ललित कला अकादमी की भ्रष्ट छवि बदल देंगे – कृष्णा सेट्टि

हमेशा से विवादों में रही ललित कला अकादमी में आर्थिक घोटालों से लेकर पक्षपात और गुटबाजी की जांच अक्सर चलती रहती है। केन्द्र में सरकार बदलने के साथ ही जो प्रशासनिक फेरबदल होते रहे हैं, ये जांच उसी का एक हिस्सा रही है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के साथ ही तमाम अकादमियों और सांस्कृतिक केन्द्रों के कर्ता धर्ता बदल दिए गए और नए सिरे से इन जगहों का कायाकल्प करने के दावे फिर से होने लगे। इस बार ललित कला अकादमी के प्रशासक कोई नौकरशाह नहीं हैं, एक कलाकार हैं। मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले सी एस कृष्णा सेट्टि को दिल्ली बुलाकर यह बड़ी ज़िम्मेदारी दे तो दी गई है लेकिन फिलहाल अकादमी के पुराने लोगों को साथ लेकर चलना उनके लिए थोड़ा मुश्किल हो रहा है। सेट्टि चाहते हैं कि कम से कम अब ललित कला अकादमी भ्रष्टाचार और गुटबाजी से मुक्त हो जाए, कलाकारों को उचित मौका मिले, कला को दूर दराज के इलाकों में भी ले जाया जाए और अकादमी अपने मूल मकसद से न भटके। ललित कला अकादमी के प्रशासक सी एस कृष्णा सेट्टि से बातचीत –

सवाल – आपके आने के बाद से अकादमी के कामकाज में क्या फर्क आया है?

जवाब – मैंने ये महसूस किया कि अबतक यहां नौकरशाही हावी थी, 2006 के बाद से कोई उल्लेखनीय काम नहीं हुआ था, कला त्रिनाले और कला मेला जैसे कार्यक्रमों को यहां का गौरव माना जाता था, वो अब नहीं होते, साथ ही आंतरिक तौर पर यहां भ्रष्टाचार और गुटबाजी का बोलबाला है। मैंने ये तय किया कि अब यहां ये सब नहीं होगा। मुझे इस अकादमी को पूरी तरह कलाकारों के लिए बनाना है और अशोक वाजपेयी के ज़माने से यहां जिस तरह की संस्कृति को बढ़ावा दिया गया है, उसे खत्म करना है। मैंने पिछले नौ महीनों में इसी दिशा में काम किया है और लगातार कलाकारों के लिए कार्यक्रम शुरू किए हैं।

सवाल – आपको काम करने में क्या मुश्किलें आ रही हैं?

जवाब – कोई भी व्यवस्था जो बरसों से चली आ रही हो, उसे बदलने में वक्त तो लगता ही है। जाहिर है यहां पहले से जो लोग काम कर रहे हैं, वो उसी व्यवस्था के हिस्से हैं, धीरे धीरे उन्हें ये बताने की कोशिश हो रही है कि हमें अपनी ज़िम्मेदारियां समझनी चाहिए। पिछले कार्यकाल में जिन जिन गड़बड़ियों की शिकायतें मिली हैं, उनकी जांच शुरू हो गई है। जांच होने से भी कई चीजें सामने आएंगी। जिन लोगों को हमारे काम करने के तरीके से समस्या होगी, वो खुद ही चले जाएंगे।

सवाल – बेंगलुरु से यहां आकर आपको उत्तर भारत के लोगों के साथ तालमेल बिठाने और इस अकादमी को नए सिरे से आकार देने में कैसा लग रहा है?

जवाब – देखिए, किसी भी नए काम में चुनौतियां तो हैं ही। लेकिन मैं कला के प्रति अपने समर्पण के कारण ही एक रूपए के सांकेतिक वेतन पर काम कर रहा हूं। सुविधाओं के नाम पर एक सरकारी गाड़ी है जो किसी आधिकारिक काम से आने जाने के लिए ज़रूरी है। रहने के लिए मैंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के गेस्ट हाउस में एक कमरा ले रखा है। काम करने आया हूं और सिर्फ काम ही करता हूं। मुझे खुशी है कि अब धीरे धीरे लोग ये समझ रहे हैं, मेरा साथ दे रहे हैं। कई पुराने लोग मिलने आ रहे हैं। जतिन दास, राम सुतार जैसे वरिष्ठ कलाकार आकर अपनी बात बता रहे हैं, सुझाव दे रहे हैं। मैंने कला से जुड़ी गतिविधियां बढ़ाई हैं। त्रिनाले और कला मेला फिर से शुरू होने जा रहा है। कला संवाद का नियमित प्रकाशन शुरू करवा दिया गया है। समकालीन कला जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका को और बेहतर बनाने के लिए कला के जानकारों को इससे जोड़ा जा रहा है।

सवाल – गढ़ी में अकादमी के विशाल केन्द्र में भी कुछ बदलाव हो रहे हैं? वहां जिन कलाकारों को काम करने के लिए जगह दी गई थी, उसे लेकर भी काफी विवाद रहा है

जवाब – सही कहा आपने। दिल्ली के ईस्ट ऑफ कैलाश के पास गढ़ी में अपना जो विशाल परिसर है, मैं अक्सर वहां जा रहा हूं। उसे अब आम कलाकारों के लिए खोल दिया गया है। अब वहां हर रविवार को संडे आर्ट बाज़ार शुरू किया जा रहा है जहां एक साथ 200 कलाकार बैठकर अपना काम कर सकेंगे और उनके काम को लोग देख सकेंगे, उनकी कृतियां खरीदी जा सकेंगी। 9 महीनों से यहां गैलरी बंद पड़ी थी, अब खोल दी गई है, वहां नव सिद्धार्थ ग्रुप और दूसरे कलाकारों का शो हुआ। गढ़ी फेस्टिवल हुआ। मेरी कोशिश है कि अकादमी की खोई प्रतिष्ठा वापस लाई जाए, कलाकारों का भरोसा हासिल हो औऱ सबको उचित मौका मिल सके।

सवाल – भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं?

जवाब – अब यहां भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म हो गया है। पहले फर्जी और कागजी संस्थाओं के ज़रिये काम होता था, कला से जिनका कोई वास्ता नहीं होता था, उन्हें फंड देकर काम कराया जाता था। कुर्सियों पर ऐसे लोग थे जिन्हें कला की समझ नहीं थी। मैं कलाकार होने के नाते कलाकारों की संवेदनशीलता को समझ सकता हूं। अब मैंने तय कर लिया है कि यहां सरकारी संस्थाओं और विश्वविद्यालयों के ज़रिये ही काम होगा, इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी।

सवाल – अकादमी क्या कुछ नए केन्द्र खोलने के बारे में भी सोच रही है? क्या कुछ केन्द्रों के कामकाज को दुरूस्त किया जा रहा है?

जवाब – हमारी योजना दो नए क्षेत्रीय केन्द्र खोलने की है। एक बंगलुरू में और दूसरा इंदौर में। चेन्नई के केन्द्र को बेहतर बनाने की ज़रूरत है। साथ ही भुवनेश्वर में भी काफी काम करने की ज़रूरत है। कोलकाता में अकादमी के नए भवन के लिए 5 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं। लखनऊ का अपना केन्द्र अच्छा है। हमें अभी 28 करोड़ का बजट मिलता है जिसमें से आधा तो लोगों के वेतन में खर्च हो जाता है। लेकिन हमारी कोशिश है कि इसे और संतुलित तरीके से खर्च किया जाए और फंड बढ़ाने की कोशिश भी की जाए।

 

 

Posted Date:

August 3, 2017

6:21 pm Tags: , , , ,
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