मीडिया से लगभग गायब हो चुके साहित्य और साहित्यकारों को अगर कोई हिन्दी अखबार मंच दे और आज के दौर में पत्रकारिता की नई परिभाषा गढ़े तो बेशक इसके लिए वह बधाई का पात्र है। उत्तर भारत के सबसे विश्वसनीय अखबार ‘अमर उजाला’ ने ऐसी ही पहल की है। साहित्यकारों से संवाद तो गाहे बगाहे होते रहे हैं, उनके इक्का-दुक्का इंटरव्यू भी छपते रहे हैं लेकिन समकालीन साहित्यिक-राजनीतिक परिवेश में उनसे खुलकर बहस करने, उनके नज़रिये को सुनने, उनके सुख-दुख, अनुभव और लेखन संसार को साझा करने की ऐसी कोशिश नहीं होती। ‘अमर उजाला’ ने ऐसी ही एक ऋंखला शुरू की है – बैठक।
Posted Date:October 2, 2017
5:17 pm