दिल्ली के मयूर विहार फेज 1 के आनंद लोक में उनका घर है पूर्वाशा। अब वहां उनके न होने का सन्नाटा पसरा है। बीमार वो लंबे समय से थीं लेकिन आज यानी 25 जनवरी की सुबह उन्होंने हमेशा के लिए विदा ले लिया। अगले महीने 18 तारीख को कृष्णा सोबती 94 की होने वाली थीं, लेकिन उन्हें इस बात से नफ़रत थी कि कोई उन्हें बूढ़ा या बुज़ुर्ग कहे। आखिरी समय तक वो लिखती रहीं, देश के बारे में सोचती रहीं, सियासत के खेल से परेशान होती रहीं और ताउम्र देश के बंटवारे का दर्द लिए उन्होंने जाते जाते वह उपन्यास भी लिख ही दिया – गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिन्दुस्तान।
Posted Date:January 25, 2019
5:41 pm