जब एक कलाकार ने ‘देवदूत’ को ज़मीन पर उतारा…

कला की नई परिभाषा लिख रहे हैं सुरेन्द्र पाल जोशी

 

कला में अपने अनूठे प्रयोगों के लिए मशहूर हो चुके सुरेन्द्र पाल जोशी की नई कृति ‘मैपिंग द स्पेस’ ने इन दिनों कला जगत में धूम मचा रखी है। इसके तहत इस बार उन्होंने करीब एक लाख सेफ्टीपिन्स का इस्तेमाल करेक एक विशालकाय हेलीकॉप्टर बनाया है। सेफ्टीपिन्स के साथ, ग्लास, स्टील, ब्रास पॉलिश और एलईडी लाइट के साथ उनकी ये कृतियां अपना जो असर छोड़ती हैं, वो दर्शकों और कलाप्रेमियों को एक नए एहसास से भर देती हैं।

इसके पहले इसी प्रयोग के तहत उन्होंने करीब 50 हज़ार सेफ्टीपिन्स का इस्तेमाल करके विशाल हेलमेट बनाया था और उसका नाम दिया था ‘म्युजिक ऑफ आवर टाइम’।

सुरेन्द्र की कला में जो गहरी दृष्टि है, वो कहीं न कहीं मानवीय संवेदनाओं से जुड़ती है। उनके केन्द्र में हमेशा आम आदमी, ज़िंदगी की जद्दोजहद, सामाजिक विसंगतियां, प्राकृतिक आपदाएं और जीवन की वो हकीकत होती है जो उनकी कला को जनोन्मुख बना देती है। उनके इन्स्टॉलेशन्स आपको तमाम अहम् जगहों पर देखने को मिल जाएंगे – जयपुर हवाई अड्डे पर, चेन्नई और गोवा के पंचसितारा होटलों में, मुंबई और दिल्ली के अलग अलग इलाकों में, विशाखापत्तनम के समुद्रतट पर खड़े जहाज स्वराज से लेकर कार्डिफ तक। देश के अलग अलग शहरों के अलावा दुनिया के 15 से ज्यादा देशों में अपनी कला प्रदर्शनियों और म्युरल्स का कमाल दिखा चुके सुरेन्द्र जोशी लखनऊ आर्ट कॉलेज से फाइन आर्ट ग्रैजुएट हैं और जयपुर के राजस्थान कला महाविद्यालय में प्रोफेसर भी रहे हैं। जाहिर है सुरेन्द्र को मिले सम्मानों की फेहरिस्त भी लंबी चौड़ी है।

फिलहाल सुरेन्द्र पाल जोशी की नई उपलब्धियों में उनकी परिकल्पना के आधार पर बना उत्तराखंड के देहरादून का अद्भुत आर्ट म्युजियम है। वो खुद इसी प्रदेश के हैं इसलिए यहां की दुर्गम पहाड़ियों के साथ मुश्किल जीवन शैली को बारीकी से समझते हैं। केदारनाथ त्रासदी ने उन्हें भीतर से झकझोर दिया और उनकी नई कृति यानी हेलीकॉप्टर उसी त्रासदी से उपजे हुए एक प्रतीक की तरह है। सुरेन्द्र बताते हैं कि उन्होंने उस त्रासदी के दौरान देखा कि कैसे हेलीकॉप्टर उस वक्त यहां एक देवदूत की तरह नज़र आता था, कैसे आपदा में फंसे लोगों को हेलीकॉप्टर की गड़गड़ाहट सुनते ही जीवन और उम्मीद का एहसास होता था और कैसे इस देवदूत ने तबाही के इस मंज़र में भी तमाम ज़िंदगियां बचाईं। तभी से सुरेन्द्र ने हेलीकॉप्टर पर रिसर्च करना शुरू किया, बैंगलोर गए, लखनऊ गए, एचएएल में इसके बनने की पूरी प्रक्रिया को समझा, अलग अलग साइज़ की असंख्य सेफ्टीपिन्स जुटाई और एक साल की मेहनत के बाद 8 फुट लंबा, साढ़े तीन फुट ऊंचा, 80 किलो का ये विशाल हेलीकॉप्टर बना डाला। उनका हेलीकॉप्टर विलासिता का नहीं, इंसानी जद्दोजहद और श्रम का प्रतीक है। इसमें संगीत और प्रकाश का बेहतरीन और कलात्मक संयोजन भी है।

बेशक सुरेन्द्र का यह काम अपने आप में उनकी दृष्टि और प्रयोग करने की उनकी बेचैनी का नतीजा है। अब भी उनकी नजर में कला का अपना मनोविज्ञान है और कला संग्रहालयों की अपनी परिभाषा है। सबसे अच्छी बात ये कि उनकी कला जनोन्मुख होते हुए भी किसी ‘वाद’ की शिकार नहीं है और न ही सत्ता समीकरणों से उन्हें कभी कोई परहेज़ रहा है। उनकी नज़र में कला सिर्फ कला है और यही उन्हें कलाकारों की गुटबाजी और कला जगत के दांवपेंचों से अलग भी करती है। सुरेन्द्र जोशी को 7 रंग की तरफ से शुभकामनाएं।

 

Posted Date:

August 1, 2017

6:45 pm Tags: , , , , ,
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