2025 की सियासत: दिल्ली और बिहार के चुनाव पर नज़र

2024 की सियासत लोकसभा चुनाव के साथ पांच राज्यों के चुनाव की अटकलों और नतीजों के बीच डूबती उतराती रही… केन्द्र में मोदी सरकार की तीसरी पारी और इंडिया गठबंधन की एकता के साथ साथ राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा खबरों में रहे.. विपक्ष मज़बूत ज़रूर हुआ लेकिन मोदी को सत्ता से बेदखल करने में नाकाम रहा.. लेकिन सबकी नज़र 2025 की सियासत पर है। खासकर दिल्ली और बिहार के चुनाव इस साल होने हैं और खबरिया चैनलों से लेकर मीडिया के तमाम मंचों पर नेताओं के बयानों से लेकर इन्हीं राज्यों की सियासत के इर्द गिर्द घूमती नज़र आने वाली है…  कुबूल अहमद का यह आलेख इस साल की सियासत पर नज़र डालता है..

साल 2024 देश के लोकसभा और आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों का इतिहास अपने साथ लेकर बीत गया. 2024 का साल लोकसभा चुनाव में बैकफुट में जाने के बाद बीजेपी ने हरियाणा और महाराष्ट्र से कमबैक किया है, लेकिन 2025 का साल दिल्ली के सियासी तपिश के साथ दस्तक दिया है. 2025 का सियासी आगाज देश के दिल कहे जाने वाले दिल्ली के विधानसभा चुनाव से शुरू हो रहा है और समाप्त बिहार विधानसभा चुनाव के साथ होगा.

दिल्ली चुनाव से साल 2025 की दस्तक

2025 का आगाज दिल्ली विधानसभा चुनाव के साथ हो रहा है. दिल्ली में सियासी तपिश गर्म है. आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी के साथ-साथ बसपा और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के लिए भी काफी अहम माना जा रहा है. आम आदमी पार्टी चौथी बार सत्ता पर काबिज होने की जुगत में है तो बीजेपी दिल्ली में अपने 27 साल के सियासी वनवास को खत्म करने की कवायद में जुटी है. कांग्रेस दिल्ली में अपने खोए हुए सियासी जनाधार को वापस पाने के लिए बेताब है, जिसके चलते दिल्ली के चुनाव अहमियत को समझा जा सकता है.

सियासी वनवास झेल रही BJP

साल 1993 में सिर्फ एक बार ही दिल्ली को फतह कर सकी है, उसके बाद से सियासी वनवास झेल रही है. 1998 में बीजेपी के दिल्ली की हाथों सत्ता गई तो फिर वापस नहीं कर सकी. 15 साल तक शीला दीक्षित के अगुवाई में कांग्रेस के सामने खड़ी नहीं हो सकी. इसके बाद 11 साल से आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के आगे पस्त नजर आई है. ऐसे में बीजेपी 2025 में होने वाले विधानसभा में हरहाल में दिल्ली में कमल खिलाना चाहती है, जिसके लिए उसने पूरी ताकत झोंक रखी है. लेकिन अरविंद केजरीवाल भी कम नहीं है. केजरीवाल एक के बाद एक लोकलुभाने वादों का ऐलान करते जा रहे हैं तो बीजेपी भी अपने दांव चलना शुरू कर दिया है. ऐसे में देखना है कि दिल्ली की सियासी जंग कौन फतह करता है.

2025 की विदाई बिहार चुनाव के साथ

दिल्ली में 2025 के साल के शुरुआत के साथ हो रहे हैं तो बिहार का चुनाव साल के आखिर में होना है. जेडीयू के संस्थापक नीतीश कुमार बिहार में एनडीए का हिस्सा हैं और एनडीए के सभी साथी मिलकर ही चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. बीजेपी के लिए बिहार की राह अभी भी आसान नहीं, जिसके चलते नीतीश की बैसाखी के सहारे किस्मत आजमा रही है. बिहार में एनडीए के तहत जेडीयू, बीजेपी के साथ चिराग पासवान की एलजेपी (आर), जीतनराम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलपी शामिल है.

वहीं, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी लालू यादव के मार्गदर्शन में अपने बल पर सरकार बनाने की बिसात बिछ रहे हैं. आरजेडी ने कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी के साथ गठबंधन कर रखा है तो ममता बनर्जी और अखिलेश यादव का भी समर्थन हासिल है. चुनावी लिहाज से कांग्रेस के पास दांव पर ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन आरजेडी के बैसाखी के दम पर अपनी नैया पार लगाने की कवायद में है. इसके अलावा बिहार में तीसरे प्लेयर के तौर पर चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी इस बार पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतर रही है तो मुस्लिम वोटों के सहारे किंगमेकर बनने का सपना संजोय असदुद्दीन ओवैसी भी किस्मत आजमाएंगे.

बिहार का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के लिए काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि पिछले तीन दशक से सत्ता की धुरी बने हुए हैं. वो जब चाहते हैं आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना लेते हैं और जब मर्जी होती है तो बीजेपी के साथ दोस्ती कर सत्ता पर काबिज हो जाते हैं. बीजेपी भी बिहार के जातीय समीकरण के चलते नीतीश कुमार को साथ लेकर चलना चल रही है, लेकिन उसका सपना महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी अपना मुख्यमंत्री बनाने की है. इस बात को नीतीश कुमार और उनकी पार्टी समझ रही है, जिसके चलते जेडीयू ने सियासी दांव चलना भी शुरू कर दिया है.

सबसे अमीर कॉरपोरेशन के चुनाव

2025 में ही मुंबई की सिविक बॉडी बीएमसी के भी चुनाव होने हैं. बीएमसी को एशिया की सबसे अमीर कॉरपोरेशन कहा जाता है. इसमें महायुति और महाविकास अघाड़ी की जंग होगी. हालांकि यहां मुकाबला शिवसेना (उद्धव) और एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना के बीच है, लेकिन बीजेपी इस बार अहम भूमिका में दिख सकती है. महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद बीजेपी की नजर उद्धव ठाकरे के दबदबे वाली बीएसपी पर अपना परचम फहराने की है. विधानसभा चुनाव हारने के बाद उद्धव ठाकरे के लिए बीएमसी पर अपना दबदबा बनाए की है, लेकिन शिवसेना के दो टुकड़ों में बंट जाने के बाद चुनौती बढ़ गई है. बीएमसी के साथ महाराष्ट्र में शहरी निकाय चुनाव भी होने हैं, जिसे लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. ऐसे में देखना है कि निकाय चुनाव में किसका पलड़ा भारी रहता है?

(टीवी9 भारतवर्ष से साभार)

Posted Date:

January 1, 2025

8:47 pm Tags: , , , , ,

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