उन शख्सियतों की यादें जिन्होंने साहित्य, कला, संस्कृति के क्षेत्र में अहम मुकाम हासिल किए…


यादें
गोपाल दास ‘नीरज’ को सुनना और महसूस करना…
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July 19, 2020

19 जुलाई 2018 को जब गोपाल दास ‘नीरज’ ने करीब 94 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा तो मानो एक युग का अंत हो गया...लेकिन उनकी रचनाएं अमर हैं.. आज भी लोगों की ज़बान पर गूंजती हुई...उनके आखिरी दिनों में उन्हें करीब से देखने, समझने और महसूस करने का मुझे अलीगढ़ के उनके घर में मौका मिला था। एक पूरा दिन उनके साथ गुज़ारना, उनके जीवन के तमाम पहलुओं के बारे में अंतरंग बातें... आज के दौर की कविता से लेकर गीत

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अपने ज़माने की मशहूर अदाकारा साधना से मुलाकात…
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July 7, 2020

एक दिन आकस्मिक किसी का फोन आया कि एक बजे दोपहर को ओबेरॉय होटल में आपको साधना और उनके पति आर.के.नैयर ने लंच पर बुलाया है। मैंने कहा कि फ़िल्म मेरी बीट नहीं है, मुझे क्यों बुलाया गया है। उस व्यक्ति का जवाब था, यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे आपका फोन नंबर और नाम दिया गया है। उन दिनों मैं 'दिनमान' में काम करता था। अपने संपादक रघुवीर सहाय के कक्ष में जाकर हक़ीक़ बयां की। उन्होंने कहा हो आईये।

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सबके अपने, सबके प्यारे चितरंजन भाई को सलाम…
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June 27, 2020

वो जहां जाते थे, जिससे मिलते थे, सबके बहुत अपने हो जाते थे... उनकी सादगी और संघर्ष की कहानियां तमाम हैं... हर साथी की अपनी अपनी यादें हैं, अपने अपने अनुभव हैं... सबके लिए वो चितरंजन भाई थे.. हमारे लिए भी... गमछा गले में लपेटे या कभी कभार पगड़ी की तरह बांध लेते, पान खाते, गोल मुंहवाले बहुत ही प्यारे से लेकिन सबके संघर्ष के साथी... खुद की तकलीफों की कभी परवाह नहीं की... बातें करने से ज्यादा सुनने में भ

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‘गिरीश कर्नाड सिर्फ नाटककार नहीं एक संस्था थे’
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June 10, 2020

पिछले साल आज के ही दिन प्रख्यात नाटककार गिरीश कर्नाड का निधन हुआ था। निर्भीक संस्कृतिकर्मी, अद्भुत रचनाकार और बैखौफ योद्धा गिरीश कर्नाड को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर सलाम। वरिष्ठ नाटककार, सामाजिक कार्यकर्ता, एक्टर और डायरेक्टर गिरीश कर्नाड से मेरा व्यक्तिगत रिश्ता था। गिरीश कर्नाड के नाटकों को पढ़ते, देखते और खेलते हुए ही मेरा थियेटर शुरू हुआ।

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नंदलाल नूरपुरी: जिनके रचे गीत लोकगीत हो गए
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June 1, 2020

पंजाब के जाने माने तरक्कीपसंद कवि और गीतकार नंदलाल नूरपुरी के बारे में कम ही लोग जानते हैं। लेकिन उनके गीतों में मानो पंजाब का दिल धड़कता है, वहां की सोंधी खुशबू की सुगंध बसती है... एक जून 1906 को नूरपुरी साहब की जन्मतिथि है... उनके बारे में, उनके गीतों के बारे में वरिष्ठ पत्रकार सुधीर राघव का आलेख ' 7 रंग 'के पाठकों के लिए....

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शरद जोशी : लिखना जिनके लिए जीने की तरकीब थी
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May 21, 2020

जाने माने व्यंग्यकार, पटकथा लेखक और कवि रहे शरद जोशी को मौजूदा दौर के पत्रकार और नई पीढ़ी के लोग कम ही जानते हैं… लेकिन परसाई जी के बाद तमाम व्यंग्यकारों की फेहरिस्त अगर बनाई जाए तो शरद जोशी का नाम सबसे ऊपर आता है। दरअसल शरद जी में वो कला थी कि कैसे सामयिक विषयों और सत्ता की विसंगतियों के खिलाफ दिलचस्प तरीके से व्यंग्य किया जाए, भाषा की रवानगी के साथ ही आंचलिकता को बरकरार रखते हुए मुद

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सामाजिक बदलाव की उम्मीदों से भरे थे शमशेर
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May 12, 2020

12 मई 1993 को जब शमशेर बहादुर सिंह के निधन की खबर अहमदाबाद से आई थी, तब अचानक उनके साथ गुज़रे वो सारे पल हमारे दिलो दिमाग में एक सुखद अतीत की तरह उमड़ने घुमड़ने लगे थे। लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में पत्रकार अजय सिंह और शोभा सिंह के घर शमशेर जी अक्सर आते और ठहरते रहे। वामपंथी आंदोलनों का दौर था, राजनीतिक-सांस्कृतिक गतिविधियां तेज़ थीं और शमशेर जी जैसे तमाम प्रगतिशील रचनाकार हमारी ताकत हुआ कर

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आज पुरानी राहों से, कोई मुझे आवाज़ न दे…
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May 5, 2020

इक्कीसवीं सदी शुरु हो चुकी थी और बीसवीं सदी ने जाते जाते बॉलीवुड संगीत की दुनिया को एक नई शक्ल दे दी थी। इस नए दौर और संगीत के नए माहौल में भला नौशाद के संगीत को उतनी तवज्जो कैसे मिल सकती थी जितनी इस दौर के धूम धड़ाम वाले संगीतकारों को मिलती है। 5 मई 2006 को जब संगीतकार नौशाद ने दुनिया को अलविदा कहा, तब भी उनके भीतर यही दर्द छलकता रहा - 'मुझे आज भी ऐसा लगता है कि अभी तक न मेरी संगीत की तालीम पूर

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सामाजिक चेतना से लैस एक अभिनेता का जाना
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April 29, 2020

इरफान खान का जाना एक सदमे की तरह है। महज 53 साल की उम्र में इस कलाकार ने अपने संघर्षों और खास अंदाज़ की वजह से अपनी जगह बनाई। बॉलीवुड के साथ साथ करोड़ों दर्शकों के दिलों में अपनी छाप छोड़ी। बिंदास अंदाज़ में ज़िंदगी को लेने वाले और बेहद संवेदनशील तरीके से समाज को देखने वाले इस अभिनेता ने अपनी खास शैली बनाई...चाहे वह अपनी बेहद गंभीर और गहरी आंखों से बहुत कुछ कह देने का अंदाज़ हो या फिर डॉ

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‘थिएटर की अपनी स्वतंत्र भाषा होती है’
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April 24, 2020

उषा गांगुली का गुज़र जाना रंगमंच के लिए आखिर क्यों इतना बड़ा शून्य पैदा करता है.. दरअसल उषा जी उन सुलझी हुई रंगकर्मियों में रही थीं जिन्होंने रंगकर्म को सामयिक संदर्भों में जोड़ने के साथ ही समाज और सियासत को भी बेहद बारीकी से देखा, समझा। दिसंबर 2018 में नवभारत टाइम्स ने उषा गांगुली का यह इंटरव्यू छापा था... दिलीप कुमार लाल ने उनसे लंबी बातचीत की थी जिसमें उन्होंने तमाम मुद्दों पर कई अहम

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