ललित कला अकादमी की पहल
नई दिल्ली।
मुख्य धारा की पत्रकारिता से किस तरह कला और संस्कृति हाशिये पर चली गई है और इसे कैसे मीडिया में सम्मानजनक जगह दिलाई जाए, इसे लेकर ललित कला अकादमी खासा चिंतित है। अकादमी ने इस बारे में चिंतन और कारगर पहल करने के मकसद से दिल्ली में भारतीय भाषाओं के करीब 50 कला लेखकों का एक सम्मेलन किया। दो दिन के इस सम्मेलन में हिन्दी, अंग्रेजी के अलावा अन्य क्षेत्रीय और प्रादेशिक भाषाओं के कला लेखकों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अखबारों, पत्र पत्रिकाओं, टीवी चैनलों के अलावा डिजिटल मीडिया में कला और संस्कृति से जुड़ी गतिविधियों और खबरों को पर्याप्त जगह मिलनी चाहिए। कला लेखन का स्तर सुधारने के अलावा नई पीढ़ी में कला और संस्कृति को लेकर नई चेतना का विकास होना चाहिए। इसके लिए लगातार मीडिया के साथ समन्वय बनाना जरूरी है।
ललित कला अकादमी के प्रशासक सी एस कृष्णा सेट्टि कहा कहना था कि कलाकृतियां, चित्रकला, मूर्तिकला, ग्राफ़िक्स आदि का सृजन करना एक बात है, लेकिन उसको शब्दों में ढालना और समझना एक अलग विधा है जो कि कला लेखकों का काम है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि हमारे देश में अंग्रेज़ी में लिखने वालों को ज्यादा सम्मान मिलता है और भारतीय भाषाओं के लेखकों को दोयम दर्जे का माना जाता है। दृश्य कला में कला सृजन करने वाले की तो बहुत तारीफ़ होती है पर उस पर लिखने वाले को वह महत्व नहीं मिलता। शायद इसीलिए कला लेखन को ज्यादातर पत्रकार और कलाकार पेशे के तौर पर चुनना पसंद नहीं करते।
उन्होंने बताया कि जहाँ 80-90 के दशक में अख़बार के पन्नों पर आधे पन्ने से अधिक और कभी-कभी पूरे पेज पर कला लेखन को जगह मिलती थी लेकिन हालत बद-से-बद्तर हो गयी है। सेट्टि ने भरोसा दिलाया कि कला लेखन के क्षेत्र को सम्मान दिलाने और मीडिया के अलग अलग मंच पर इसे जगह दिलाने के लिए ललित कला अकादमी प्रतिबद्ध है।
साहित्य अकादमी परिसर में 29 और 30 जुलाई को हुए इस दो-दिवसीय सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव और मशहूर कला इतिहासकार प्रो. रतन पारिमू। प्रो. परिमू ने इस पहल की तारीफ करते हुए सुझाव दिया कि सभी राज्यों के कला लेखकों और समीक्षकों के लेखों का एक संग्रह प्रकाशित करना चाहिए। साथ ही साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी को को कला लेखन के क्षेत्र में मिलकर काम करना चाहिए।
सम्मेलन में जिन विषयों पर चर्चा हुई वो थे – ‘भारतीय कला लेखकों के द्विभाषिक प्रकृति और उनके सोच पर इसके प्रभाव’, ‘मुख्यधारा से जुड़ने में अनुवाद का महत्व’ और ‘भारतीय भाषाओं में कला लेखन का प्रसारण’। इनमें जिन कलाकारों और कला लेखकों ने हिस्सा लिया उनमें हिन्दी के आलोक पराड़कर, अमित कल्ला, सुनील कुमार, विनय कुमार, देव प्रकाश चौधरी, अवधेश अमन, अवधेश मिश्र समेत अंग्रेज़ी, असमिया, कन्नड़, तेलुगु, मराठी, राजस्थानी, उड़िया, गुजराती, असमिया, बंगाली जैसी भाषाओं से जुड़े कला लेखक शामिल थे।
Posted Date:July 31, 2017
3:02 pm Tags: कला लेखन, ललित कला अकादमी की पहल, कैसे बढ़े कला लेखन, कला लेखन की नई संभावनाएं, हाशिए पर कला लेखन