लखनऊ में गोमतीनगर स्थित मंत्री आवास का फ्लैट नंबर 11 गोपालदास नीरज का मौजूदा ठिकाना है। औपचारिक तौर पर वह यहीं रहते हैं। अनौपचारिक तौर पर कई जगह उनकी रिहाइश है। मसलन सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मोबाइल में वह अपने लिखे गाने की सूरत में दर्ज हैं। खुद मुख्यमंत्री मानते हैं कि जब वह मायूस होते हैं तो नीरज का गाना ‘ए भाई जरा देख के चलो…’ ऑन कर देते हैं। फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के इस गाने के लिए साल 1972 में नीरज को फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था। नीरज लेटर बॉक्स में रोज आती उन चिट्ठियों में रहते हैं, जो इस 92 साल के बुजुर्ग मगर रूमानी शायरनुमा कवि को तमाम कॉलेज गर्ल्स लिखा करती हैं। प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर शहर के युवा फिल्मकार तक उनके ईद-गिर्द जो डेरा जमाए रहते हैं… नीरज उस डेरे की जिंदादिली में रहते हैं। उनको खुद एहसास है अपने कीमती होने का, इसीलिए उम्र के इस पड़ाव पर भी उन्होंने अपनी चंचलता.. चपलता… रूमानियत और चेहरे की चमक को बाकायदगी से सहेज के रखा है।
मैं शृंगार का नहीं, दर्शन का कवि हूं
जब चले जाएंगे लौट के सावन की तरह…
याद आएंगे प्रथम प्यार के चुंबन की तरह…
जिक्र जिस दम भी छिड़ा उनकी गली में मेरा…
जाने शरमाए क्यों वह गांव की दुल्हन की तरह…
नीरज की कविताई में रूमानियत की ऐसी कई मिसालें हैं। कहीं रूठना है… कहीं मनुहार… कहीं गोरी के रूप का बखान है तो कहीं पुरवाई की महक… इन सबके साथ इसी तर्ज पर बुने गए फिल्मी गानों की भी लंबी फेहरिस्त है। यही वजह है कि गोपालदास नीरज को इस सदी के महान शृंगार कवियों में से एक माना जाता है। लेकिन नीरज इस उपाधि को स्वीकार नहीं करते। वह कहते हैं कि प्रेम कविताओं को लोकप्रियता ज्यादा मिली है, मगर उनसे इतर भी मैंने बहुत कुछ लिखा है। नीरज कहते हैं कि सच तो यह है कि मैंने शृंगार के प्रतीक से लेकर दर्शन लिखा है।
पहला प्रेम याद आता है…
यों तो नीरज अमूमन मसरूफ रहते हैं, मगर वह उम्र के उस दौर में हैं, जहां पिछली जिंदगी की यादें चुपके-चुपके चली आती हैं। लिहाजा नीरज का दिल भी कोरा नहीं रहता। उनसे पूछो कि इतने बरस की कौन-सी स्मृतियां उन्हें सबसे ज्यादा सताती हैं तो अनायास ही नीरज अपनी पहली पत्नी का नाम लेते हैं और कहते हैं, उसकी याद आती है। फिर उनका हास-परिहास वाला स्वभाव उनकी भावनाओं पर हावी होता है और वह अपने प्रेम संबंधों का जिक्र छेड़ देते हैं। साफगोई से कहते हैं कि प्रेम संबंध भी खूब याद आते हैं… खासतौर से वह पहला वाला…
प्रेम की परिभाषा नीरज के शब्दों में
कविताओं से लेकर जीवन तक में नीरज पर प्रेम खूब बरसा है। यहां तक कि मायानगरी भी उनकी दीवानी रही है। लिहाजा प्रेम पर उनकी राय के अपने मायने हैं। नीरज बड़ी बेबाकी से प्रेम की अपनी परिभाषा बताते हैं। उनके अनुसार प्रेम वासना से शुरू होता है। वह कहते हैं कि हमारे शास्त्रों में काम और कामायनी है। प्रेम कहीं नहीं लिखा है!
अगर बैठा तो बस बैठ जाऊंगा
नीरज सुबह 8 बजे उठते हैं और फिर रात 10 बजे ही बिस्तर पर लेटते हैं। इस बीच बहुत कुछ होता है, मसलन खाना-पीना… लोगों से मेल-मुलाकात… फोन पर बतकहियां… अकादमी का हालोहवाल और कई बार तो अकादमी का दौरा भी। कविताई भी साथ-साथ चलती रहती है और हिसाब-किताब भी। सप्ताह के चार दिन वह कवि सम्मेलन के मंच पर होते हैं। कभी सीतापुर तो कभी फैजाबाद… कभी लखनऊ तो कभी कहीं और। आस-पास के लोग टोकते हैं कि तनिक विश्राम कर लीजिए तो नीरज एक ही जवाब देते हैं कि अगर बैठा तो बस बैठ जाऊंगा, इसलिए बस चलने दो। जब तक मन में ऊर्जा है तब तक चलने दो।
अभी कालजयी रचना नहीं लिखी
सैकड़ों फिल्मी गीत.. अनगिनत काव्य रचनाएं.. और भी बहुत कुछ लिखने वाले गोपालदास नीरज का मानना है कि उन्होंने अभी अपनी कालजयी रचना नहीं लिखी। वह इसे अपनी अंतिम इच्छा भी मानते हैं। कहते हैं बस शरीर थोड़ा साथ दे दे तो अपनी कालजयी रचना लिख लूं।
December 7, 2016
5:24 pm Tags: नीरज, गोपाल दास नीरज, कवि नीरज, गीतकार नीरज, Gopal Das Neeraj, Poet Neeraj, Lyricist Neeraj