आज के दौर में आखिर हबीब तनवीर जैसे रंगकर्मी क्यों नहीं हो सकते? दुष्यंत कुमार की चंद लाइनें क्यों सियासी नेताओं के भाषणों का हिस्सा भर बन कर रह जाती हैं? क्यों राही मासूम रज़ा सिर्फ बी आर चोपड़ा के टीवी महाभारत के संवादों के लिए ही कभी कभार याद कर लिए जाते हैं? क्यों इन शख्सियतों को याद करने वाले चंद ही लोग बचे हैं? दरअसल आज रंगमंच और साहित्य जिस दौर में है, या कहिए कि मीडिया और अभिव्यक्ति के तमाम माध्यम जिन दबावों में काम करते हैं, वहां हबीब तनवीर, दुष्यंत कुमार और राही मासूम रज़ा (जिनका जन्मदिन एक ही तारीख यानी 1 सितंबर को आता है) के लिए जगह तलाश पाना आसान काम नहीं है।
Posted Date:September 1, 2018
11:24 pm