सिनेमा की दुनिया संस्कृति, समाज और साहित्य की अनूठी मिसाल है। यहां किस्सागोई भी है, हकीकत भी, अभिनय और कला के तमाम आयाम भी। देश और दुनिया की संस्कृति को आप इसके ज़रिये जितना देख पाते हैं, समसामयिक विषयों से जुड़ी घटनाओं और किरदारों को करीब से देख पाते हैं और साथ ही मनोरंजन और संगीत का अद्भुत जो सिल्वर स्क्रीन पर मिलता है, वो कहीं और मिलना मुश्किल है। बेशक सेलुलाइड का अपना गणित है और तकनीक का अपना संसार, लेकिन दुनिया भर में यह संप्रेषण का सबसे असरदार माध्यम है।


सिल्वर स्क्रीन
तलत महमूद : दर्द भरे दिल की ज़ुबां …                 
7 Rang
February 26, 2024

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सायरा बानो की तबियत बिगड़ी, अस्पताल में भर्ती
7 Rang
September 1, 2021

हिंदी सिनेमा की जानी मानी अदाकारा और दिलीप कुमार साहब की बेगम साहिबा सायरा बानो की तबियत खराब हो गई है। उन्‍हें मुंबई के हिंदुजा अस्‍पताल में भर्ती कराया गया है। जानकारी के अनुसार, 77 साल की सायरा बानो को 3 दिन पहले अस्‍पताल में भर्ती किया गया था। ब्लड प्रेशर की शिकायत के बाद उन्‍हें अस्‍पताल ले जाया गया था।

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सरहदें बाँटती हैं तो इंसानियत जोड़ती है : अब्बास
7 Rang
July 28, 2021

भारतीय जन  नाट्य संघ (इंडियन प्रोग्रेसिव थिएटर एसोसिएशन) यानी इप्टा ने बहुत ही संज़ीदगी के साथ जाने माने लेखक, पत्रकार, और फिल्मकार ख्वाज़ा अहमद अब्बास को याद किया... इसी कड़ी में अब्बास की फिल्मों और खासकर उनकी फिल्म हिना को केन्द्र में रखकर उनकी रचनात्मक दृष्टि पर चर्चा हुई... इसकी रिपोर्ट इप्टा की ओर से 7 रंग के लिए अर्पिता ने भेजी है...

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एक अलोने-सलोने आसमान का रीता हो जाना
7 Rang
July 7, 2021

अभिनय के आसमान दिलीप कुमार सौ बसंत पूरे होने से पहले ही स्मृति-लोप के साथ इस दुनिया से विदा ले गए। हमारे समय के सबसे कड़े लिक्खाड़ कवि और सिने विशेषज्ञ विष्णु खरे जी ने उनकी रेंज पहचानते हुए कभी दिलीप कुमार को विश्व कोटि के बेहतरीन अदाकार पाल मुनि और मार्लेन ब्रांडो की कद-काठी और उन्हीं की श्रेणी का बताया था। तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं है।

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अलविदा अदाकार-ए-आज़म दिलीप कुमार
7 Rang
July 7, 2021

वैसे तो दिलीप साहब के गुज़र जाने पर सोशल मीडिया और तमाम माध्यमों पर उन्हें सब अपने अपने तरीके से याद कर रहे हैं और उनके न होने का मतलब भी बताने की कोशिश कर रहे हैं....दिलीप साहब किस गहराई से आज भी लोगों के दिलो दिमाग पर छाए रहे और किस तरह सिनेमा को उन्होंने नई दिशा दी, ट्रेजेडी को भी एक रूमानियत की बेहतरी अभिव्यक्ति बना दी... ये सब बहुत साफ हो रहा है.. सिनेमा भले ही कहां से कहां आ गया है, तकनीक

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साहिबजान :  दर्द की अंतहीन दास्तान…
7 Rang
March 31, 2021

वो पाकीज़ा की साहिबजान थीं... वो साहिब बीवी और गुलाम की छोटी बहू थीं...वो बैजू की गौरी थीं.. दो बीघा ज़मीन की ठकुराइन थीं...परिणीता की ललिता थीं...और सबसे बड़ी उनकी पहचान थी ट्रेजेडी क्वीन की... लेकिन असल में वो महज़बीं बानो थीं...एक बेहतरीन शायरा...एक तड़पती हुई बेचैन अदाकारा...बहुत कुछ थीं मीना कुमारी। 31 मार्च को महज 38 साल की ज़िंदगी जीकर मीना ने दुनिया को अलविदा कह दिया...उनकी ज़िंदगी में कमाल

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दुनिया की सरहद के पार… सागर सरहदी का संसार
7 Rang
March 22, 2021

सागर सरहदी का जाना एक ऐसे तरक्कीपसंद शख्स का जाना है जिसकी झोली में सिलसिला, कभी कभी और चांदनी भी है तो बाज़ार और चौसर भी...  सागर सरहदी में यश चोपड़ा की ज़रूरतों के मुताबिक ढलने की कला भी है तो वक्त के साथ देश और समाज को बारीकी से देखने का अपना नज़रिया भी... सरहदी साहब बीमार चल रहे थे... 88 साल के हो चुके थे... लेकिन अब भी बेहद संज़ीदे तरीके से वक्त को देखते समझते थे। '7 रंग' के लिए सागर सरहदी को या

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ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो…
7 Rang
June 17, 2020

इतनी कामयाबी, इतनी शोहरत... लेकिन एक ऐसा अकेलापन जिसने एक बेहतरीन और संभावनाओं से भरे कलाकार को खुदकुशी जैसी कायराना हरकत करने को मजबूर कर दिया। कोरोना काल के तमाम खतरनाक संकटों में से एक सबसे बड़ा संकट डिप्रेशन को लेकर नजर आता है जिसके शिकार आम-ओ-खास होते दिख रहे हैं।

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ख्वाज़ा अहमद अब्बास होने का मतलब…
7 Rang
June 7, 2020

एक लेखक के कितने आयाम हो सकते हैं, समाजवाद और इंसानियत के प्रति उसकी वैचारिक प्रतिबद्धता किस हद तक हो सकती है ये समझने के लिए हमें ख्वाज़ा अहमद अब्बास की ज़िंदगी को करीब से देखना चाहिए। आज़ादी के आंदोलन के दौरान ख्वाज़ा अहमद अब्बास ने इप्टा से जुड़कर तमाम इंकलाबी और तरक्कीपसंद हस्तियों के साथ तो काम किया ही, अपने लेखन को बचपन से जिंदगी के आखिरी दिनों तक बदस्तूर जारी रखा। एक पत्रकार

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हम सबके घरों के फिल्मकार थे बासु दा…
7 Rang
June 4, 2020

आज फिल्मों का जो दौर चल रहा है, उसमें बासु चटर्जी जैसे फिल्मकार की गैर मौजूदगी भीतर कहीं एक शून्य पैदा करती है। उम्र को अगर नज़रअंदाज कर दें तो बासु दा के भीतर ज़िंदगी को देखने का अपना जो नज़रिया रहा वो 60 के दशक से आज तक वैसा ही रहा। आखिरी दिनों में भी उनके भीतर का फिल्मकार विषय तलाशता रहा लेकिन पिछले कुछ बरसों से वो चाहकर भी कुछ नया दे नहीं पाए। साहित्य में उनकी खासी दिलचस्पी थी और उनक

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