देर तक जलने वाली रोशनी की तरह…

संबलपुरी-कोस्ली भाषा के कवि पद्मश्री हलधर नाग को करीब से जानिए

• देव प्रकाश चौधरी

अंगोछे को कंधे पर धरे हुए,अपनी चीजों, अपने पेड़ पौधों, पालतू जानवरों और अपने परिजनों की सुबह-शाम से घिरे हुए, हलधर नाग के होने का मतलब सिर्फ याद है। उडीसा के इस कवि की याद में कभी कोई चूक नहीं होती। उनका बीत चुका समय उनकी स्मृति में एकत्र होता रहता है और अक्सर कविता के रूप में बाहर आता है। पड़ोस और परिवेश का नमक जुबान पर इस कदर लगा हुआ है कि घर नहीं छोड़ते। कहते हैं-“गांव से बाहर जाने का मतलब अपने समय से भी बाहर कदम रखना है। ” अपने समय की कद्र करते इस कवि के यहां कविता समाज की चौखट पर एक दरवाजा है। बाहर के लोग भी इसी दरवाजे के सहारे हलधर नाग की दुनिया में प्रवेश कर सकते हैं और यह दरवाजा कभी बंद नहीं होता। बातचीत वह अपनी प्रिय कविता पांच अमरूत (पांच अमृत)सुना कर शुरु करते हैं। कविता का हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह है-” अमृत झरे/ सात समंदरों से /आकाश के चांद से/मां की छाती से/महत्त नीति की प्रवाह से/ कवि की कलम से।”
मूल रूप से कोस्ली भाषा में (उड़ीसा की एक लोक भाषा) कविताएं लिखने वाले हलधर नाग 1990 से लेखन कर रहे हैं। उन्होंने अपनी पहली कविता ‘धोडो बारगाछ’ लिखी थी। इसका मतलब होता है बरगद का पुराना पेड़। इस कविता को एक स्थानीय पत्रिका में जगह मिली। इसके बाद और भी कई कविताएं लिखीं। अनूठे अंदाज में लोकगीत गाने लगे। लोकगीतों के गायन का तरीका और कविताएं लोगों को इतनी पसंद आई कि वे उन्हें लोककवि के नाम से बुलाने लगे। हालांकि हलधर अपनी कविताओं पर विस्तार से बोलने से बचते हैं। इतना भर कहते हैं-“अंतत; कविता ही हमें बचा पाएगी, क्योंकि कविता समाज के लोगों तक संदेश पहुंचाने का सबसे अच्छा तरीका है। कविता को रोको- टोको नहीं। उसे घर घर पहुंचाओ। समाज का सच और झूठ जान लेने दो। ”


नाग जब बोलते हैं तो भीतर के कंकड़-पत्थर घुलने लगते हैं-“जन्म ओडिशा के बाडगढ़ जिले के घेंस गांव में हुआ । हमलोग गरीब थे।10 साल की उम्र में पिता को खोया। तीसरी क्लास में स्कूल छोड़ा। । एक मिठाई की दुकान में नौकरी की, तब तक जिंदगी की सारी मिठास घुल चुकी थी। एक प्राथमिक विद्यालय में रसोईये की नौकरी की। बैंक से 1,000 रुपए लोन लेकर स्कूल के बगल में एक छोटी सी दुकान खोली। उस दुकान में पहली कविता का जन्म हुआ ।”
उस पहली कविता ‘धोडो बारगाछ’ की उम्र 26 साल से ज्यादा हो गई है। बूढे बरगद के नीचे 20 महाकाव्य और 500 से ज्यादा कविताओं की जड़ें फैल चुकी हैं। रचना का ये समंदर नाग की यादों में बहता रहता है। इस कवि ने कभी लिखा नहीं। जो सोचा, दिमाग में बस गया और फिर जब जरूरत हुई कविता बनकर लोगों के पास पहुंच गई। कभी-कभी तो मंच पर भी वे कविता बना लेते हैं। तीसरी कक्षा के बाद नाग कभी स्कूल नहीं गए। लेकिन उनकी कविता पर साहित्य के पांच छात्र पीएचडी कर चुके हैं। तीन लगे हुए हैं। संबलपुर यूनिवर्सिटी की किताबों में उन्हें शरीक किया जा रहा हैं। अब तक 300 से ज्यादा संस्थानों का सम्मान उन्हें मिल चुका है। भारत सरकार के पद्मश्री सम्मान तो हाल की ही बात है। लेकिन सबसे बड़ा सम्मान वह इलाके के लोगों का प्यार ही मानते हैं। हमेशा नंगे पैर रहने वाला यह कवि अपनी धरती, अपनी माटी और अपने लोगों से हमेशा जुड़ा रहना चाहता है-”सब बहुत प्यार करते हैं मुझे।अच्छा लगता है। परिवार भी यहीं है।” नाग के लिए परिवार का मतलब सिर्फ पत्नी मालती और बेटी नंदिनी नहीं है। इलाके के वे हजारों लोग भी नाग के परिवार के हिस्सा हैं, जिनके सुख -दुख में वे शरीक होते हैं, अपनी कविताएं साझा करते हैं । परिवार का मतलब नाग के लिए वह परिवेश और लोक भी हैं, जहां से वे अपनी कविता में रस, सुगन्ध और स्पर्श लेकर आते हैं। तभी तो उनकी कविताओं पर उनका जमाना और उनके लोग दीवाने हैं-“हमलोग ये आरोप लगाकर चुप हो जाते हैं कि नई पीढ़ी का साहित्य से कोई लेना देना नहीं। हमें अपने घर की भी तालाशी लेनी होगी। क्या लिखते हैं हम,बात इस पर भी हो। ” नाग उन लेखकों और कवियों से दुखी हैं, जो अपनी रचनाओं की चर्चा के लिए अश्लीलता या किसी विवाद का सहारा लेते हैं-“साहित्यकार को पहले साधक होना चाहिए। रचनाओं की चर्चा ही सब कुछ नहीं होती। बात दिलों में उतरनी चाहिए।” उनके साथ बहुत अधिक वक्त बिताने वाले सुशांत मिश्रा कहते हैं-हलधर की कविता हमारी विफलताओं को समझती हैं, इसलिए सफल हैं।
संबलपुरी-कोस्ली भाषा को, संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल कराने में नाग का संघर्ष किसी से छिपा नहीं है। वह सफलता को लेकर जरा भी आशंकित नहीं-“उम्मीद है बहुत जल्द हो जाएगा।।” नाग फिल्में नहीं देखते, लेकिन एक हिंदी फीचर फिल्म “कौन कितने पानी में” के लिए इन्होंने एक कोस्ली डांस का कंपोजिशन जरूर तैयार किया है। इन दिनों 65 वर्ष का यह कवि उड़ीसा के ख्यात कवि गंगाधर मेहर पर एक महाकाव्य लिख रहा है। कुछ लोग मेहर की तुलना नाग से भी करते हैं। इस तुलना को नाग पूरी सादगी के साथ खारिज करते हैं-“गंगाधर मेहर बहुत बड़े कवि थे। मैं उनके सामने बहुत छोटा हूं।”
नाग खुद को छोटा जरूर समझते हों, लेकिन वे इलाके में लाखों लोगों के अपने हैं। करीब करीब उस धूप की तरह, जो बाहर बगीचे में, खेतों में, सड़कों पर लोगों, घासों, फूल पत्तियों और जानवरों करीब-करीब हर चीजों को छूते हुए निकलती है और अपने कमरे में बैठे हुए भी, हमें लगता है कि धूप ने हमसे बात की है। या फिर अंधेरी रात में देर तक जलनेवाली मोमबत्ती की तरह वह लोगों के बीच मौजूद रहते हैं । यहीं से बनता है उनका लोक, उनका परिवेश और यहीं पर जन्म लेती है नाग की कविता।

देव प्रकाश चौधरी

Posted Date:

October 22, 2017

7:17 pm Tags: , , , , , , ,
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