त्रिलोचन जी को गए भले ही नौ साल गुज़र गए हों लेकिन आज भी यही लगता है कि वो हमारे बीच ही हैं। उनके साथ जिन लोगों ने वक्त गुज़ारा, जिन लोगों ने उन्हें करीब से देखा और महसूस किया, उनके लिए वो हमेशा रहेंगे। अपनी कविताओं के साथ साथ अपने बेहद सरल और आत्मीय व्यक्तित्व की वजह से। ये हमारे साहित्य जगत का दुर्भाग्य है कि जो लोग अपनी मार्केटिंग नहीं कर पाते, जो लोग सत्ता के करीब नहीं रह पाते और जिनके लेखन में सही अर्थों में साहित्य, भाषा और समाज की वाजिब चिंता झलकती हो, उन्हें हाशिए पर धकेल दिया जाता है।
Posted Date:December 9, 2016
3:02 pm