के. विक्रम राव
के विक्रम राव जाने माने पत्रकार हैं, पत्रकारों के अधिकारों के लिए दशकों से संघर्ष करते रहे हैं। भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संगठन (आईएफडब्लूजे) के संस्थापकों में रहे हैं। अस्सी पार कर चुके विक्रमराव जी लगातार लिख रहे हैं, तमाम जरूरी सवालों पर, मुद्दों पर उनकी टिप्पणियां मायने रखती हैं। वह रोजाना लिखते हैं, अपने ट्विटर हैंडल पर लिखते हैं, सोशल मीडिया पर लिखते हैं, कभी कभार टीवी बहसों में भी अपनी गंभीर टिप्पणियों के साथ शामिल होते हैं। उनके पास जो जानकारियां हैं, वह किसी दस्तावेज़ से कम नहीं हैं। उनका यह आलेख सात रंग न्यूज़ के पाठकों के लिए…
यह एक गंभीर सबक है हर जिम्मेदार पत्रकार के लिए। एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक के पूर्व वरिष्ठ संपादक की गफलत, नासमझी और असावधानी का अंजाम है कि राजस्थान कांग्रेस में द्वंद युद्ध ढीला पड़ गया। भाजपा को हानि हो गई। कारण ? इस पार्टी ने बुनियादी व्यावहारिक नियम की अनदेखी कर दी कि अखबार में जो छपा वह शत प्रतिशत सच नहीं होता। इस तथ्य की अनुभूति अब भाजपा को पूर्णतया हो जानी चाहिए।
तो क्या मामला है ? राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट में टकराव हो रहा है। इसका भाजपा को लाभ होता। सोनिया गांधी और पूरे कांग्रेस के सामने उठापटक की समस्या उभर रही थी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बांसवाड़ा (राजस्थान) दौरे पर (1 नवंबर 2022) कांग्रेस के इस गुटबाजी का उल्लेख भी सार्वजनिक तौर पर किया था। मगर अशोक सिंह लक्ष्मण सिंह गहलोत अपने पिताजी की भांति स्वयं भी जादूगर हैं। हर संकट को माकूल बना लेने की विलक्षणता रखते हैं। पर घटनाक्रम तेजी से करवट बदला गत 10 अगस्त से। तब लोकसभा में अविश्वास के प्रस्ताव पर बहस का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि किस भांति 5 मार्च 1966 को इंदिरा गांधी ने मिजोरम में भारतीय नागरिकों पर बमबारी कराई थी। यहां तक बात ठीक थी। मोदी द्वारा इस त्रासदपूर्ण घटना के वर्णन से लोकसभा में विपक्ष, खासकर कांग्रेस, की दशा दयनीय हो गई थी। संदर्भ मणिपुर का था। यूं प्रतिक्रिया राष्ट्रव्यापी हुई थी। सवाल उठा कि क्या यह मानवीय था कि भारतीय वायुसेना अपने ही नागरिकों पर आईजॉल में बमबारी करे ? प्रधानमंत्री ने सदन में कहा था : “नार्थईस्ट हमारे जिगर का टुकड़ा है।” इंदिरा गांधी ने मिजोरम के हिंदुस्तानी नागरिकों पर वायुसेना द्वारा 5 मार्च 1966 को बमबारी करवाई थी। कांग्रेस शासन द्वारा 1947 से की गई लंबी उपेक्षा के कारण बागी मिजो आजादी मांग रहे थे। मोदी ने सवाल किया : “क्या मिजोरम के लोग देश के नागरिक नहीं थे ?”
उस दौर में मेजर जनरल रुस्तम जाल काबराजी 61 माउंटेन ब्रिगेड का थलसेना का कमांड अगरतला में कर रहे थे। उनकी सहायता हेतु भारतीय वायुसेना के 29 स्क्वेड्रन और 14 स्क्वेड्रन भेजे गए थे। बागडोगरा वायुयान स्थल से तूफानी (फ्रांसीसी डसाल्ट आरागन) जहाज तैनात किए गए थे। विवाद इस पर उठा कि क्या भारतीय वायुसेना के बमवर्षकों में राजेश पायलट शामिल थे ? वे भारतीय वायुसेना के अफसर थे। इस बात को इंडियन एक्स्प्रेस के संपादक शेखर गुप्ता ने 2011 में लिखा था। इसी को 2020 में उन्होंने दुहराया था। करीब 35 वर्षों बाद। इस विषय पर भाजपा नेता अमित मालवीय ने लिखा कि राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी भारतीय वायुसेना के उन विमानों को उड़ा रहे थे। गम की बात इस प्रकरण में यह है कि स्वर्गीय राजेश पायलट राष्ट्रभक्त सैनिक अफसर थे। उनका राजनीति में प्रवेश और काबीना मंत्री बनना भी एक बड़ा दिलचस्प वाकया है। दिसंबर 1971 की बात है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने एक युवा पायलट आया जो तभी पूर्वी पाकिस्तान की जमीन पर बम बरसा कर लौटा था। प्रधानमंत्री से बोला : “पीएम मैडम मेरा एक ड्रीम है। मैं राजनीति में आना चाहता हूं।” जहां अन्य पायलट केवल सैल्यूट करके आगे बढ़ रहे थे। वहीं उस पायलट ने प्रधानमंत्री से अपना सपना साझा किया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जवाब दिया : “गुड… देखते हैं।” युवा पायलट का नाम था राजेश्वर प्रसाद विधुड़ी, यानी राजेश पायलट, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वैदपुरा गांव के रहने वाले थे।
वर्ष 1979 की एक सुबह राजेश पायलट को दिल्ली से एक फोन कॉल आया। तब वह जैसलमेर में तैनात थे। दूसरी तरफ स्वयं इंदिरा गांधी थीं, जो उस वक्त PM नहीं थीं। इंदिरा गांधी ने उन्हें कहा : “समय आ गया है, अब तुम्हारा ड्रीम पूरा होने वाला है। तुम्हें राजनीति में आना है। तुम्हें लोकसभा का चुनाव (1980) लड़ना है। वायुसेना से इस्तीफा दे दो।” राजेश पायलट इस्तीफा देकर अगली सुबह दिल्ली पहुंच गए। उन्होंने वायुसेना से 1979 में इस्तीफा दे दिया था। लोकसभा चुनाव होने में करीब छह महीने शेष थे। इंदिरा ने उन्हें उनकी जन्मभूमि पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बजाय भरतपुर (राजस्थान) से लोकसभा का टिकट दिया। यह नामकरण भी इंदिरा गांधी ने ही किया। उन्होंने राजेश्वर प्रसाद विधुड़ी को कहा कि “तुम अब पायलट हो। अब यही तुम्हारी पहचान है। बहुत लंबा नाम है राजेश्वर प्रसाद विधुड़ी। जनता के बीच जल्द स्थापित होने के लिए लोकप्रिय नाम चाहिए। तुम्हारा नाम होगा राजेश पायलट।”
इस संपूर्ण पटककथा का क्लाइमैक्स (चरमोत्कर्ष) हुआ जब राजेश पायलट के पुत्र और गहलोत के प्रतिस्पर्धी सचिन पायलट ने कल एक दस्तावेज सार्वजनिक कर दिया। (चित्र देखें) यह राजेश पायलट का शासकीय नियुक्ति पत्र है जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने 29 अक्टूबर 1966 को हस्ताक्षर किए थे। अर्थात मिजोरम पर बमबारी के समय (5 मार्च 1966) राजेश पायलट वायु सेना के आस-पास भी नहीं थे। तो कैसे मिजोरम में रहते ? तारीखें और तथ्य झूठ नहीं बोलते। भाजपा को जवाब टटोलना होगा।
Posted Date:
August 20, 2023
9:06 pm
Tags:
के विक्रम राव,
राजस्थान,
राजेश पायलट,
सचिन पायलट,
इंदिरा गांधी