दुनिया एक रंगमंच है और हमसब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं। किसी ने ये पंक्तियां यूं ही नहीं कह दीं। अगर आप गहराई से देखें तो हम सब कहीं न कहीं ज़िन्दगी में हर रोज़ कोई न कोई किरदार होते हैं और हर पल हमारे हाव भाव, बोलचाल का अंदाज़ और तमाम घटनाक्रमों के बीच हमारी भूमिका एक नई कहानी गढ़ती है। भारतीय रंगमंच की परंपरा बेहद समृद्ध है और ये कहीं न कहीं हमारे जीवन के तमाम पहलुओं को स्वांग के ज़रिये सामने लाती है। फिल्मों और टेलीविज़न के आने के बाद से रंगमंच की दुनिया में हलचल मच गई और इसके अस्तित्व पर सवाल उठाए जाने लगे। लेकिन हर दौर में देश के तमाम हिस्सों में रंगमंच उसी शिद्दत के साथ मौजूद है और रहेगा। इसकी अपनी दुनिया है और अपने दर्शक हैं। यहां भी नए नए प्रयोग होते रहते हैं और देश भर में लगातार नाटकों का मंचन होता रहता है। कहां क्या हो रहा है, रंगमंच आज किस दौर में है, कौन कौन से प्रयोग हो रहे हैं, कलाकारों की स्थिति क्या है, पारंपरिक और लोक रंगमंच आज कहां खड़ा है – ऐसी तमाम जानकारियां इस खंड में।
राजेश कुमार राजनीतिक व विचार प्रधान नाटकों के लिए जाने जाते हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ओर से 2014 के लिए नाटक लेखन के लिए पुरस्कृत किये जाने की घोषणा की गयी है। वैसे राजेश कुमार इन पुरस्कारों से बहुत ऊपर हैं। हिन्दी रंगमंच और नाट्य लेखन के क्षेत्र में उनका सृजनात्मक काम विशिष्ट है। उनके आसपास भी कोई नहीं दिखता। उनके जैसा प्रतिबद्ध और प्रयोगधर्मी भी कोई नहीं।
Read Moreदो-तीन साल पहले जब फिरोज अहमद खान ने बॉलीवुड की बेहद चर्चित फिल्म मुगले आजम’ को रंगमच पर पेश किया तो न सिर्फ फिल्म प्रेमियों को के. आसिफ की उस बहुचर्चित फिल्म की याद फिर से आई बल्कि नाटक की दुनिया में भी उसे एक नए प्रयोग के रूप मे देखा गया। शायद उसी से प्रेरणा लेकर राजीव गोस्वामी ने पिछले हफ्ते जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के विशाल ऑडिटोरियम मेंउमराव जान अदा’ को मंच पर पेश किया जिसमें संग
Read Moreबतौर रंग निर्देशक विनय शर्मा की पहचान राष्ट्रीय रही है। विनय लंबे अरसे से कोलकाता में रंगमंच पर सक्रिय हैं और श्यामानंद जालान ने उन्हें अपनी रंगसंस्था `पदातिक’ से जोड़ा। वे निर्देशन के अलावा लेखन और अभिनय में भी अपनी अच्छी पहचान बना चुके हैं। वे एक बेहतरीन अभिनेता हैं इसकी मिसाल दिल्ली के दर्शकों को तब मिली जब पिछले हफ्ते अक्षरा थिएटर में `हो सकता है दो आदमी दो कुर्सियां’ का मंचन
Read Moreआलोक चटर्जी एक बेहद चर्चित और स्थापित नाट्य अभिनेता है। पर एक संस्थान को रचनात्मक दिशा देने की उनकी क्षमता तब उजागर हुई जब पिछले हफ्ते मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय का नाट्य समारोह हुआ। इस संस्थान का निदेशक बने उन्हें सिर्फ नौ-दस महीने ही हुए है पर एक पूरे सत्र में जिस तरह के स्तरीय नाटक हुए उससे तो ऐसा ही लगता है कि ये विद्यालय एक जबर्दस्त ऊर्जा से संचारित हो रहा है।
Read Moreअस्मिता थिएटर ग्रुप के संस्थापक और मशहूर रंगकर्मी अरविंद गौड़ ने गिरीश कर्नाड को काफी करीब से जाना, महसूस किया और उन्हें जिया है। कर्नाड के नाटकों को अरविंद ने अपने कम संसाधनों के बावजूद एक बड़ा आयाम दिया और अपनी कला दृष्टि के विकास में गिरीश कर्नाड की अहम भूमिका मानते हैं। गिरीश कर्नाड का जाना बेशक रंगमंच की दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति है। खासकर इसलिए भी कि कर्नाड महज एक नाटककार न
Read Moreअमर उजाला ने गिरीश कर्नाड को बेहद सम्मान दिया। उन्हें अपने सर्वोच्च शब्द सम्मान आकाश दीप से सम्मानित किया। उसी दौरान गिरीश कर्नाड ने अपने दिल की बहुत सी बातें अमर उजाला से साझा कीं। इनमें से कुछ को अमर उजाला काव्य ने छापा। वहीं से आभार के साथ हम गिरीश जी की वो बातें आपके साथ साझा कर रहे हैं जिससे उनकी यात्रा के कई पड़ावों के बारे में उन्हीं की जुबानी पता चलता है।
Read Moreक्या धर्म या अध्यात्म इच्छा और अनिच्छा से परे हो सकता है? दूसरे शब्दों में कहें तो क्या कोई ऐसा मंदिर हो सकता है जिसमें किसी ऐसे भक्त का प्रवेश वर्जित हो जिसमें कुछ इच्छा बची हो? वैसे भी सोचने वाली बात ये है कि कोई भक्त किसी मंदिर या भगवान के सामने तभी तो जाता है जब उसकी कोई मन्नत हो या वो भगवान से कुछ चाहता हो। निष्काम कर्मयोग तो सिर्फ गीता में लिखी गई बात है जिसे बहुत कम ही लोग दैनिक जी
Read Moreविजय तेंदुलकर का लिखा मराठी नाटक `सखाराम बाइंडर’ एक आधुनिक भारतीय क्लासिक का दर्जा हासिल कर चुका हैं और अन्य भाषाओं के अलावा ये हिंदी में भी कई बार खेला जा चुका है। अलग अलग निर्देशकों ने इसे अपने अपने तरीके से पेश किया है। इसी कड़ी में पिछले दिनों दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में इसकी एक नई प्रस्तुति हुई। `बाइंडर’ नाम से। ये उत्तर-आधुनिक प्रस्तुति थी और इसमें कई तरह के प्रयोग कि
Read Moreसंस्कृति और कला के क्षेत्र में खास दखल रखने वाले जाने माने पत्रकार रवीन्द्र त्रिपाठी का मौजूदा दौर की पत्रकारिता में कला-संस्कृति को एक हद तक बचाए रखने में अहम भूमिका है। जनसत्ता समेत तमाम अखबारों में नियमित रूप से इस क्षेत्र में लिखते हुए रवीन्द्र त्रिपाठी ने इस यात्रा को बदस्तूर जारी रखा है। अखबार के साथ साथ खबरिया चैनलों में भी अपने लेखन के ज़रिए रवीन्द्र त्रिपाठी ने कला-संस्
Read Moreजब देश में रंगमंच आंदोलन कहीं हाशिए पर खिसक गया हो और जब रंगकर्मियों के सामने सिनेमा, टीवी और डिजिटल मीडिया की बड़ी चुनौतियां हों, ऐसे में अगर कोई रंगकर्मी लगातार तीन दशकों से नुक्कड़ नाटकों के लिए ही समर्पित हो तो भरोसा जगता है कि रंगमंच कभी खत्म नहीं हो सकता। रंगकर्मी अरविंद गौड़ अपने आप में एक संस्था बन चुके हैं। अस्मिता थियेटर ग्रुप उन्होंने करीब 27 साल पहले शुरू किया था।
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