक का एक प्रमुख भाग है, इसे नजरंदाज करना नाट्य कला के हित में नहीं है । जितना महत्वपूर्ण नाटक में अभिनय है , उतना ही वह प्रकाश जिसमें नाटक खेला जाना है, पात्रों को समुचित प्रकाश से आलोकित किया जाना है, उनके भावों को दर्शकों तक उचित ढंग से संप्रेषित करना है । लेकिन आजकल कला कौन देखता है? सत्ता की नज़र उसकी विचारधारा पर होती है । अगर उसे उसकी विचारधारा साम्य नहीं दिखती है तो वह उनके किसी काम का नहीं होता है । हबीब तनवीर हो या तापस सेन, इनके कला की पक्षधरिता हमेशा से शोषित – पीड़ित – हाशिये के समाज के साथ रही है । हमेशा से ये उत्पीड़ितों के पक्ष में रहे। ज़रूरत पड़ने पर सत्ता के विरुद्ध भी खड़े हुए । संभवतः उनका यह पक्ष वर्तमान निजाम को भाया नहीं होगा । बल्कि सत्ता की जो वैचारिकी है, उसके विपरीत लगा होगा । यह एक प्रमुख कारण होगा जिसकी वजह से जन्मशती पर जो सम्मान मिलना चाहिए था, नहीं मिला । ऐसा नहीं कि जन्म शती मनाने की वर्तमान सत्ता के यहाँ कोई परंपरा नहीं है । इनके जो नायक होते हैं, उन्हें प्रतिष्ठापित करने का ये कोई मौक़ा नहीं छोड़ते हैं । पिछले वर्ष आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने के बहाने इन्होंने अपनी विचारधारा से जुड़े लोगों को महिमा मंडित करने का कोई कसर नहीं छोड़ी । बल्कि उत्साह में आकर आज़ादी की लड़ाई के गुमनाम नायकों को हिन्दुवादी अमलीज़ामा पहना कर भगवा रंग में रंगने से बाज नहीं आए ।

लेकिन हमारा समाज इतना कृतघ्न नहीं है । हैं कुछ लोग जो यादों को बिसरने नहीं देते । दिया जला कर रास्ता दिखाने का काम करते हैं । एनएसडी के अल्युमनी की एक रंग संस्था है, उन्होंने 21 और  22 दिसंबर को प्रभा खेतान फाउंडेशन और साहित्य अकादमी के सहयोग से दो दिनों का राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन रवींद्र भवन के साहित्य अकादमी के हॉल में किया । 21 तारीख़ को हबीब तनवीर और बादल सरकार पर चर्चा हुई । हबीब तनवीर पर मोहम्मद फ़ारूक़ी और ब्रह्म प्रकाश ने अपना अभिमत रखा । मोहम्मद फ़ारूक़ी ने हबीब तनवीर की जीवन यात्रा से परिचय कराया तो ब्रह्म प्रकाश ने उस पक्ष को सामने लाया जो अभी भी सामने नहीं आ सका  है । या उस पहलू को सामने लाने  से कन्नी काटते हैं । उनका कहना था कि हबीब तनवीर ने आधुनिक रंगमंच को लोक से जोड़ कर ब्राह्मणवादी ढाँचे से जो बाहर लाया, वह रंगमंच को  वर्गहीन तो करता ही है उसे वर्णहीन भी करता है । बादल सरकार पर एम के रैना ने आपातकाल के दौरान किए गए जुलूस और भोमा की तैयारी और किए गए मंचनों का दर्शकों पर पड़ते प्रभाव पर प्रकाश डाला । तो अमिताभ श्रीवास्तव ने बादल सरकार के ‘तीसरा रंगमंच’ के सैद्धांतिकी का विश्लेषण किया । वर्तमान में इसकी क्या संभावना हो सकती है, इस पर भी सकारात्मक दृष्टि से प्रकाश डाला । दूसरे दिन का सत्र तापस  सेन और इब्राहिम अलकाज़ी पर केंद्रित था । इसके स्पीकर गौतम भट्टाचार्य और स्नेहांशु मुखर्जी  थे । दोनों स्पीकरों ने तापस सेन ने यही बताने का प्रयास किया कि तापस सेन आजीवन जीवन और जगत के नाना रहस्यों के प्रति अनन्य जिज्ञासु भाव से भरे रहे और मंच व महाकाश की आलोक रश्मियों को समझने का प्रयास करते रहे । उनकी प्रस्तुतियों में आलोक का रहस्य उदघाटित होता है । वे नितांत निर्वैयक्तिक और निर्मोही ढंग से प्रकाश  कणिका का निरपेक्ष संचरण संभव बनाते थे । और इस तरह दिव्विध चल से चलते हुए, उनकी सत्ता के साथ घुल – मिल कर जो रचना बनती थी, उसमें एक वृत्त पूरा होता था, जो जीवन का ही नामांतरण है ।

अंतिम सत्र इब्राहिम अलकाजी पर था । इस सत्र का सुखद पहलू यह  था कि इसमें दशकों की सराहनीय उपस्थिति थी । हॉल भरा हुआ  था । अन्यथा पूर्व के सत्र में दर्शकों की कमतर संख्या निराशा उत्पन्न कर रही थी । मंडी हाउस जहां एनएसडी है, श्रीराम सेंटर जैसी कई संस्थाएँ हैं … जहां दिनभर रंगकर्मियों का हुजूम लगा रहता है वहाँ इन महान रंगकर्मियों के  जन्मशती के मौक़े पर इतनी कम उपस्थिति चिंता का सबब तो उत्पन्न करता ही है । अमाल अल्लाना ने अपने पिता इब्राहिम अलकाजी पर लिखी किताब के कुछ अंश का पाठ किया तो अनुराधा कपूर ने अपना अभिभाषण  उनकी प्रतिबद्धता पर फोकस किया । आज़ादी के बाद इब्राहिम अलकाजी ने जिस तरह का रंगमंच किया, वह क्यों ज़रूरी था, इस पर विस्तार से प्रकाश डाला ।

इस सेमिनार के आमंत्रण पत्र पर साहित्य अकादमी का भी नाम था । लेकिन इस आयोजन से उनकी दूरी इतनी ही थी जितना कि किसी ब्राह्मण का किसी अछूत से होता है । कहीं से भी साहित्य अकादमी की अंतरंगता नहीं दिखाई दे रही थी । कहीं से भी उनकी कोई सहभागिता नहीं दिख रही थी । उन्होंने इस कार्यक्रम हेतु हॉल मुहैय्या करा दिया था, शायद इतना तक ही अपनी ज़िम्मेदारी समझती हो । जबकि रवींद्र भवन के प्रांगण में आये दिन बड़े – बड़े वृहद् कार्यक्रम होते हैं, उनकी भव्यता भी देखने योग्य होती है । पिछले दिनों दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी  और श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर देश भर में योजना के तहत बड़े स्तर पर कार्यक्रम हुए । शायद इस कारण से कि ये सत्ता की वैचारिकी को सबल कर रहे थे । उनकी विचार के सहयात्री थे ।

लेकिन हबीब तनवीर, बादल सरकार, तापस सेन और इब्राहिम अलकाजी को इसलिए नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि आपकी सात की विचारधारा के अनुरूप नहीं थे । इन्होंने रंगमंच के लिए जो भी किया, इस पर कि कोई भी गर्व कर सकता है । देश आज़ाद होने के बाद इब्राहिम  अलकाजी ने भारतीय रंगमंच को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दी । आज़ादी के पूर्व हमारा रंगमंच जो औपनिवेशिक रंगमंच था, उसे इब्राहिम अलकाजी ने आधुनिक रूप दे कर समृद्ध और संपन्न बनाया । अगर उन्होंने कथ्य के रूप में उदार, खुलापन लाया तो रूप के स्तर पर नये – नये प्रयोग किए । उनका आधुनिक रंगमंच कहीं से विचार में संकीर्ण नहीं था, न परंपरा के नाम पर अंध विश्वास  – कठमुल्लापन का संकट । संभवतः तत्कालीन राजनीति का भी उन पर असर हो ।

जो लोग हबीब तनवीर, बादल सरकार , तापस सेन और इब्राहिम अलकाजी को किसी सत्ता या किसी विचारधारा से जोड़कर उनकी जन्मशती को भूलना चाहते हैं तो उन्हें याद रखना चाहिए … जो जनता के लिए काम करते हैं, वे जनता के दिलों में रहते हैं । उसे कोई इग्नोर करना चाहे, तो भी इग्नोर नहीं किये जा सकते । इसलिए कि ये ज़मीन से निकले हुए हैं, इसी आग में तपे हुए हैं  …

दरअसल ये फ़ीनिक्स चिड़िया हैं । जल कर ज़मीन पर गिरेगी । फिर पैदा हो जायेंगी । ये ज़िंदा रहते हैं । जहां इनको मिट्टी … हवा … पानी मिलती है … फिर से खिल जाते हैं …

इन पर कोई ग्रहण नहीं लग सकता । न अर्द्ध … न पूर्ण ग्रहण ।

 

 

 

मोबाइल : 9453737307

Posted Date:

January 17, 2025

11:38 pm

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