और अब नीलाभ भी चले गए…

अब जंगल ही नहीं शहर भी खामोश है

नई दिल्ली। मशहूर कवि और पत्रकार नीलाभ अश्क का संक्षिप्त बीमारी के बाद शनिवार को निधन हो गया। वह 70 साल के थे। नीलाभ का जन्म 16 अगस्त 1945 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता उपेंद्र नाथ अश्क हिंदी मशहूर लेखक थे। कई चर्चित कृतियों का अनुवाद भी किया। कुछ ही दिन पहले नीलाभ के समकालीन रहे कवि पंकज सिंह ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया था। नीलाभ की मशहूर काव्य कृतियों में अपने आप से लंबी बातचीत, जंगल खामोश है, उत्तराधिकार, चीजें उपस्थित हैं, शब्दों से नाता अटूट है, खतरा अगले मोड़ के उस तरफ है, शोक का सुख और ईश्वर को मोक्ष शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने हिन्दी साहित्य का मौखिक इतिहास नामक एक चर्चित किताब भी लिखी।

neelabh

उन्होंने अरूंधति राय की बुकर पुरस्कार से सम्मानित पुस्तक द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स का अनुवाद ‘मामूली चीजों का देवता’ शीर्षक से किया था। साल 1980 में बीबीसी की विदेश प्रसारण सेवा की हिन्दी सर्विस में बतौर प्रोड्यूसर लंदन चले गये और वहां चार साल तक काम किया। इसके अलावा उन्होंने शेक्सपीयर, ब्रेख्त और लोर्का के कई नाटकों का काव्यात्मक अनुवाद किया। नीलाभ ने लेर्मोन्तोव के उपन्यास हमारे युग का एक नायक का भी अुनवाद किया। उन्होंने विलियम शेक्सपीयर के चर्चित नाटक किंग लियर का अनुवाद ‘पगला राजा’ शीर्षक से किया था। नीलाभ ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की त्रैमासिक पत्रिका नटरंग का संपादन भी किया। इस समय वह अपने संस्मरणों पर आधारित ब्लॉग नीलाभ का मोर्चा लिख रहे थे।

Posted Date:

July 29, 2016

2:44 am
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