ममता का रंग आज भी हरा है…

पुस्तक समीक्षा

आर.ज्योति

‘जिसका मन रंगरेज’ देव प्रकाश चौधरी की चौथी किताब है। जितने खूबसूरत अंदाज में यह किताब लिखी गई है, किताब का डिजाइन भी उतना ही शानदार है। सिलसिलेवार तरीके से यह किताब अर्पणा कौर के जीवन, संघर्ष और चित्रकार के रूप में सफलता को बयां करती है। इसे पढ़ते हुए पाठक को महसूस होगा कि वह अर्पणा कौर पर कोई डॉक्यूमेंट्री देख रहा है। किताब के बीच-बीच में देवप्रकाश चौधरी द्वारा लिखी गईं कवितानुमा पंक्तियों ने इसे और भी प्रभावी बना दिया है। जैसे- किताब में लिखी लाइनें- ‘ममता का रंग आज भी हरा है’, आपको कल्पना की अलग ही दुनिया में ले जाती हैं।

किताब में लिखे ‘इनके पास मां है’ शीर्षक में अर्पणा कौर और उनकी मां एवं मशहूर लेखिका अजीत कौर की आपसी समझ को बेहद भावनात्मक शब्दों में पिरोया गया है। इसमें सिर्फ मां-बेटी के संबधों को नहीं लिखा गया है, बल्कि पढ़ते हुए महसूस होगा जैसे मातृत्व को फिर से परिभाषित किया गया है। एक तरफ अर्पणा कौर के बचपन और कला से लगाव को बयां किया गया है, तो दूसरी ओर एक मां के रूप में अजीत कौर के सहयोग और संबल। दोनों चीजें साथ-साथ चलती हैं। इसी तरह अन्य शीर्षक जैसे- ‘प्रेम जैसी विकलता’, ‘बार-बार इतिहास’, ‘दिल्ली से प्यार’ में चित्रकार अर्पणा कौर के जीवन के विभिन्न पहलुओं को छुआ गया है।

किताब के बारे में देवप्रकाश चौधरी कहते हैं कि ‘अर्पणा कौर के यहां रंग का हर संस्करण एक नई सृष्टि रचता रहा है। इस सृष्टि में प्रवेश के लिए यह किताब ‘पासपोर्ट’ है, ऐसा दंभ तो नहीं, हां, लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद आप अर्पणा कौर की कला को आवाज जरूर दे पाएंगे और देखेंगे कि रंग पहले खुद को कैसे रंगता है।’

डिजिटल इंडिया के इस ज़माने में आप इस किताब को फ्लिपकार्ट और एमेज़ोन से ऑनलाइन भी मंगवा सकते हैं।

किताब का नाम- ‘जिसका मन रंगरेज’

(आकारों से पूरे एक संसार में अर्पणा कौर)

लेखक-देव प्रकाश चौधरी

प्रकाशक- अंतरा इन्फोमीडिया, जयपुर

मूल्य- 1200 रूपए

Posted Date:

December 11, 2016

8:03 pm
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