कहानियां बातें करती हैं — मृणाल सेन

दीपक रस्तोगी

14 मई 2016 को मशहूर फिल्मकार मृणाल सेन 93 साल के हो चुके हैं। तीन साल पहले एक बातचीत में उन्होंने कहा था, ‘नब्बे साल पहले आज के दिन एक दुर्घटना घटी थी। अब मुझे नए एक हादसे का इंतजार है।’
मृणाल सेन जिसे भविष्य का हादसा बता रहे हैं, आखिर वह है क्या? दरअसल, वे एक फिल्म की योजना बना रहे हैं। 2002 से फिल्में बनाना छोड़ चुके मृणाल सेन दोबारा मैदान में उतरने की योजना बना रहे हैं। ‘मृगया’, ‘भुवन शोम’, ‘खंडहर’, ‘अंतऋण’, ‘पदातिक’ समेत हिंदी और बांग्ला फिल्म जगत को 18 कालजयी फिल्में देने वाले मृणाल दा सौमित्र चटर्जी और नसीरुद्दीन शाह को लेकर एक साइंस फिक्शन फिल्म की योजना बना रहे हैं। इस फिल्म में ढेर सारी कॉमेडी होगी। जाहिर है, मृणाल सेन अपनी इस फिल्म में लीक से हटकर दिखेंगे। ऋत्विक घटक और सत्यजीत राय के समकालीन मृणाल सेन के साथ दीपक रस्तोगी ने लंबी बातचीत की। पेश हैं कुछ हिस्से :

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सवाल : वर्ष 2002 में आपकी फिल्म आई थी- ‘आमार भुवन’। उसके बाद आपने चुप्पी साध ली। क्या वजह रही?
जवाब : उम्र हो गई है। दौड़ भाग कर फिल्में बनाने के दिन तो अब नहीं रहे। कुछ समय पूर्व मैंने चार्ली चैप्लिन की जीवनी पढ़नी खत्म की है। चैप्लिन अपने आखिरी समय तक सक्रिय रहे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा भी है, ‘मौत के पहले तक मेरे दिमाग में नए-नए विचार कुलबुलाते रहेंगे। जब मुझे जाना होगा, तब चला जाउंगा। व्हेन आई गो, आई गो।’ लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है। यह मैं जरूर मानता हूं कि अभी फिल्मों के लिए काफी कुछ किया जा सकता है। चारों ओर कहानियां ही कहानियां बिखरी पड़ी हैं। अखबारों की सुर्खियां तक कहानियां दे देती हैं। कहानियां बातें करती हैं। इधर,फिल्मों में काफी एक्सपेरिमेंट भी हो रहे हैं। जिससे कुछ कहने की इच्छा जगती है।
सवाल : एक समय आप कम बजट वाली फिल्मों की बात करते थे। अब वे बातें सपने सी लगती होंगी?
जवाब : कई लोग इसी कारण तो मुझसे फिल्में बनाने के लिए कह रहे हैं। कोई कहता है, ‘मैं पैसा लगाता हूं, आप जैसी इच्छा हो वैसी फिल्म बनाएं।’ एक बैंक वाले फोन कर रहे हैं, ‘छह करोड़ रुपया देंगे।’ मैंने उनसे कहा है, इतने में तो मैं छह फिल्में बना डालूंगा।
सवाल : कोलकाता आपका प्रिय शहर है और आपकी फिल्मों में काफी दिखता भी है। आपके मित्र और समकालीन ऋत्विक घटक और सत्यजित राय ने जिस तरह से गांवों को दिखाया है, कभी आपको वैसे विषय लेने का मन नहीं हुआ?
जवाब : मैं जब कोलकाता आया था, तब मुझे यह शहर बड़ा भयंकर सा लगा था। फिर धीरे-धीरे इस शहर को मैंने प्यार करना शुरू किया। 49 साल के बाद फरीदपुर (बांग्लादेश) के अपने गांव गया था। मुझे बेहद कष्ट हुआ। अपनी छोटी बहन रेवा की बेहद याद आई, जो पांच साल की उम्र में बाड़ी के तालाब में डूबकर मर गई थी। बांग्लादेश के कवि जसीमुद्दीन उसकी उम्र के थे। वे, रेवा और मेरे बड़े भाई गहरे दोस्त थे। रेवा कहा करती, उसे पता करना है कि फूल कैसे खिलते हैं। इसके लिए कभी रात भर जगकर देखेगी। वहां गया तो पुरानी यादें… मैं भावुक हो गया था। कोलकाता लौटा तो स्वाभाविक हुआ। जीवन का मूल मंत्र- चरैवैति, मानकर मन को समझा लिया।
सवाल : आपकी फिल्मों में चरैवैति का यह मंत्र खूब दिखता है। कभी आपको यह नहीं लगा कि फिल्में कम चलीं और तुलनात्मक रूप से आपके मित्रोंकी फिल्में ज्यादा पसंद की गईं…
जवाब : फिल्में नहीं चलतीं, तब मन ही मन में कई बार मैंने कोलैप्स किया है। लेकिन मेरी चिंतनधारा प्रभावित नहीं हुई। बदली नहीं। मेरे अलावा सत्यजित राय और ऋत्विक घटक की फिल्में खूब चलीं- ऐसा तो नहीं था। एक खास किस्म के दर्शकों को ध्यान में रखकर हम लोगों ने फिल्में बनाईं।हमारे दर्शक वर्ग ने हमें सराहा ही।

Film Meker Mrinal Sen with her wief at her Kolkata Resident on the occsion for Filmmaker Mrininal Sen celebrates his 89th Birthday on May 14,2012 in Kolkata,Photo By Debajyoti Chakraborty,Kolkata.

फिल्मकार मृणाल सेन अपनी पत्नी के साथ

सवाल : सत्यजित राय बनाम मृणाल सेन। आप दोनों की फिल्मों की काफी तुलना की गई। निजी जिदगी में आप दोनों की मित्रता कभी प्रभावित हुई क्या?
जवाब : एक दफा मैं कॉन फिल्म फेस्टिवल जा रहा था। विजया राय (सत्यजित राय की पत्नी) ने मेरी पत्नी को फोन कर कहा, ‘गीता, वे लंदन में हैं। वहां के कॉन जाएंगे। कोई सूट नहीं ले गए हैं। थ्री पीस नहीं पहनेंगे। कुर्ता-पजामा मंगाया है। मैं पैकेज भेज रही हूं। मृणाल बाबू को याद दिला देना किपहुंचा दें।’ इसी तरह एक बार मैं मुंबई से गुजरात जा रहा था- भुवन शोम की शूटिंग के लिए। मानिक बाबू तब कोलकाता से मुंबई आ रहे थे। उनके जरिए गीता ने एक पैकेज भेजा था। मानिक बाबू उसे खूब संभाल कर ले आए थे। पता है, उसमें क्या था- नकली मूंछें। हमारे संपर्क ऐसे थे-प्रतियोगिता जैसी कोई बात नहीं थी।
सवाल : नया क्या करने की सोच रहे हैं?
जवाब : मेरे मित्र फिल्मकार चिदानंद दासगुप्त की अक्सर शिकायत रहती है कि मैंने हमेशा गंभीर फिल्में बनाईं। लेकिन हकीकत यह है कि फिल्म भुवन शोम में कॉमेडी थी। फिल्म के आखिरी दृश्य को देख लीजिए, जिसमें उत्पल दत्त चुटकी में रंग बदलते हैं। इसी तरह कॉमेडी को बेस कर फिल्म बनाने के बारे में मैं पिछले कुछ दिनों से गंभीरता से सोच रहा हूं- सौमित्र चटर्जी और नसीरुद्दीन शाह को लेकर। प्रस्तावित फिल्म में सौमित्र चटर्जी का किरदार आधी हिंदी और आधी बांग्ला बोलता नजर आएगा। नसीरुद्दीन शाह आधी हिंदी और आंधी अंग्रेजी बोलेंगे। दोनों वैज्ञानिक होते हैं और कुछ अनूठा इजाद करेंगे। ।

Film Meker Mrinal Sen look her Photographs at her Kolkata Resident on the occsion for Filmmaker Mrininal Sen celebrates his 89th Birthday on May 14,2012 in Kolkata,Photo By Debajyoti Chakraborty,Kolkata.

अपने पुराने अल्बम की तस्वीरें देखते मृणाल दा

सवाल : सेंसरशिप व्यवस्था पर क्या कहेंगे आप? अक्सर काफी बातें उठती हैं।
जवाब : आप क्या कोई विकल्प सुझा सकते हैं। यह ऐसी सच्चाई है, जिसे स्वीकार करना होगा। हकीकत यही है कि फासीवादी व्यवस्था में आपको थोड़ी-बहुत छूट मिलती है। उसी से काम चलाना होगा। फिल्में बनाने में अच्छी-खासी पूंजी लगती है। यह काम आप गोपनीय तौर पर नहीं कर सकते। अपनी फिल्मों को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए जो रास्ता उपलब्ध हो, उसी पर चलना होगा।
सवाल : आपको लगता है कि भारतीय फिल्मों पर समेकित तौर पर बात नहीं होती। हिंदी फिल्मों के दर्शक को यह नहीं पता होता कि असमिया और मलयामी फिल्मों का क्या हाल है। मलयाली फिल्मों के दर्शक हिंदी और बांग्ला से कटे हुए हैं। अगर यह कवायद है भी तो सिर्फ राष्ट्रीय पुरस्कारों तक सिमट कर रह गई है?
जवाब : मुझे बुरा लगता है जब तथाकथित भारतीय सिनेमा की बात होती है। क्यों नहीं भारत की फिल्में टर्म का इस्तेमाल किया जाता है। मैं असहज महसूस करता हूं।

Posted Date:

November 16, 2016

5:32 pm
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