त्रिलोचन जी को गए भले ही नौ साल गुज़र गए हों लेकिन आज भी यही लगता है कि वो हमारे बीच ही हैं। उनके साथ जिन लोगों ने वक्त गुज़ारा, जिन लोगों ने उन्हें करीब से देखा और महसूस किया, उनके लिए वो हमेशा रहेंगे। अपनी कविताओं के साथ साथ अपने बेहद सरल और आत्मीय व्यक्तित्व की वजह से। ये हमारे साहित्य जगत का दुर्भाग्य है कि जो लोग अपनी मार्केटिंग नहीं कर पाते, जो लोग सत्ता के करीब नहीं रह पाते और जिनके लेखन में सही अर्थों में साहित्य, भाषा और समाज की वाजिब चिंता झलकती हो, उन्हें हाशिए पर धकेल दिया जाता है। त्रिलोचन जी के साथ भी ऐसा ही हुआ। तमाम तरह के पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले ज़रूर लेकिन जीवन के अंतिम दिनों में जिस तरह वो साहित्य जगत के तथाकथित महारथियों की उपेक्षा के शिकार हुए, अलग थलग कर दिए गए, वह अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है।
लेकिन त्रिलोचन जी ने जितना लिखा, जितना वो पढ़ते थे और जिस बेबाकी से सामाजिक, राजनीतिक हालातों का विश्लेषण करते थे, वो दुर्लभ है। अखबारों की हर छोटी बड़ी खबर वो दिन भर पढ़ते रहते थे। आखिरी दिनों तक भी अपने सारे काम खुद करते थे। किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे और इतने सफाई पसंद थे कि खुद वाश बेसिन तक साफ़ कर दिया करते थे। यमुना विहार में उनके साथ गुज़रे चंद साल और लगभग हर रोज़ होने वाली उनसे मुलाकातें, उनके साथ घंटों तमाम मसलों पर बातें करना और हर शब्द के मायने समझना, उनका 75वां जन्मदिन यमुना विहार के अपने छोटे से कमरे में एक छोटी सी कवि गोष्ठी के साथ मनाना… और भी जाने कितना कुछ.. कैसे भूला जा सकता है। पत्नी शालिनी के साथ उनका संवाद, हमारे घर उनका आना जाना, कुछ देर आराम करना और कुछ दिनों बाद अपनी दोनों बेटियों अंतरा और समृद्धि के साथ हरिद्वार में उनका दादा जी वाला स्नेह.. सबकुछ स्मृति पटल पर आज भी वैसे का वैसा है।
त्रिलोचन जी की कुछ तस्वीरें हमारे अल्बम में भी हैं। इनमें से कुछ आप भी देखिए
हरिद्वार के अपने घर में त्रिलोचन जी… साथ में मनु, अंतरा और समृद्धि…(2003 की तस्वीर)
Posted Date:December 9, 2016
2:56 pm Tags: trilochan, trilochan shashtri, literature trilochan, poet trilochan