उर्दू अदब की सबसे पुरानी विरासत को बचाने की बड़ी पहल

इलाहाबाद : उर्दू अदब की तमाम अनमोल विरासत आज मुल्क के कई तंजीमो में बिखरी पड़ी है जो बदइन्तज़ामी की वजह से मिटने की कगार पर है| आजादी के पहले उर्दू और हिन्दी अदब की सबसे पुरानी तंजीम हिन्दुस्तानी एकेडमी ने अपनी उर्दू अदब को बचाने के लिए एक बड़ी पहल की है| 90 बरस की हो गई हिन्दुस्तानी एकेडमी में मौजूद उर्दू अदब की 5 हजार से अधिक दुर्लभ ग्रंथों और अभिलेखों को डिजिटल स्वरूप प्रदान किया जायेगा ताकि आने वाली पीढियां भी भारत की विरासत को देख और पढ़ सकें| हिन्दुस्तानी एकेडमी के 89वें स्थापना समारोह के मौके पर यह फैसला लिया गया है|

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भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक बड़ा हिस्सा इस देश का उर्दू और हिन्दी अदब का वह दुर्लभ और प्राचीन साहित्य भी है जिसे आजादी के पहले से इलाहाबाद स्थित इस ऐतिहासिक संस्थान हिन्दुस्तानी एकेडमी ने किसी तरह अपनी लाइब्रेरी और संग्रहालय में बचा कर रखा है| लेकिन समय के इस लम्बे सफर के साथ यह विरासत दरकने लगी है। आजादी के भी कई दशक पहले की उर्दू रचनाओं और पत्रिकाओं की इस सबसे बड़ी लाइब्रेरी में किताबो के पन्ने कमजोर होकर बिखरने और ख़त्म होने लगे जिसे बचाने के लिए अब इस अदबी खजाने को डिजिटल स्वरूप प्रदान किया जाएगा|
हिन्दुस्तानी एकेडमी के कोषाध्यक्ष रविनंदन सिंह इसके लिए जरुरी संसाधनों की व्यवस्था कर लेने की बात भी करते हैं| नई तकनीक का सहयोग लेकर देश की प्रतिष्ठित शिक्षण संस्था आईआईआईटी ने इसे डिजिटल स्वरूप देने का आगाज किया है| आईआईआईटी ने इसे 25 लाख की लागत से डिजिटल स्वरूप में बदलने का फैसला किया है| डिजिटलाइजेशन की इस शुरुआत की नींव रखी गई है एकेडमी के 89 स्थापना समारोह के मौके पर|
इस मौके पर एकेडमी को रंगमंच और मुशायरों के लिए मुक्ताकाशी मंच का तोहफा भी सरकार ने दिया है| हिन्दुस्तानी एकेडमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ हरिमोहन मालवीय इसे देर में सही लेकिन इस विरासत को बचाने का बड़ा कदम बताते हैं|इस मौके पर उर्दू की महफ़िलों और मुशायरोंं के लिए भी हुकूमत ने एक बड़ा तोहफ़ा अदब प्रेमियों को दिया है| लिहाजा उर्दू अदब और मुशायरों की महफ़िल अब यहां ओपन हाल में भी सजेगी|
(दिनेश सिंह की रिपोर्ट)

Posted Date:

February 25, 2016

5:57 pm
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